पिछड़ा वर्ग के जाति-वार जनगणना की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब

याचिका के अनुसार, "संविधान के अनुच्छेद 243-डी (6) के तहत स्थानीय निकाय में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने का प्रावधान हैं। जाति-वार जनगणना के अभाव में, पिछड़ा वर्ग के आरक्षण का प्रतिशत कैसे तय किया जा सकता है।"

Update: 2021-02-26 08:56 GMT

(सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हाईकोर्ट के 17 मई के निर्देशों को निर्देशों के रूप में नहीं माना जाएगा)

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने शुक्रवार को उस जनहित याचिका पर केंद्र, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (National Commission for Backward Classes) और सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice and Empowerment) से जवाब मांगा, जिसमें पिछड़े वर्ग के लिए जाति-वार जनगणना की मांग की गई है। यह याचिका वकील जी.एस. मणि के माध्यम से तेलंगाना के निवासी जी. मल्लेश यादव और अल्ला रामकृष्ण की ओर से दायर की गई थी।

मामले में एक संक्षिप्त सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश एस. ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने नोटिस जारी किया और टिंकू सैनी द्वारा दायर की गई इसी तरह की याचिका के साथ मामले को टैग किया, जिसमें इसी पीठ ने 17 अक्टूबर, 2020 को नोटिस जारी किया था।

याचिका में तर्क दिया गया कि पिछड़ा वर्ग के लिए जातिवार जनगणना के बिना, शिक्षा और रोजगार के क्षेत्रों में पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 15 (4 और 5) और 16 (4 और 5) में स्पष्ट प्रावधान है।

याचिका के अनुसार, "संविधान के अनुच्छेद 243-डी (6) के तहत स्थानीय निकाय में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने का प्रावधान हैं। जाति-वार जनगणना के अभाव में, पिछड़ा वर्ग के आरक्षण का प्रतिशत कैसे तय किया जा सकता है।"

याचिकाकर्ताओं ने बताया कि 1979-80 में गठित मंडल आयोग की प्रारंभिक सूची में पिछड़ी जातियों और समुदायों की संख्या 3,743 थी।

याचिका के अनुसार, "ओबीसी की केंद्रीय सूची में पिछड़ी जातियों की संख्या अब बढ़ गई है। 2006 में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अनुसार इसकी संख्या बढ़कर 5,013 हो गई है, लेकिन सरकार ने जाति के आधार पर कोई सर्वेक्षण नहीं किया है।"

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