सनसनीखेज कंटेंट परोसने के फेर में कथित मेनस्ट्रीम मीडिया कैसे गिरा रहा है अपनी साख, पढ़िए
बताया जा रहा है कि घर की तलाशी के दौरान सीबीआई को घर से 'खून' से सने कपड़े मिले, जिसे वो अपने साथ ले गई है, हालांकि आरोपी लवकुश के परिजनों का कहना है कि इन कपड़ों पर खून के धब्बे नहीं थे, बल्कि पेंटिंग के निशान हैं.....
हाथरस। यूपी के हाथरस में चंदपा गांव में हुआ तथाकथित रेप व हत्याकांड लगातार किसी सस्पेंस भरी क्राईम वेब सीरीज की तरह होता जा रहा है और इसे ऐसा बनाने में मीडिया के सबसे बड़े हाथ व पैर दोनो हैं। आज मीडिया नई कहानी खोजकर लाया है कि चार आरोपियों में से एक के घर में सीबीआई को खून से सने कपड़े मिले हैं जिन्हें सीबीआई तफ्तीश के लिए अपने साथ ले गई है।
मामले की सच्चाई और मिले कपड़ों की हकीकत जानने के लिए हमने कई एक बेबसाइटें खंगाली। गोदी मीडिया का उपनाम पा चुकी कई एक वोबसाईटों में हमने एक ही तरह की कहानी पाई। मसलन सनसनीखेज हैडिंग के बाद नीचे मूलखबर में लीपापोती थी। न्यूज 18, न्यूज 24, जी न्यूज, आज तक जैसी वेबसाइटों ने लगभग एक ही सनसनी बनाकर खबरें परोसी। सनसनीखेज हैडिंग्स बनाई गईं। 'सीबीआई के हाथ लगा अहम सुराग' 'लवकुश के घर में मिले खून से सने कपड़े।' इत्यादि इत्यादि।
गुरुवार 15 अक्टूबर को सीबीआई की टीम ने हाथरस कांड के आरोपी लवकुश के घर छापा मारा था। इस दौरान टीम ने परिजनों से पूछताछ के साथ ही पूरा घर खंगाला था। करीब ढाई घंटे तक चली इस तलाशी में सीबीआई की टीम को लवकुश के घर से 'खून' से सने कपड़े मिले थे। जिसे सीबीआई टीम अपने साथ ले गई है। सीबीआई उत्तर प्रदेश के हाथरस केस की गुत्थी सुलाझाने में लगातार जुटी है। इससे पहले इस मामले में सीबीआई पहले ही पीड़िता के भाई और पिता से पूछताछ कर चुकी है।
बताया जा रहा है कि घर की तलाशी के दौरान सीबीआई को घर से 'खून' से सने कपड़े मिले, जिसे वो अपने साथ ले गई है। हालांकि आरोपी लवकुश के परिजनों का कहना है कि इन कपड़ों पर खून के धब्बे नहीं थे, बल्कि पेंटिंग के निशान हैं। लगभग सभी लीडिंग मीडिया साईटों ने सनसनीनुमा हैडिंग के बाद ये लाईन जरूर लिखी है। यही बात लवकुश के नाबालिग भाई ने भी कही है कि सीबीआई जो कपड़े ले गई है वो उसके बड़े भाई रवि के हैं। वह फैक्टरी में पेंटिंग का काम करते हैं और कपड़ों पर लाल रंग लगा था, जिसे खून समझकर सीबीआई अपने साथ ले गई है।
सीबीआई जो भी जांच करेगा वह बाद में पता चलेगा लेकिन इस मामले में शुरू से मीडिया की जो भूमिका रही है वह जरूरत से ज्यादा फूहड़ और साख को गिराने वाली कही जा सकती है। करोड़ों के व्यापार का वारा न्यारा करने वाली मीडिया इंडस्ट्री की कथित टॉप वेबसाईटों का यह हाल है जो कन्टेंट बेचने की होड़ में गैर-जिम्मेदाराना रूख अपना जाती हैं।
टीआरपी की अंधी दौड़ का अंदाजा अभी हाल ही में हुई घटना से लगाया जा सकता है जिसमें मुंबई के पुलिस कमिश्नर ने अर्णब के रिपब्लिक टीवी सहित दो मराठा चैनलों पर टीआरपी चोरी का आरोप लगाया था और सिद्ध भी किया था कि कैसे मामले में एक विशेष बॉक्स लगे घरों में 400-500 रूपये देकर चैनल चालू रखवाया जाता था। ताकि टीआरपी हाई हो। टीआरपी हाई होगी तो विज्ञापन और कमाई बढ़ जाएगी। जनता डूबे मरे क्या फर्क है इनका मदारी नाच चलता रहना चाहिए।