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आजमगढ़ के जिन 4 नौजवानों ने जयपुर सीरियल ब्लास्ट के आरोप में फांसी की सजा के साथ जेल में गुजारे 16 साल, अब कोर्ट ने बताया बेगुनाह

Janjwar Desk
31 March 2023 3:44 PM IST
आजमगढ़ के जिन 4 नौजवानों ने जयपुर सीरियल ब्लास्ट के आरोप में फांसी की सजा के साथ जेल में गुजारे 16 साल, अब कोर्ट ने बताया बेगुनाह
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आजमगढ़ के जिन 4 नौजवानों ने जयपुर सीरियल ब्लास्ट के आरोप में फांसी की सजा के साथ जेल में गुजारे 16 साल, अब कोर्ट ने बताया बेगुनाह

इस सियासत का सबसे आसान चारा भारत में मुसलमान है, जिसकी दिनोंदिन खामोशी बढ़ती जा रही है। पर ये जान लेना चाहिए उसकी खामोशी सिर्फ उसको ही कमजोर नहीं करेगी, वह इस लोकतंत्र को भी कमजोर करेगी....

राजनीतिक कार्यकर्ता और किसान नेता राजीव यादव की टिप्पणी

Azamgarh : आजमगढ़ के चार युवा जिन्हें फांसी की सजा दी गई थी, उन्हें जयपुर हाईकोर्ट ने बरी कर दिया। ये युवक तकरीबन 16 साल से जेल में थे यानी पूरी जवानी कैद में गुजार दी। एक वकील दोस्त ने जब ये खबर दी तो गूगल किया तो खबर नहीं दिखी तो मस्सू भाई को फोन किया, जिसकी उन्होंने तस्दीक की।

थोड़ी ही देर में सैफ की पिता जी मिस्टर भाई का फोन आया, उनकी आवाज में इतनी खुशी थी कि मैं बात के अंत में कहा कि मुझे पहले ही मालूम चल गया था। दिल को बहुत खुशी हुई कि बेगुनाहों की रिहाई की लड़ाई की शुरुआत हुई तो लोग यही कहते थे कि आतंकवादियों की पैरवी करते हैं, खैर आज भी लोग कहते हैं।

जयपुर के वरिष्ठ वकील पैकर फारूख साहब बहुत याद आए। जब उन मुश्किल हालात में कोई अदालत में खड़ा नहीं होता था तो वे इन बेगुनाहों के साथ खड़े रहे। पैकर फारूख साहब आज हमारे बीच नहीं हैं, पर ये उन्हीं जैसे संविधान रक्षकों की जीत है। बेगुनाहों की इस लड़ाई में हमने बहुतों को खोया, शाहिद आजमी जैसे प्यारे दोस्त को खोया। शोएब साहब की वो लाइनें बहुत अहम हैं कि इंसाफ की ये लड़ाई शहादत तक लड़ी जाएगीं हर जोर जुल्म के खात्मे तक लड़ा जाएगा।

उसके बाद सरवर के चचा आसिम साहब से बात हुई, उनकी खुशियों का अंदाजा आप तब लगा सकते हैं जब आप फांसी के तख्ते पर खुद को खड़ा कर महसूस करें। दो दिन पहले एक डॉक्टर साहब से मुलाकात हुई तो उन्होंने बताया कि वो चंदपट्टी के हैं तो मैंने कहा सरवर को जानते हैं, उन्होंने एक बार मुझे देखा और कहा कि वो मेरा बैचमेट था।

मुझे याद आता है 2008 का वो दिन जब सरवर के पिता से मुलाकात हुई तो उन्होंने बताया कि वो अध्यापक हैं, भूला नहीं तो शायद गणित के। उन्होंने कहा कि कैसे छात्रों को अब अनुशासन नैतिकता का पाठ पढ़ाऊंगा। लोग तो यही कहेंगे की खुद का बेटा आतंकी और दुनिया को आदर्श सीखा रहे। उनकी आखों में जो दर्द दिखा उसे आज तक भूल नहीं पाया। नहीं मालूम कि अब वे पढ़ाते हैं की नहीं, पर अब फख्र से अनुशासन नैतिकता का पाठ पढ़ाएंगे।

इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक मुकदमे में व्यस्तता की वजह से ज्यादा खबरें और तथ्य तो नहीं देख सका, पर इस फैसले ने एक बार फिर हमें लड़ने का हौसला दिया की हम सही हैं और इस मुल्क की सियासत और हुक्मरान गलत।

हबीब जालिब साहब की ये लाइनें इस मौजूं पर याद आती हैंण्ण्

ऐसे दस्तूर को सुब्ह-ए-बे-नूर को

मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता

मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता...

