कुछ दिन साथ रहना 'लिव-इन' नहीं, रिश्तों में कर्तव्यों का पालन जरूरी: पंजाब-हरियाणा HC
"पूर्ण आजादी की खोज में युवा अपने माता-पिता का घर,कंपनी वगैरह छोड़ देते हैं। ताकि वे अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रह सके। और बाद में इस तरह की याचिका दायर कर दावा करते हैं कि परिवार और समाज से उनको खतरा है।"
Punjab News: अगर दो व्यस्क (Adults) आपसी सहमति से कुछ दिन साथ रहे तो इसका अर्थ यह नहीं कि वे लिव-इन रिलेशनशिप (Live in Relation) में हैं। कोई भी कपल कितने लंबे समय से साथ रह रहा है और साथ में वह सामने वाले के लिए अपने कर्तव्यों का पालन कर रहा है, एक दूसरे के प्रति जिम्मेदारी उठा रहा है या नहीं, इन सबसे मिलकर ही कोई रिश्ता शादी के समान होता है। ये बाते पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab Haryana High Court) ने एक कपल की ओर से दायर की गई याचिका को खारिज करते हुए कहा।
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय (High Court) ने यह स्पष्ट कर दिया है कि केवल इसलिए कि दो वयस्क कुछ दिनों के लिए एक साथ रहते हैं, इस आधार पर लिव-इन रिलेशनशिप (Live in Relation) का उनका दावा मानने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है कि वे वास्तव में लिव-इन-रिलेशनशिप में हैं। हाईकोर्ट ने कहा कि "कोई भी रिश्ता कितने वक्त से चल रहा है और उसमें एक दूसरे के प्रति कुछ कर्तव्यों और जिम्मेदारियों (Duties and Responsibilities) के निर्वहन के साथ मिलकर इस तरह के रिश्ते को वैवाहिक संबंधों के समान माना जाता है।"
टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक, हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति मनोज बजाज (Justice Manoj Bajaj) ने हरियाणा के यमुनानगर जिले (Yamuna Nagar) के एक दंपति द्वारा अपने परिवार के सदस्यों से सुरक्षा की मांग करने वाली याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश दिया। दोनों ने पिछले कुछ दिनों से लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का दावा किया था। HC ने इस तरह की याचिका दायर करने के लिए दंपति पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने 18 साल की लड़की और 20 साल के लड़के द्वारा दायर याचिका पर विचार करने के दौरान ये अहम बाते कहीं।
साथ रहने वाले जोड़े ने दावा किया था कि वे एक-दूसरे से प्यार करते हैं और वयस्क होने पर शादी करने का फैसला किया है। सुरक्षा याचिका में यह कहा गया था कि लड़की के माता-पिता उनके खिलाफ हैं और उन्होंने अपनी पसंद के लड़के के साथ उसकी शादी करने का फैसला किया है, और उन्हें झूठे आपराधिक मामले में फंसाने की चेतावनी भी दी है। इसलिए, वे अब लिव-इन रिलेशन में साथ रहते हैं। हाईकोर्ट ने दोनों की याचिका को खारिज करते हुए जुर्माना लगाया।
कोर्ट ने कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि विपरीत लिंग (Opposite Sex) के दो वयस्कों के बीच लिव-इन रिलेशनशिप की अवधारणा को भारत में मान्यता मिली है। हालांकि, समाज के कुछ वर्ग ऐसे रिश्तों को स्वीकार करने के लिए अब भी अनिच्छुक हैं।" अदालत ने कहा कि, पिछले कुछ वर्षों से सामाजिक मूल्यों (Social Values) में गहरा परिवर्तन अनुभव किया जा रहा है। विशेष रूप से युवाओं के बीच, जो शायद ही पूर्ण स्वतंत्रता की खोज में अपने माता-पिता का घर,कंपनी वगैरह छोड़ देते हैं। ताकि वे अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रह सके। और बाद में इस तरह की याचिका दायर कर अपने रिश्ते पर कानूनी मुहर लगवाने के लिए दावा करते हैं कि परिवार और समाज से उनको खतरा है।
हाईकोर्ट के आदेश में कहा गया है कि इस तरह की याचिकाएं (Petitions) में देखा जाता है कि आमतौर पर केवल लड़की के माता-पिता या उनके करीबी रिश्तेदारों द्वारा रिश्ता अस्वीकार होता है, और उन्हे खतरा महसूस होता है। लिव इन में रहने वाले कपल के फैसले का लड़के के परिवार द्वारा शायद ही कभी विरोध किया जाता है।
हाईकोर्ट ने कहा कि,"इस तरह की अधिकांश याचिकाओं में औपचारिक प्रतीकात्मक कथन, कार्रवाई के काल्पनिक कारण के आधार होते हैं, और शायद ही किसी खतरे के वास्तविक अस्तित्व पर आधारित होते हैं। इस प्रकार के मामले अदालत के समय को बर्बाद करते हैं, वह भी तब जब लंबी लाइन में सुनवाई के लिए महत्वपूर्ण मामले इंतजार में होते हैं।"