Nainital News : फैक्ट्री की छंटनी अवैध घोषित, सिडकुल की इस कम्पनी के खिलाफ उत्तराखण्ड हाईकोर्ट का निर्णय
Nainital News : न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने हल्द्वानी के औद्यौगिक विवाद अभिकरण के निर्णय को सही ठहराया है, हालांकि सुनवाई के दौरान कम्पनी द्वारा यह तर्क भी दिया गया था कि 144 श्रमिकों ने मुआवजा भी ले लिया है, इसलिए अब उनका कोई अधिकार नही बनता है......
Nainital News : उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने सिडकुल (State Industrial Devlopment Corporation of Uttarakhand Ltd.) की एक कम्पनी द्वारा की गई सैंकड़ों मजदूरों की छंटनी को अवैध करार दिया है। इस छंटनी को हल्द्वानी (Haldwani) का औद्यौगिक विवाद अभिकरण पहले ही अवैध घोषित कर चुका था। जिसके निर्णय के खिलाफ कम्पनी ने उच्च न्यायालय में अपील की थी। उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद श्रमिकों ने कम्पनी प्रबंधक से जल्द से जल्द प्लांट शुरू करने की मांग की है। मामला उत्तराखण्ड (Uttarakhand) के उधमसिंहनगर जिले के रुद्रपुर स्थित सिडकुल (SIDCUL) से जुड़ा है। जहां पंतनगर मैसर्स भगवती प्रोडक्ट लिमिटेड (माइक्रोमैक्स) कम्पनी ने वर्ष 2018 में प्लांट में कार्यरत 302 श्रमिकों की छंटनी कर दी थी।
इस छंटनी के खिलाफ मैसर्स भगवती प्रोडक्ट लिमिटेड (माइक्रो मैक्स) श्रमिक यूनियन ने वर्ष 2018 में औद्योगिक विवाद अभिकरण हल्द्वानी में वाद दायर कर दिया था। यूनियन का कहना था कि कम्पनी ने 302 श्रमिकों की यह छंटनी केंद्रीय औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 25एन के विरुद्ध है। अधिनियम में प्रावधान है कि अगर कोई कम्पनी 100 से अधिक श्रमिकों की छंटनी करती है तो उसको पहले बोर्ड से अनुमति लेनी होगी और साथ में श्रमिकों को तीन माह का नोटिस दिया जाएगा। जबकि अभिकरण में सुनवाई के दौरान कम्पनी ने कहा था कि उन पर केंद्रीय औद्योगिक अधिनियम लागू नही होता है। उन पर राज्य के औद्योगिक अधिनियम लागू होते है। राज्य के इन्हीं नियमो के तहत उन्होंने इस श्रमिकों की छंटनी की है।
औद्योगिक विवाद अभिकरण ने कम्पनी के इस तर्क को निरस्त करते हुए श्रमिकों के हित मे निर्णय देते हुए कहा कि कम्पनी पर केंद्रीय औद्योगिक नियमावली 1947 की धारा 25 एन के रूल ही लागू होते है। इसलिए कम्पनी द्वारा की गई छंटनी अवैध है। लेकिन कम्पनी ने अभिकरण के इस आदेश को नहीं माना। कम्पनी ने अभिकरण के इस आदेश के खिलाफ उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी। लेकिन हाई कोर्ट ने भी 302 श्रमिकों के हित में निर्णय देते हुए कम्पनी की याचिका को निरस्त कर दिया है।
न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने हल्द्वानी के औद्यौगिक विवाद अभिकरण के निर्णय को सही ठहराया है। हालांकि सुनवाई के दौरान कम्पनी द्वारा यह तर्क भी दिया गया था कि 144 श्रमिकों ने मुआवजा भी ले लिया है। इसलिए अब उनका कोई अधिकार नही बनता है। लेकिन न्यायालय ने माना कि अधिनियम की धारा 25 एन (सात) के तहत मुआवजा लेने के बाद भी कम्पनी की यह छंटनी वैध नही हो सकती। मुआवजा लेने वाले श्रमिक का भी उतना ही अधिकार होता है जितना कि बिना मुआवजा लिए श्रमिकों का।
इस मामले में यूनियन के जनरल सेकेट्री दीपक सनवाल ने कहा कि पहले अभिकरण व अब उच्च न्यायालय के माध्यम से साबित हो चुका है कि कम्पनी ने श्रमिकों की छंटनी अवैध रूप से की थी। इसलिए अब कम्पनी प्रबंधन को श्रमिकों को साथ लेकर जल्द से जल्द पूर्व की तरह प्लांट शुरू करवाया जाना चाहिए। जिससे बेरोजगारी झेल रहे मजदूरों को राहत मिल सके।
वहीं मजदूर सहयोग केंद्र के महेन्द्र राणा ने कहा कि श्रमिकों ने अपने संघर्ष के दम पर जो अपने हितों के लिए कानून बनवाये थे। उनके कारण ही इस प्रकार के श्रमिक हितों के निर्णय आ पा रहे हैं। इसलिए केंद्र सरकार की नजर इन कानूनों पर लगी है। नए मजदूर कानूनों में केंद्र सरकार मजदूरों को गुलाम बनाने का प्रावधान कर रही है। मजदूरों को अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए ऐसे काले कानूनों का विरोध करना होगा। तभी उनको मिले हुए छिटपुट अधिकार भी बच सकेंगे।