कुछ खबरें सरसरी तौर पर देखा की कोर्ट ने जांच अधिकारियों को लताड़ लगाई। मुझे मई 2008 में जब जयपुर में धमाके हुए थे उस समय की एक खबर याद आती है जब सुषमा स्वराज ने कहा था कि परमाणु समझौते से ध्यान हटाने के लिए ये धमाके कराए गएण्, जिसका सीधा आरोप कांग्रेस पर था। इसको बाद में आडवाणी ने कुछ कह बाईपास कर दिया था।

दिमाग पर थोड़ा जोर दीजिए कि उस वक्त लेफ्ट फ्रंट ने परमाणु समझौते का विरोध करते हुए खुद को सरकार से अलग कर लिया था। यूपीए इस मुद्दे पर घिर गई थी, जिसके बाद नोट के बदले वोट कांड वगैरह वगैरह हुए थे।

गौर कीजिए हर आतंकी घटना के आगे पीछे कुछ ऐसी राजनीतिक हलचल होती है, जिसे वो घटना प्रभावित करती है। राजनीतिक दल सत्ता का दुरुपयोग कर यूएपीए जैसे कानूनों की फांस में फंसाते हैं। राज्य एजेंसियों का गलत इस्तेमाल करता है, इसीलिए एटीएस-एनआईए जैसी एजेंसियों की जांच प्रक्रिया पर कोर्ट के सवाल उठाने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं होती। इनको सत्ता का संरक्षण प्राप्त रहता है। इसी से यह तथ्य और मजबूत होता है कि सालों कैद रखकर अपने को सही ठहराने की कोशिश सियासत करती है।

इस सियासत का सबसे आसान चारा भारत में मुसलमान है, जिसकी दिनोंदिन खामोशी बढ़ती जा रही है। पर ये जान लेना चाहिए उसकी खामोशी सिर्फ उसको ही कमजोर नहीं करेगी, वह इस लोकतंत्र को भी कमजोर करेगी।

बताएं उस दौर के यूपीए के तत्कालीन गृहमंत्री की अगर आजमगढ़ के ये लड़के बेगुनाह हैं तो इंडियन मुजाहिद्दीन क्या है। इंडियन मुजाहिद्दीन, आईएम चिल्ला चिल्लाकर भारतीय मुसलमानों पर आरोप लगाया गया कि भारत का मुसलमान आतंकी घटनाओं का हथियार मात्र नहीं है बल्कि उसको संचालित भी करता है।

होम ग्रोन टेररिज्म कह कर हमारे खूबसूरत शहर आजमगढ़ को बदनाम कर दिया गया। आजमगढ़ को आतंकगढ़ कह कर मासूमों का एनकाउंटर के नाम पर कत्ल किया गया। जहां जहां आदमी वहां वहां आजमी... वाले शहर के बासिंदों को कैद कर दिया गया। हमको शक की निगाहों से हर शख्स देखता था। आतंकी का ठप्पा लगा दिया गया। आज भी देश की विभिन्न जेलों में हमारे नौजवान कैदखानों में सड़ रहे हैं। पिछले दिनों आजमगढ़ के शहजाद की दिल्ली में मौत हो गई। ये मौत नहीं हत्याएं हैं। पर आरोपों के इतने पहाड़ खड़े कर दिए गए हैं कि सच कहना गुनाह हो गया है।

देश को समझना होगा कि ये नौजवान जिन्हें सालों बाद छोड़ा जा रहा, ये इस देश के मानव संसाधन हैं। जेल में कैद कर सियासत कामयाब हो सकती है, पर मुल्क नहीं। बेगुनाहों की रिहाई का सवाल संविधान से जुड़ा है। संवैधानिक मूल्यों को दरकिनार कर देश को कभी मजबूत नहीं किया जा सकता। प्रतियोगी परीक्षाओं में भी किस जिले को आतंकगढ़ कहा जाता है, यह सवाल किया जाने लगा।

