President Election 1957 : नेहरू के न चाहते हुए भी दूसरी बार देश के राष्ट्रपति कैसे बने राजेंद्र प्रसाद?

President Election 1957 : देश की आजादी के बाद पंडित नेहरू सबसे लोकप्रिय नेता थे तो राजेंद्र प्रसाद भी कम नहीं थे।

Update: 2022-06-14 09:30 GMT

President Election 1957 : पहले पीएम नेहरू के न चाहते हुए दूसरी बार कैसे राष्ट्रपति बन गए राजेंद्र प्रसाद?

resident Election 1957 : करीब एक माह बाद नये राष्ट्रपति का चुनाव ( President Election 2022 ) होगा। सर्वोच्च संवैधाानिक पद के लिए अभी तक किसी तरफ ने नाम उभरकर सामने नहीं आया है। नीतीश कुमार और शरद पवार का नाम सुर्खियों में लेकिन किसी ने हामी नहीं भरी है इसलिए हम यहां पर चर्चा कर रहे हैं भारत के दूसरे राष्ट्रपति पद यानि 1957 में हुए राष्ट्रपति चुनाव का। यह चुनाव काफी रोचक रहा था। रोचक इस मायने में उस दौर में सबसे लोकप्रिय नेता और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ( Jawaharlal Nehru ) के नहीं चाहते थे कि देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ( Rajenda Prasad ) दोबारा राष्ट्रपति बनें। इसके बावजूद राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़े और जीते भी। क्या आज के दौर में ऐसा संभव है, तो यही जवाब मिलेगा कि नहीं। लगभग यही बात सच भी है।

राजेंद्र ने जाहिर की थी दोबारा राष्ट्रपति बनने की इच्छा

देश में राष्ट्रपति पद के लिए दूसरी बार चुनाव आम चुनावों के कुछ समय बाद हुआ है। लोकसभा चुनाव में नेहरू सरकार फिर से बहुमत के साथ केंद्र में सत्तारूढ़ हुई थीं। राज्यों में भी कांग्रेस ( Congress ) की ही सरकारें दोबारा आईं थी। ठीक उसी समय, डॉ. राजेंद्र प्रसाद ( Dr Rajendra Prasad ) पहला कार्यकाल खत्म होने के बाद फिर दूसरे कार्यकाल में भी राष्ट्रपति बनना चाहते थे। ये इच्छा उन्होंने खुलकर सभी से जाहिर कर दी थी। अपनी इस साफगोई की वजह से कांग्रेस का दावेदार बनने से पहले उन्हें लेकर पार्टी में अंतर्विरोध बड़े पैमाने पर नजर आया।

राधाकृष्णन को चाहते थे नेहरू

राष्ट्रपति के अपने पहले दौर के कार्यकाल में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ( Jawaharlal Nehru ) और राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ( Dr Rajendra Prasad ) के बीच कई मुद्दों पर मतभेद उभरकर सामने आये थे। वर्तमान राजनीति में भी इस बात की चर्चा समय-समय पर होती रहती है। उस समय नेहरू लोकप्रिय थे तो राजेंद्र प्रसाद भी कम नहीं थे। पार्टी में भी उनकी लोकप्रियता चरम पर थी। राजेंद्र प्रसाद द्वारा अपनी इच्छा जाहिर करने से कांग्रेस की स्थिति कुछ अजीब हो गई, क्योंकि नेहरू चाहते थे कि दूसरी बार डॉ. राधाकृष्णन इस पद पर चुने जाएं। नेहरू ने उन्हें इसी मकसद से मास्को में राजदूत के पद की जिम्मेदारी से हटाकर उप राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी पर बिठाया था। 1957 में नेहरू की पसंद भी वही थे। राधाकृष्णन भी मान कर चल रहे थे कि वो राष्ट्रपति बन जाएंगे लेकिन राजेंद्र प्रसाद द्वारा फिर से राष्ट्रपति पद पर चुनाव लड़ने का मन बनाने के बाद उनके लिए स्थिति अजीब हो गई।

राजेंद्र को न चाहते हुए नेहरू को होना पड़ा था सहमत

नेहरू ( Jawaharlal Nehru ) के न चाहने के बावजूद कांग्रेस पार्टी के भी अधिकांश लोग राजेंद्र प्रसाद को दोबारा राष्ट्रपति बनते देखना चाहते थे। तब सौराष्ट्र के पूर्व सीएम रह चुके स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर पार्टी के अध्यक्ष थे। वो भी चाहते थे कि यदि राजेंद्र प्रसाद  ( Dr Rajendra Prasad ) फिर राष्ट्रपति बनना चाहते हैं तो ऐसा ही होना चाहिए। जब नेहरू ने देखा कि कांग्रेस पार्टी का एक बड़ा तबका इस मामले में उनसे सहमत नहीं है तो उन्होंने मौलाना अबुल कलाम से विचार-विमर्श किया। मौलाना ने भी नेहरू को समझाया कि राधाकृष्णन को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने की जिद उनको छोड़ देनी चाहिए। राजेंद्र प्रसाद के नाम पर उन्हें भी सहमति जतानी चाहिए, क्योंकि पार्टी किसी भी हालत में उन्हीं को दोबारा फिर राष्ट्पति बनते देखना चाहती है। इसके बाद अनिच्छा से ही सही लेकिन नेहरू रजामंद हो गए कि वो राधाकृष्णन के नाम को आगे करने का इऱादा छोड़ देंगे। जब राजेंद्र प्रसाद की कांग्रेस से उम्मीदवारी का ऐलान हो गया तो पिछली बार की तरह इस बार भी किसी पार्टी ने उनके खिलाफ कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया। ऐसे दो निर्दलीय प्रत्याशी ही उनके खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे। एक थे चौधरी हरि राम और दूसरे थे नागेंद्र नारायण दास। चौधरी हरि राम हरियाणा में किसानों के लोकप्रिय नेता थे।

प्रसाद को 459698 मिले, विरोध में पड़े सिर्फ 4672 वोट

President Election 1957 : देश में दूसरी बार राष्ट्रपति पद के लिए वोटिंग 06 मई, 1957 को हुई और 10 मई को काउंटिंग के बाद नतीजे आये। चुनाव में राजेंद्र प्रसाद को 4,59,698 वोट मिले। निर्दलीय चौधरी हरिराम को 2672 नागेंद्र नारायण दास को 2000 वोट मिले थे।


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