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Tribute to Kamal Khan : दिनभर बोलता था वो तो कितना चुप सा दिखता था, अभी चुप बैठा है तो चेहरा कितना बोलता सा है

Janjwar Desk
14 Jan 2022 6:07 PM IST
Tribute to Kamal Khan : दिनभर बोलता था वो तो कितना चुप सा दिखता था, अभी चुप बैठा है तो चेहरा कितना बोलता सा है
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वरिष्ठ पत्रकार कमाल खान के साथ सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता दीपक कबीर की यह तस्वीर उनकी FB वॉल से

Tribute to Kamal Khan : आप उसे मुसलमान कहोगे पर वो भगतसिंह के दोस्त शिववर्मा के साथ बैठ इंक़लबियों की यादें टाइप कर रहा था और भगत सिंह का जूता छूके जो झुरझुरी हुई उसे ताउम्र महसूस करता रहा, वो मुसलमान था और मैं चुपचाप उसके जिस्म से रौशन चमकीली आँखें निकलते देख रहा हूं, क्योंकि वो आंखें तक डोनेट कर गया...

कमाल खान को याद करते हुए उनके करीबी दोस्त दीपक कबीर की मार्मिक टिप्पणी

Tribute to Kamal Khan : मेरा फोन ऑफ था..और उठा पाने की मनःस्थिति में भी नहीं, माफ़ करें। मैं हिल गया हूँ और चीख के रोना चाहता हूँ। कल शाम को उनकी बहन Tazeen Khan ने मुझसे मेरा एक शेर लिखवाया और कहा रात में भैया को देंगे वो इस्तेमाल करेंगे...मैने मुसकुरा कर कहा..उनके पास पहले से है।

कल रात विपक्ष के 2-3 विधायक और मैं कुछ बातें और डिनर कर रहे थे, एक विधायक बोले बुंदेलखंड में कमाल की स्टोरीज़ हैं, आप कवर करवाइये। मैंने मुस्कुराकर कहा कि बुंदेलखंड पर कमाल खान ने बेहद संवेदनशील स्टोरी की थी उसमें मेरी कविता इस्तेमाल हुई थी। मैं उन्ही से कहता हूं।

रात तबियत खराब थी, सुबह जल्दी उठा और बस ndtv के राजेश से बात हुई। भागा भागा... मैं क्या ये पूरी कायनात लेकिन देर कर गयी...बहुत देर कर गयी। वो बेड पर अपने ट्रेक सूट में चुपचाप सो रहे थे। रुचि-अमन इस कदर संयत थे कि साफ पता चल रहा कि जैसे इस पहाड़ जैसे आघात ने जड़ कर दिया है।

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कमाल खान से 1992-93 में कमाल से मुलाकात हुई थी, रुचि परख के लिये काम करती थीं, शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ हमारे नाटक को रिकार्ड करना था। कमाल मदद कर रहे थे। तब से शुरू हुआ परिचय, कब गहरे हमदर्द और दोस्ती मे बदल गया इसके हज़ारों किस्से हैं।

ndtv दिल्ली की एडिटोरियल डेस्क में मेरा सेलेक्शन कमाल खान के रिकमंडेशन के साथ ही गया था, हालांकि बाद में लखनऊ न छोड़ने की वजह से जॉइन न किया और कुछ दिबांग से बहस।फिर ये रिश्ता प्रगाढ़ होता गया, घरेलू पार्टियां हों या सरोकारी सवाल। कमाल का अध्धयन और मेहनत के हम सब मुरीद थे।

उनकी नफ़ासत उनकी एस्थेटिकल समझ..उनकी रायटिंग, डालीबाग वाले घर से बटलर पैलेस तक वो छोटी छोटी चीजें... मेरी गिरफ्तारी पर उनका वो क्षोभ...

आखिरी मुलाकात पर वो बहुत बिज़ी थे, मुझे फोन किया तो एक घंटा बातें हो गयीं, वीना बोली इससे अच्छा तो आप आ ही जाओ। 15 मिनट के लिये आये और फिर डेढ़ घंटे हम दोनों खड़े खड़े बात करते रहे। सारे लोग मज़ाक करने चिढाने लगे तो जिद की कि मैं भी उनके साथ शादी में चलूँ।

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उनका आखिरी भाषण वो भी पत्रकारिता का भी मेरे पास रिकार्ड है। शेयर करूँगा कि वो क्या कहना चाहते थे। मुझे लग रहा है मैं डिस्टर्ब हो रहा हूँ। जाने क्या लिख रहा हूँ क्यों लिख रहा हूँ। उस शख्स के लिये जिसने इस शहर इस दौर में कुछ स्टोरीज़ सिर्फ इसलिये अपने नाम से नहीं कीं कि उनका नाम कमाल खान है।

कुछ सरकारी आयोजनों में रुचि को इंडिया tv की वजह से तो बुलाया गया, मगर परिचित अधिकारियों ने कमाल खान को नही बुलाया। इस दौर के लखनऊ और रंग बदलती दुनिया में भी कमाल साझी सांस्कृति की दुहाई दे रहे थे।

2014 इलेशन में ndtv के साथ हुई चुनावी चर्चा के बाद ही कमाल भाई से कह के मैंने घर का tv हमेशा के लिये बन्द कर दिया था। आज तक नहीं खोला, अब क्या खोलूंगा।

आप उसे मुसलमान कहोगे पर वो भगतसिंह के दोस्त शिववर्मा के साथ बैठ इंक़लबियों की यादें टाइप कर रहा था और भगत सिंह का जूता छूके जो झुरझुरी हुई उसे ताउम्र महसूस करता रहा। वो मुसलमान था और मैं चुपचाप उसके जिस्म से रौशन चमकीली आँखें निकलते देख रहा हूं, क्योंकि वो आंखें तक डोनेट कर गया।

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डॉक्टर जूझ रहे हैं और मेरी आँखें भरभरा के ढह गयीं...सब धुंधला है अब....और मैं सब छोड़ देना चाहता हूं।

इप्टा के महासचिव Rakesh Veda मेरी गाड़ी पर पीछे बैठे हैं...हम कब्रिस्तान जा रहे हैं वो समझा रहे हैं कुछ खा पी लो, ये दुनिया ऐसी ही है काम करते रहो पर ज़्यादा तनाव लेने से क्या हासिल। मेरा दिल धड़कना बन्द ही नहीं कर रहा। बेचैनी जान ले रही है...क्या कमाल भाई की दुनिया अब शांत है... वो सुकून में होंगे न...

"दिन भर बोलता था वो तो कितना चुप सा दिखता था

अभी चुप बैठा है तो चेहरा कितना बोलता सा है...

(दीपक कबीर की यह टिप्पणी पहले उनकी FB वॉल पर प्रकाशित)

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