Telangana : हथकरघा उत्पादों पर GST बढ़ना कयामत जैसा, पोचमपल्ली और गढ़वाल के बुनकरों को सता रहा बर्बादी का डर
तेलंगाना के सिरसिला-करीमनगर, जोगुलम्बा, गढ़वाल, पोचमपल्ली आदि क्षेत्र के हथकरघा बुनकरों को अभी से अपनी बर्बादी का डर सताने लगा है। यहां के बुनकरों को जीएसटी 5 से 12 फीसदी होने की आशंका है। अगर ऐसा हुआ तो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सर्वोत्तम गुणवत्ता वाली हथकरघा सामग्री के लिए चर्चित यह उद्योग समाप्त हो जाएगा...
चरण तेजा की रिपोर्ट
नई दिल्ली। तेलंगाना का पोचमपल्ली, गढवाह सहित कई शहर ऐसे हैं जो इकत सिल्क साड़ियों के उत्पादन के लिए दुनियाभर में जाने जाते हैं। लेकिन जब से इस बात की संभावना बढ़ी है कि हथकरघा उत्पादों पर जीएसटी आज से 5 से 12 फीसदी होने वाला है। इस बात को लेकर यहां के हजारों बुनकर परेशान हैं। बुनकरों का कहना है कि जीएसटी में बढ़ोतरी का मतलब प्रसिद्ध गडवाल और पोचमपल्ली हथकरघा की कीमतें बढ़ना है। अगर ऐसा हुआ तो लोग हरकरघा उत्पाद नहीं खरीदेंगे। यानि लोगों की पसंदीदा साड़ी बनाने वाले बुनकरों की आजीविका खत्म हो जाएगी।
बुनकरों की आजीविका खतरे में
सरकार के इस रुख से परेशान हथकरघा बुनकर श्रीहरि एम कहते हैं - "वस्तु सेवा कर ( जीएसटी ) को मौजूदा 5% से बढ़ाकर 12% करने से हथकरघा बुनकरों और उद्योग की स्थिति और खराब हो जाएगी। यह उद्योग पहले से ही COVID-19 महामारी की चपेट में है। दरअसल, श्रीहरि का परिवार तत्कालीन नलगोंडा जिले के पोचमपल्ली क्षेत्र के 4000 बुनकरों में से एक हैं जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हथकरघा बुनाई उद्योग पर निर्भर है। भारत के पोचमपल्ली उर्फ सिल्क सिटी के हथकरघा कारीगर 1 जनवरी, 2022 से कपड़ा और हथकरघा पर जीएसटी को संशोधित करने के केंद्र सरकार के फैसले के परिणामों से डर रहे हैं।
श्रीहरि, जो पोचमपल्ली वीवर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष भी हैं। उनका कहना है कि हथकरघा व्यापारियों को साड़ियों की कीमत बढ़ाने के लिए मजबूर किया जाएगा, जिससे बिक्री में गिरावट आ सकती है। परिणामस्वरूप बुनकरों को रोजगार का नुकसान हो सकता है। रंग और रेशम, सूती धागे और अन्य सामग्री की कीमतें पहले ही बाजार की स्थितियों और मौजूदा जीएसटी के कारण बढ़ गई है। ताजा वृद्धि बुनकरों की आजीविका के लिए कयामत का कारण बनेगी। पोचमपल्ली हथकरघा क्षेत्र के पूर्व रंगारेड्डी, नलगोंडा और वारंगल जिलों के हजारों परिवारों को बुनकरों के रूप में रोजगार प्रदान करता है।
आय का जरिया बंद होने के कगार पर
गढवाल शहर के एक अन्य बुनकर तिरुमाला मुनीश्वर का कहना है कि अपने गुणवत्ता वाले कपड़ों के लिए हथकरघा बुनकर दुनियाभर में जाने जाते हैं। उनका कहना है कि COVID-19 महामारी से पहले मैं और मेरी पत्नी मिलकर 45-50 दिनों में 25,000 रुपए कमाते थे। अब, स्थिति निराशाजनक है। COVID-19 के कारण व्यापारी पहले से ही इतने ऑर्डर नहीं दे रहे हैं और भुगतान में देरी हो रही है। अगर GST को 12% तक बढ़ा दिया जाता है तो बिक्री गिर जाएगी और हम पर अधिक प्रभाव पड़ेगा।
70 से ज्यादा बुनकरों ने की आत्महत्या
