बिकरू में 25 साल बाद टूटा डॉन का तिलिस्म, मधु ने चुनाव जीतकर लोकतंत्र को दी ऑक्सीजन
वर्ष 2015 में एक बार पुन: मौका मिलने पर विकास ने अपनी बहू अंजली को निर्विरोध प्रधान बनवाया। ग्रामीणों की मानें तो दुर्दांत विकास दुबे के आगे जुबान खोलने का मतलब मौत को दावत देना जैसा था। विकास की मौत के बाद मानो यहां आतंक व दहशतगर्दी का पूरी तरह से अंत हो चुका है...
जनज्वार, कानपुर। उत्तर प्रदेश के कानपुर बिकरू कांड को अंजाम देने वाले विकास दुबे की दहशत आज पूरी तरह से समाप्त हो गई। आतंक का पर्याय रहे विकास दुबे के खात्मे के उपरांत बिकरू ग्राम पंचायत में लगभग ढाई दशक बाद फिर लोकतंत्र का उदय हुआ। 25 साल बाद बिना किसी दबाव के चुनाव हुए। मतदान में गणना के बाद मधु ने जीत दर्ज करके इतिहास रच दिया है। यहां मधु और बिंदु कुमार के बीच कांटे की टक्कर रही। कड़े मुकाबले के बाद मधु ने जीत दर्ज की है।
महिला प्रत्याशी की जीत के बाद गांव में जश्न का माहौल है। यहां कुल 10 प्रत्याशी चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे थे, जबकि मधु और बिंदु कुमार के बीच टक्कर मानी जा रही थी। कड़े मुकाबले के बीच मधु ने 381 वोट हासिल किए हैं, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी बिंद कुमार को 327 वोट मिले हैं। पंचायत चुनाव में मतदान के बाद से बिकरू और पड़ोस के गांव भीटी गांव में चुनाव परिणाम आने से पहले ही आजादी जैसा माहौल है।
कुख्यात विकास दुबे के रहते यह मुश्किल था। बिकरू गांव कुख्यात विकास दुबे के कारण चर्चा में बना हुआ है। डॉन विकास दुबे ने 2 जुलाई 2020 की रात अपने साथियों के साथ मिलकर सीओ बिल्हौर समेत 8 पुलिसकर्मियों की तब निर्मम हत्या कर दी थी। आतंक का एक ऐसा नाम जिसके रहते वर्षों तक गांव में किसी ने उसके खिलाफ अपनी जुबान खोलने की कभी हिमाकत नहीं की। विकास दुबे साल 1995 में बिकरू का प्रधान बना था। उसकी दहशतगर्दी का नतीजा था कि एक बार ग्राम प्रधान बनने के बाद दोबारा उसकी मर्जी बगैर कोई प्रधान नहीं बन पाया।
साल 2000 में अनुसूचित जाति के लिए सीट आरक्षित हुई तो दुर्दांत विकास दुबे ने गांव की गायत्री देवी को प्रधान बनवाया, लेकिन सत्ता चलाने के सारे अधिकार अपने पास ही सुरक्षित रखे। वर्ष 2005 में सामान्य महिला सीट होने पर छोटे भाई दीपू दुबे की पत्नी अंजली दुबे को निर्विरोध प्रधान बनाया। वर्ष 2010 में पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित सीट पर गांव के रजनीकांत कुशवाहा को प्रधान बनाया, लेकिन बागडोर अपने हाथों में ही रखी।
विकास की तानाशाहियों से आजिज आकर आखिर तत्कालीन प्रधान रजनीकांत गांव छोड़कर ही चले गए। वर्ष 2015 में एक बार पुन: मौका मिलने पर विकास ने अपनी बहू अंजली को निर्विरोध प्रधान बनवाया। ग्रामीणों की मानें तो दुर्दांत विकास दुबे के आगे जुबान खोलने का मतलब मौत को दावत देना जैसा था। विकास की मौत के बाद मानो यहां आतंक व दहशतगर्दी का पूरी तरह से अंत हो चुका है।