सुप्रीम कोर्ट ने बैंक डिफॉल्टरों की सूची जारी करने के निर्देश से जुड़े मामले में 7 साल पहले के अपने ही फैसले को पलटा

शीर्ष अदालत ने ताजा फैसले में साल 2015 के अपने ही एक महत्वपूर्ण फैसले पर आपत्ति जताते हुए निजता के अधिकार और सूचना अधिकार के बीच संतुलन स्थापित करने पर जोर दिया है।

Update: 2022-10-01 08:45 GMT

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नई दिल्ली। आरबीआई ( RBI ) द्वारा बैंक डिफॉल्टरों की सूची जारी करने के निर्देश से जुड़े मामले में सात साल बाद नया मोड़ आ गया है। 30 सितंबर 2022 को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) की दो सदस्यीय पीठ ने अपने ही पूर्व के फैसले को पलट दिया। इसे न्यायिक इतिहास में अहम घटना माना जा रहा है। शीर्ष अदालत ने ताजा फैसले में साल 2015 के अपने ही एक महत्वपूर्ण फैसले पर आपत्ति जताई है। बता दें कि सात साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने आरबीआई के लिए बैंक डिफॉल्टर की सूची और निरीक्षण रिपोर्ट का खुलासा करने का निर्देश दिया था।

पहले के फैसले में इस बात का नहीं रखा ख्याल

इससे जुड़े एक याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस बीआर गवई और सीटी रविकुमार ने कहा कि कोई अंतिम राय व्यक्त किए बिना पहली नजर में हमें लगता है कि जयंतीलाल एन मिस्त्री 2015 के मामले में अदालत ने अपने फैसले में सूचना के अधिकार ( Righ to information Act 2005 ) और निजता के अधिकार ( Right to privacy ) को संतुलित करने के पहलू पर ध्यान नहीं दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता बैंकों एचडीएफसी और अन्य बैंकों ने आरबीआई की कार्रवाई को चुनौती दी है। ऐसा इसलिए कि आरबीआई ने याचिकाकर्ता बैंकों को कुछ जानकारी का खुलासा करने के निर्देश जारी किए गए हैं। यह याचिकाकर्ता के मुताबिक आरटीआई अधिनियम, आरबीआई अधिनियम और बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949 के निहित प्रावधानों के विपरीत नहीं है लेकिन यह बैंकों और उनके उपभोक्ताओं के निजता के अधिकार पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

सर्वोच्च अदाल ने कहाकि केएसए पुट्टस्वामी और एक अन्य 2017 के मामले में अदालत की नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने माना था कि निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि सूचना का अधिकार भी एक मौलिक अधिकार है। इस तरह के संघर्ष के मामले में अदालत को संतुलन की भावना हासिल करने की आवश्यकता होती है, जिसका ध्यान 2015 के फैसले में नहीं रखा गया।

बैंकों की याचिका को माना सुनवाई के योग्य, मेरिट के आधार पर होगा विचार

अब शीर्ष अदालत ने वर्तमान पीठ ने निरीक्षण रिपोर्ट, जोखिम मूल्यांकन रिपोर्ट और वार्षिक वित्तीय निरीक्षण रिपोर्ट से संबंधित बैंकों से जानकारी मांगने के लिए आरबीआई द्वारा जारी निर्देशों को चुनौती देने वाली विभिन्न बैंकों द्वारा दायर रिट याचिकाओं को सुनवाई योग्य माना। यह माना गया कि जयंतीलाल मिस्त्री मामले की परवाह किए बिना निर्देशों को चुनौती देने के लिए अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिकाओं को सुनवाई योग्य माना जा सकता है।

शीर्ष अदालत की दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि अदालत के फैसले के तहत निजता और सूचना अधिकार के बीच वैधता पर पुनर्विचार कर उसमें संतुलन बनाने की आवश्यकता है। इसमें कहा गया है कि इस अदालत ने देखा है कि हालांकि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं। फिर भी दुर्लभ से दुर्लभतम मामलों में ऐसी स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं जिनके लिए शिकायत किए गए न्याय को निर्धारित करने के लिए अंतिम निर्णय पर पुनर्विचार की आवश्यकता होती है। ऐसे मामले में उचित यही होगा कि कानूनी और नैतिक रूप से त्रुटि को सुधारने का काम किया जाए।

शीर्ष अदालत की ओर से जारी 2015 के फैसले के मुताबिक आरटीआई अधिनियम के तहत विवरण के प्रकटीकरण के लिए जारी आरबीआई के परिपत्रों के खिलाफ बैंकों द्वारा दायर एक याचिका की जांच की। जांच के दौरान पाया गया कि आरबीआई ने जयंतीलाल एन मिस्त्री और गिरीश मित्तल के मामलों में बैंकों और उपभोक्ताओं के निजी हितों का ख्याल नहीं रखा गया। यही वजह है कि याचिकाकर्ताओं के पास इस अदालत का दरवाजा खटखटाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था।

दरअसल, 2021 में तत्कालीन जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस विनीत सरन की एक पीठ ने बैंकों द्वारा दायर विभिन्न आवेदनों को खारिज कर दिया था जिसमें जयंतीलाल मिस्त्री मामले को वापस लेने की मांग की गई थी जिसमें कहा गया था कि वे प्रभावी रूप से आदेश वापस लेने की आड़ में फैसले पर पुनर्विचार की मांग कर रहे थे। पीठ ने कानून के अनुसार अन्य उपाय तलाशने का बैंकों का अधिकार सुरक्षित रखा था। उसके बाद एचडीएफसी, एक्सिस बैंक, एसबीआई, कोटक महिंद्रा बैंक आदि सहित कई बैंकों द्वारा अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिकाएं दायर की गईं, जिसे अदालत ने सुनवाई के योग्य माना है। 

सुनवाई के योग्य नहीं है बैंकों की याचिकाएं : प्रशांत भूषण

वहीं आरटीआई सूचना मांगने वाले आवेदकों की ओर से पेश एडवोकेट प्रशांत भूषण ने दलील दी कि पहले के फैसले को चुनौती देने वाली रिट याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं हैं। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में जयंतीलाल मिस्त्री मामले में निर्देशों का पालन न करने के लिए आरबीआई के खिलाफ अवमानना कार्रवाई पर विचार करते हुए अदालत के निर्देशों के अनुरूप सूची जारी करने का निर्देश दिया था। उन्होंने नरेश श्रीधर मिराजकर और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य और एआर अंतुले बनाम आरएस नायक और अन्य की मिसालें दीं जिनमें यह माना गया था कि अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सही नहीं किया जा सकता है। 

RTI के दायरे में आते निजी बैंक

वहीं विभिन्न बैंकों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी, राकेश द्विवेदी, केवी विश्वनाथन, दुष्यंत दवे, जयदीप गुप्ता ने पुट्टास्वामी मामले का हवाला देते हुए कहा कि उक्त केस में निजता को मौलिक अधिकार माना गया है, इसलिए न्यायिक भूल को सुधारने की जरूरत है। अधिवक्ताओं ने दलील दिया कि किसी भी पक्ष को न्यायालय की गलती के कारण पीड़ित नहीं होना चाहिए। साथ पूर्व फैसले को न्याय की दासी के रूप में देखा जाना चाहिए। साथ ही इस बात पर भी जोर दिया कि निजी बैंक आरटीआई अधिनियम के दायरे में नहीं आते हैं।

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