बेगुनाहों को बरी करने वाले जयपुर हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची राजस्थान सरकार पर रिहाई मंच ने उठाये सवाल
Azamgarh news : जिस इंडियन मुजाहिद्दीन के नाम पर ये लड़के पकड़े गए उसने इन घटनाओं की जिम्मेदारी ली थी तो ऐसे में सवाल है कि असली गुनहगार कहां हैं। इंडियन मुजाहिद्दीन का सच क्या है, इसकी भी जांच होनी चाहिए। जांच से ज्यादा प्रोपेगंडा के तहत मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया जाता है। भारत में मनुवादी सांप्रदायिक विचाराधारा ने मुसलमानों को शत्रु के रूप में स्थापित कर दिया है...
लखनऊ। रिहाई मंच ने आजमगढ़ के 4 नौजवानों जिन्हें निचली अदालत से फांसी की सजा हो चुकी थी, को बरी करने वाले जयपुर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ राजस्थान सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के निर्णय की निंदा की। मंच ने युवाओं की बात करने वाले राहुल गांधी से स्पष्टीकरण मांगा कि क्या सालों से कैद ये युवा युवा नहीं हैं? क्या मुसलमान होना आजमगढ़ का होना उनका जुर्म है? क्या उनकी सरकार में हुए बाटला हाउस एनकाउंटर की वजह से कांग्रेस ऐसा कर रही है।
रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शोएब ने कहा कि जयपुर हाईकोर्ट ने फांसी की सजा पाए आजमगढ़ के चार अभियुक्तों सैफ, सरवर, सैफुररहमान और सलमान को सिर्फ बरी ही नहीं किया, बल्कि जांच दल पर भी सवाल उठाते हुए दोषी अधिकारियों के खिलाफ उचित जांच और अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए कहा। होना तो यह चाहिए था कि 15-16 सालों से निर्दोषों को जेल की सलाखों के पीछे रखने की साजिश करने वाले पुलिस और जांच एजेंसियों के खिलाफ कार्रवाई होती।
मुहम्मद शोएब ने आगे कहा, कांग्रेस सरकार दोषी पुलिस अधिकारियों के साथ खड़ी है, ऐसे में जरूरत है कि सिर्फ जांच एजेंसियों की ही नहीं कांग्रेस की भी भूमिका की जांच होनी चाहिए। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील और अतिरिक्त महाधिवक्ता की सेवाएं समाप्त करने वाला निर्णय साफ करता है कि वो निर्दोषों को कैद करना ही इंसाफ मानते हैं। अगर यह नहीं होता तो असली गुनहगारों को न पकड़कर बेगुनाहों को पकड़कर गुमराह करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करते।
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि यह पहली बार नहीं हुआ जब आतंकवाद के मामले में जांच एजेंसियों की भूमिका पर सवाल उठा। निर्दोषों को झूठे मुकदमों में फंसाने ही नहीं, बल्कि आतंकी घटनाओं में इनकी भूमिका की जांच होनी चाहिए। देश में विभिन्न आतंकी घटनाओं के आरोप में सालों साल जेल काटने के बाद मुस्लिम समुदाय के लोग बाइज्जत बरी हुए। न्यायालय तक को कहना पड़ा ऐसा न कीजिए जिससे कहना पड़े माई नेम इज खान बट आई एम नॉट टेररिस्ट।
इंडियन मुजाहिद्दीन के नाम पर आजमगढ़ के लोगों के खिलाफ नफरत का माहौल तैयार कर दिया। जिस इंडियन मुजाहिद्दीन के नाम पर ये लड़के पकड़े गए उसने इन घटनाओं की जिम्मेदारी ली थी तो ऐसे में सवाल है कि असली गुनहगार कहां हैं। इंडियन मुजाहिद्दीन का सच क्या है, इसकी भी जांच होनी चाहिए। जांच से ज्यादा प्रोपेगंडा के तहत मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया जाता है। भारत में मनुवादी सांप्रदायिक विचाराधारा ने मुसलमानों को शत्रु के रूप में स्थापित कर दिया है।