कानपुर : राजनीति के खेत में तैयारी होती है विकास दुबे जैसी अपराध की फसल, पढ़िये पूरी कहानी

कानपुर के हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे का नाम आज हर किसी की जुबान पर है। उसने व उसके लोगों ने आठ पुलिसकर्मियों की हत्या की है। विकास दुबे राजनीतिक आकाओं के शरण में ही अपराध की दुनिया का खौफ बना...

Update: 2020-07-03 06:15 GMT

जनज्वार। राजनीति और अपराध का रिश्ता दशकों पुराना है। राजनेता अपनी राजनीति को चमकाने के लिए अपराधियों का सहारा लेते हैं और अपराधी खुद को संरक्षित महसूस करने के लिए राजनीति का। इसकी शुरुआत कई बार जिला-तहसील, संसदीय सीट-विधानसभा सीट के स्तर पर शुरू होती है तो कई दफा इसका प्रभाव तब पूरे प्रदेश में महसूस किया जाता है जब बड़े नेता इनको शह देते हैं।

उत्त्तरप्रदेश व बिहार सहित दूसरे राज्यों में इसके ढेरों किस्से हैं। ताजा मामला उत्तरप्रदेश के कानपुर के अपराधी विकास दुबे है, जिसने अपने गुंडों के साथ गिरफ्तार करने आई आठ पुलिस कर्मियों को 2 जुलाई की रात गोली मार कर हत्या कर दी।

विकास दुबे राजनीति के जरिए ही अपराध में आया। उसकी पहली आपराधिक रंजिश एक राजनीतिक जुलूस में हुई थी और फिर वह हिस्ट्रीशीटर अपराधी बन गया। बात 24-25 साल पहले यानी 1996 की है। कानपुर की चौबेपुर विधानसभा सीट से हरिकृष्ण श्रीवास्तव व संतोष शुक्ल चुनाव लड़ रहे थे। हरिकृष्ण श्रीवास्तव उस चुनाव में बसपा के उम्मीदवार थे। हरिकृष्ण श्रीवास्तव चुनाव जीत गए और विजय जुलूस निकाला गया। इसी दौरान हरिकृष्ण श्रीवास्तव व संतोष शुक्ल के बीच विवाद हो गया। दोनों के समर्थक उलझ पड़े। इस जुलूस में विकास शुक्ला भी शामिल था।

विकास दुबे की इसी दौरान संतोष शुक्ला से अदावत हो गई। उसने तय कर लिया कि इस रंजिश का वह बदला लेगा और  2001 को उसने कानपुर के शिवली थाने में भाजपा नेता संतोष शुक्ला की गोली मार कर हत्या कर दी। उस वक्त  संतोष शुक्ला को राज्य मंत्री का दर्जा हासिल था। यानी एक अपराधी ने थाने में घुसकर एक राज्य मंत्री की गोली मार कर हत्या कर दी। एसटीएफ ने विकास दुबे को संतोष शुक्ला हत्याकांड मामले में 2017 में गिरफ्तार किया था।

इस मामले का कोई गवाह नहीं होने के कारण वह बाद में इससे बरी हो गया। उसके मामले में गवाह बनना भी खतरे से खाली नहीं है। शायद यही वजह है कानपुर स्थित उसके गांव के लोग आज कह रहे हैं कि रात में क्या हुआ, कैसे हुआ उन्हें पता नहीं।

इसके पहले 2000 में कानपुर के शिवली थाना क्षेत्र स्थित ताराचंद इंटर काॅलेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय की हत्या में उसका नाम आया था।

उस पर शिवली थाना क्षेत्र में रामबाबू यादव की हत्या की साजिश जेल में रहकर रचने का आरोप है। यह मामला 2000 का है। 2004 में केबुल व्यवसायी दिनेश दुबे की हत्या हुई थी, जिसका आरोप उसी पर लगा था।

कल इतनी बड़ी संख्या में पुलिसवालों को मौत के घाट उतारने से पहले वाली घटना पर गौर करें तो पुलिस कल विकास दुबे के खिलाफ कानपुर के राहुल तिवारी नामक एक व्यक्ति ने 307 का एक मामला दर्ज कराया था, जिसके सिलसिले में पुलिस उसे पकड़ने उसके बिकरू गांव स्थित गई थी। विकास व उसके गैंग को पुलिस के आने की भनक पहले ही मिल गई थी, इसलिए वह और उसके गैंग के 50 से अधिक सदस्य किलेनुमा मकान की छत पर पुलिस की कार्रवाई का जवाब देने के लिए तैयार थे।

विकास दुबे बसपा से जुड़ा हुआ था और जब मायावती मुख्यमंत्री थीं तब उसे अपराध की दुनिया में पनपने का तेजी से इस वजह से लाभ मिला, क्योंकि वह सत्ताधारी दल के करीब था। उसने जिला पंचायत का चुनाव लड़ा था और विजयी भी हुआ था। जिला पंचायत के एक सदस्य के रूप में उसका रूतबा जिला पंचायत के अध्यक्ष से कहीं अधिक था।

सपा और भाजपा नेताओं से भी उसकी नजदीकियां जगजाहिर थीं। यानी सत्ता का उसे पूरा संरक्षण प्राप्त था। यही नहीं पुलिस प्रशासन में भी उसकी अच्छी पैठ थी। शासन-प्रशासन में गहरी पैठ के चलते ही वह अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह बना हुआ था और बड़े पैमाने पर अपराधों को अंजाम देता था। 

Tags:    

Similar News