History of Noida Twin Towers : ये है ट्विन टावर के अस्तित्व में आने और अंत की कहानी, क्या रियल एस्टेट डेवलपर्स लेंगे सबक?
History of Noida Twin Towers : सुपरटेक ने ट्विन टावर को गैर कानूनी तरीके से विकसित किया जो विवाद और विध्वंश का कारण बना। बिल्डर ने पहले दिन से बड़े पैमाने पर एनडीए की गाइडलाइन का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन किया और बायर्स के हितों का ध्यान नहीं रखा।
History of Noida Twin Towers : यूपी ( Uttar Pradesh ) के नोएडा ( Noida ) के सेक्टर 93 स्थित सुपरटेक का ट्विन टॉवर ( Noida Supertech Twin tower ) बारूदी विस्फोट के साथ ही आज जमींदोज हो गया। अपने 18 साल के इतिहास में ट्विन टावर ने कई उतार-चढ़ाव देखे। इसके डेवलपर सुपरटेक ( Supertech ) के काले कारनामों की वजह से ट्विट टावर ( Noida twin tower )711 निवेशकों के सपनों का आशियाना तो नहीं बना पाया, लेकिन रियल एस्टेट के इतिहास में एक काले चैप्टर के रूप में इसे जरूर याद दिया जाएगा। ऐसा इसलिए कि ट्विन टावर भ्रष्ट रियल एस्टेट डेवलपर्स ( Corrupt real estate developers ), राजनेता और नौकरशाहों की वजह से यह तय प्रारूप में कभी विकसित हुई ही नहीं और विध्वंश से पहले करीब 800 करोड़ की 32 मंजिला ये इमारत लोगों के लिए सेल्फी प्वाइंट भर साबित हुई।
जमीन आवंटन से लेकर बिग ब्लास्ट तक
दरअसल, 23 नवंबर 2004 को सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के लिए नोएडा प्राधिकरण ने जमीन आवंटन किया था। इसके लिए सुपरटेक बिल्डर को कुल 84,273 वर्गमीटर जमीन आवंटित की गई। 16 मार्च, 2005 को इसकी लीज डीड हुई। जमीन की पैमाइश में लापरवाही के कारण कई बार जमीन बढ़ी और घटी। इसी क्रम में यहां पर प्लॉट नंबर 4 में आवंटित जमीन के पास ही 6,556.61 वर्गमीटर जमीन का एक टुकड़ा निकल आया। इसे बिल्डर ने ही अपने नाम पर आंवटित करा लिया। इसके लिए 21 जून 2006 को लीज डीड की गई लेकिन इन दो अलग-अलग प्लॉट्स को नक्शा पास होने के बाद एक प्लॉट बना दिया गया। बाद में इसी पर सुपरटेक ने एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट लॉन्च कर दिया।
11 मंजिल के 16 टावर्स बनाने की थी योजना
रियल एस्टेट डेवलपर सुपरटेक ने इस प्रोजेक्ट में ग्राउंड फ्लोर के अलावा 11 मंजिल के 16 टावर्स बनाने की योजना तैयार की थी। नक्शे के हिसाब से आज जिस स्थान पर 32 मंजिला ट्विन टावर खड़े हैं वहां पर ग्रीन पार्क दिखाया गया था। 2008-09 में इस प्रोजेक्ट को नोएडा प्राधिकरण से कंप्लीशन सर्टिफिकेट भी मिल गया। 28 फरवरी 2009 को उत्तर प्रदेश शासन ने नए आवंटियों के लिए एफएआर बढ़ाने का निर्णय लिया। पुराने आवंटियों को कुल एफएआर का 33 प्रतिशत तक खरीदने का विकल्प भी दिया था। इसी के साथ बिल्डरों को भी अधिक फ्लैट्स बनाने की छूट मिली थी। इसके बाद सुपरटेक ग्रुप को भी इस बिल्डिंग की ऊंचाई 24 मंजिल और 73 मीटर तक बढ़ाने की अनुमति मिल गई। इसके बाद तीसरी बार जब फिर से रिवाइज्ड प्लान में बिल्डिंग की ऊंचाई 40 और 39 मंजिला करने के साथ ही 121 मीटर तक बढ़ाने की अनुमति सुपरटेक को मिली तो होम बायर्स का सब्र टूट गया।
नक्शा नहीं देने पर बायर्स और डेवलपर के बीच शुरू हुई थी जंग