हथकरघा कारोबार से जुड़े टीएनएम ने बताया कि कई व्यापारी कम बिक्री का हवाला देकर लंबित बिलों का भुगतान नहीं कर रहे हैं। मुनीश्वर कहते हैं कि यह वह समय है जब हमारे उद्योग, विशेषकर बुनकरों को सरकार से कुछ समर्थन मिलना चाहिए। इसके बजाय, यदि जीएसटी का नया दर लागू हुआ तो कई बुनकर सड़कों पर होंगे जिनके पास कोई वैकल्पिक आजीविका नहीं होगी। बुनकर कल्याण संघ के कार्यकर्ताओं के मुताबिक महामारी फैलने के बाद से अब तक बुनकरों की आत्महत्या से 70 से अधिक मौतें हुई हैं, क्योंकि इससे रोजगार का नुकसान हुआ है।
1500 करोड़ का हो चुका है नुकसान
नेशनल वीवर्स यूनाइटेड ज्वाइंट एक्शन कमेटी (JAC) के अध्यक्ष दासु सुरेश का कहना है कि महामारी से पहले 1,000-1,200 करोड़ रुपए का हथकरघा कारोबार हुआ करता था। कोरोना महामारी की वजह से इस कारोबार को अभी तक कम से कम 1,500 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है। इतना ही नहीं, कोरोना ने बुनकरों ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्ज में धकेल दिया है। दासू के मुताबिक हथकरघा का काम थ्री लाइन मोड में किया जाता है। एक व्यापारी मास्टर बुनकरों को थोक ऑर्डर देता है। बदले में सामग्री का उत्पादन करने वाले बुनकरों को ऑर्डर देते हैं। जीएसटी दरों में बढ़ोतरी सामग्री की कीमत और बाजार की स्थिति और उत्पादन की मांग को प्रभावित करेगी जो बुनकरों के लिए रोजगार पैदा करती है।
कारोबार से जुड़े हैं 50 हजार से ज्यादा बुनकर
एक अनुमान के मुताबिक राज्य में 18,000 मान्यता प्राप्त करघे और 5,000 गैर-मान्यता प्राप्त करघे हैं। हर करघे पर कम से कम दो-तीन बुनकर काम करते हैं। यानि 50 हजार से ज्यादा बुनकर हथकरघा कारोबार से जुड़े और उनकी आजीविका इसी पर निर्भर है।
किसी को नहीं बुनकरों की चिंता
राज्य और केंद्र सरकार बुनकरों की आजीविका के साथ राजनीति कर रही है। जबकि राज्य जीएसटी में वृद्धि के लिए केंद्र सरकार को दोषी ठहरा रहा है। जीएसटी परिषद में केंद्र सरकार ने दावा किया कि उन्होंने तेलंगाना सहित राज्य सरकारों के दबाव के कारण जीएसटी उठाया हैं। दासु सुरेश का कहना है कि राज्य सरकार को केंद्र को एक पत्र लिखकर इस कारोबार को पूरी तरह से जीएसटी मुक्त रखने की मांग करनी चाहिए। अगर बुनकरों की किसी को चिंता है तो केंद्र सरकार पर जीएसटी को पूरी तरह से माफ करने के लिए दबाव डालना होगा। नलगोंडा के मारिगुडा के संजीव एम का कहना है कि सरकार को हथकरघा को जीएसटी से छूट देने के उपाय करने चाहिए। अकेले मेरे गांव में लगभग 60 परिवार हैं जो हथकरघा क्षेत्र पर निर्भर हैं। यदि हथकरघा उत्पादों पर करों में लगातार वृद्धि की जाती है, तो हमारी छोटी सी मांग भी गायब हो जाएगी और व्यापारियों को अपनी लागत बढ़ानी होगी।
पद्मशाली समुदाय से संबद्ध हैं हथकरघा बुनकर
बता दें कि तेलंगाना उन महत्वपूर्ण राज्यों में से एक है जहां का हथकरघा उद्योग विश्व स्तर अपने गुणवत्ता वाले उत्पादों के लिए जाना जाता है। इनमें से अधिकांश बुनकर पद्मशाली समुदाय से हैं। इन्हें पिछड़ा वर्ग (OBC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। अन्य भूमिहीन कमजोर वर्गों से हैं। सिरसिला-करीमनगर, जोगुलम्बा गडवाल, पोचमपल्ली के तेलंगाना हथकरघा कपड़े घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों के लिए सर्वोत्तम गुणवत्ता वाली सामग्री देने के लिए जाने जाते हैं।
(चरण तेजा की यह रिपोर्ट मूल रूप से वायर में प्रकाशित)