2022 विधानसभा चुनावों में निजामाबाद से मैं इन्हीं मुद्दों पर चुनाव लड़ा था। बहुत से लोगों के सवाल थे कि क्यों इन सवालों को चुनावों में उठा रहे, इसी सीट से चुनाव क्यों लड़ रहे। हमने यही कहा कि हमारे हक हुकूक के मुद्दे चुनाव में क्यों नहीं। निजामाबाद सीट से चुनाव लड़ने का मुख्य कारण कि बाटला हाउस में मारे गए लड़के इसी विधानसभा के एक गांव के इसलिए इस सीट को चुना। किसान आंदोलन से लेकर फर्जी मुठभेड़, बुलडोजर पालिटिक्स पर खूब सवाल खड़े किए। मुझे यकीन है कि जिस दिन हमारे सवालों पर हम अपना वोट तय करेंगे उसी दिन गंदी राजनीति का खात्मा हो जाएगा। इसीलिए हमारे चुनावी प्रचार में आफताब आलम अंसारी, जावेद, कौसर जैसे लोग आए जिनको आतंकवादी कहकर सालों जेल में रखा गया जिन्हें बाद में बरी कर दिया गया।

जो लोग बुलडोजर राज और फर्जी मुठभेड़ों में लोगों के मारे जाने पर परेशान हैं, उन्हें सोचना चाहिए की अगर हमने आजमगढ़ के इन बेगुनाहों का साथ दिया होता तो ये उनके साथ न होता।

कश्मीर के लोगों के दमन अत्याचार पर हम खामोश थे, उनके नेताओं की नजर बंदी पर चुप थे। जिसे सभी सियासी पार्टियों ने समय समय पर अंजाम दिया। आज पूरा देश कैद खाना बनता जा रहा, यहां तक कि किसानों के देश में किसान नेताओं को नजरबंद कर दिया जाता है। किसानों को आतंकी तक कहा गया। अभी आजमगढ़ में चल रहे किसान आंदोलन को अर्बन नक्सल से जोड़कर बदनाम करने की कोशिश की गई।

झारखंड, छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का दमन किया गया तो हमें लगता था कि विकास के नाम पर ये कुर्बानी देनी होगी। आज वही विकास आदिवासी इलाकों से लूट खसोट कर हमारे घरों पर बुलडोजर चलाने पर उतारू है।

खैर, बात करते करते दूर चला आया पर हमको गंभीरता से सोचना होगा। हमारी रातों की नीदें इस गंदी राजनीत की भेट चढ़ गईं। हमको हर सवाल पर सफाई देनी पड़ती कि हम कैफ़ी आज़मी, राहुल सांकृत्यायन के शहर के हैं। आज भी कई बार बाहर होटल, एयरपोर्ट पर शक की निगाह से आईकार्ड देखने पर देखा जाता है।

मुंबई, दिल्ली, लखनऊ, अहमदाबाद जैसे महानगरों में आजमगढ़ वालों को उस दौर कमरे नहीं दिए जाते। तारीक भाई तो यहां तक कहते थे कि लड़की पैदा हो जिससे उसे तो आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।

सैफ, सरवर, सैफुररहमान, सलमान से कभी मुलाकात तो नहीं हुई, पर कई लड़के जो रिहा हुए उनको देखकर यही लगता है कि काश देश की न्यायिक व्यवस्था कि गति तेज होती और कई बार यही लगता है कि ये कैदें सियासत की देन हैं, जो चाहती हैं की जितना देरी होगी उतना उनको सियासी लाभ होगा।

इस सियासत ने कैद में सिर्फ इन नौजवानों पर जुल्म नहीं किया, बल्कि उनके घर, परिवार, गांव, समाज सबको जख्म दिया। कितने नौजवानों के परिजन इस सदमे को सह नहीं पाए घुट-घुटकर इस दुनिया से चले गए। कितनी माएं-बहनें अपने दर्द को भी साझा नहीं कर पाईं। सोचिए कि आपके बेटे, भाई को फांसी की सजा हो जाए तो क्या होगा। पिछले दिनों आजमगढ़ के लड़कों को जब फांसी की सजा सुनाई गई तो एक लड़के के भाई ने फोन किया तो उनके घर गया तो बेसुध सी बहन की तस्वीर आज भी आखों के सामने आ जाती है।

मुझे याद आता है उस दौर में दिल्ली जैसे महानगरों में पीसीओ पर आजमगढ़ फोन करने वालों को शक से देखा जाता था।

अंत में सागर आजमी की यही लाइनें कहूंगा -

किस तरह भुलाएं हम इस शहर के हंगामे

हर दर्द अभी बाकी है हर ज़ख्म अभी ताज़ा है

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