बायर्स और आरडब्लूए ने बिल्डर से बात कर नक्शा दिखाने की मांग की लेकिन बायर्स के मांगने के बावजूद बिल्डर ने लोगों को नक्शा नहीं दिखाया। आरडब्लूए ने नोएडा अथॉरिटी से नक्शा देने की मांग की। यहां भी घर खरीदारों को कोई मदद नहीं मिली। आरडब्लूए अध्यक्ष यूबीएस तेवतिया का कहना है कि नोएडा अथॉरिटी ने बिल्डर के साथ मिलीभगत करके ही इन टावर्स के निर्माण को मंजूरी दी है। नोएडा अथॉरिटी ने नक्शा मांगने पर कहा कि वो बिल्डर से पूछकर नक्शा दिखाएगी। जबकि बिल्डिंग बायलॉज के मुताबिक किसी भी निर्माण की जगह पर नक्शा लगा होना अनिवार्य है। इसके बावजूद बायर्स को प्रोजेक्ट का नक्शा नहीं दिखाया गया। बायर्स का विरोध बढ़ने के बाद सुपरटेक ने इसे अलग प्रोजेक्ट बताया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचे बायर्स
सुपरटेक के इस रुख के बाद 2012 में बायर्स ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया। हाईकोर्ट के आदेश पर पुलिस जांच के आदेश दिए गए। पुलिस जांच में बायर्स की बात को सही बताया गया। यूबीएस तेवतिया की माने तो इस जांच रिपोर्ट को भी दबा दिया गया। इस बीच बायर्स अथॉरिटी के चक्कर लगाते रहे लेकिन वहां से नक्शा नहीं मिला। इस बीच खानापूर्ति के लिए अथॉरिटी ने बिल्डर को नोटिस तो जारी किया लेकिन कभी भी बिल्डर या अथॉरिटी की तरफ से बायर्स को नक्शा नहीं मिला।
दो टावर की बीच दूरी का नहीं रखा गया ख्याल
टावर्स की ऊंचाई बढ़ने पर दो टावर के बीच का अंतर बढ़ाया जाता है। खुद फायर ऑफिसर ने कहा कि एमराल्ड कोर्ट से एपेक्स या सियाने की न्यूनतम दूरी 16 मीटर होनी चाहिए। एमराल्ड कोर्ट के टावर से इसकी दूरी महज 9 मीटर थी। इस नियम के उल्लंघन पर नोएडा अथॉरिटी ने फायर ऑफिसर को कोई जवाब नहीं दिया। 16 मीटर की दूरी का नियम इसलिए जरूरी है कि क्योंकि ऊंचे टावर के बराबर में होने से हवाएं धूप रुक जाती है। इसके साथ ही आग लगने की दशा में दो टावर्स में कम दूरी होने से आग फैलने का खतरा बढ़ जाएगा। नए नक्शे में इन बातों का ख्याल नहीं रखा गया। बिल्डर ने आईआईटी रुड़की के एक असिस्टेंट प्रोफेसर से निजी मंजूरी लेकर निर्माण कार्य शुरू करा दिया। जबकि इस तरह के प्रोजेक्ट में आईआईटी की आधिकारिक मंजूरी आवश्यक है। इस बात का भी पालन नहीं किया गया।
विवाद कोर्ट में जाते ही तेजी से बनने लगे ट्विन टावर
2012 में ये मामला जब इलाहाबाद हाईकोर्ट में पहुंचा तो एपेक्स और सियाने की महज 13 मंजिलें बनी थीं लेकिन डेढ़ साल के अंदर ही सुपरटेक ने 32 स्टोरीज का निर्माण पूरा कर दिया। इसके लिए बिल्डर ने दिन रात कंस्ट्रक्शन कराया था। 2014 में हाईकोर्ट ने बिल्डर को बड़ा झटका दिया और इन्हें गिराने का आदेश जारी कर दिया। इसके बाद 32 मंजिल पर ही इस इमारत का काम रुक गया। काम न रुकते तो ये टावर्स 40 और 39 मंजिल तक बन जाते। दूसरे रिवाइज्ड प्लान के मुताबिक अगर ये टावर 24 मंजिल तक रुक जाते तो भी ये मामला सुलझ जाता क्योंकि ऊंचाई के हिसाब से दो टावर्स के बीच की दूरी का नियम टूटने से बिल्डर को बचा लेता। परिणाम यह निकला कि सुप्रीम कोर्ट ने भी ट्विन टावर को गिराने का आदेश दे दिया। साथ ही निवेशकों के पैसे भी लौटाने को कहा। अंत में वही हुआ, भ्रष्टाचार की वजह से ट्विन टावर ( Noida Twin Tower Demolished ) 28 अगस्त को गिरा दिया गया।
ट्विन टावर गिराने में खर्च हुए 21 करोड़
History of Noida Twin Towers : ट्विन टावर्स को गिराने में 21 करोड़ से अधिक पैसे खर्च हुए। इसमें से 17.55 करोड रुपए का खर्च बिल्डर से वसूला जाएगा। एनडीए चार करोड़ रुपए व अन्य खर्च 60 हजार टन मलबा बेचकर कमाएगी। दूसरी तरफ इन 2 टावर्स को बनाने में सुपरटेक बिल्डर ने करीब 200 से 300 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। वहीं इन्हें गिराने का आदेश जारी होने से पहले तक इन टावरों में बने फ्लैट्स की मार्केट वैल्यू बढ़कर 700 से 800 करोड़ तक पहुंच चुकी थी। ये वैल्यू तब है जबकि विवाद बढ़ने से इनकी वैल्यू घट चुकी थी।