Kushinagar Election 2022: क्या RPN Singh बचा पाएंगे लाज या Swami Prasad Maurya का चलेगा जादू , जानिए, कैसा रहेगा मुकाबला?

UP Election 2022: यूपी विधान सभा चुनाव नेताओं के पाला बदल के खेल के चलते देशभर में चर्चा में है। भाजपा सरकार के मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के सपा में शामिल होने के बाद इसे बड़ा राजनीतिक घटना क्रम बताते हुए एक सप्ताह तक इसके लाभ व हानि पर चर्चा चलती रही।

Update: 2022-01-27 12:13 GMT

Kushinagar Election 2022: क्या RPN Singh बचा पाएंगे लाज या Swami Prasad Maurya का चलेगा जादू , जानिए, कैसा रहेगा मुकाबला?

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

UP Election 2022: यूपी विधान सभा चुनाव नेताओं के पाला बदल के खेल के चलते देशभर में चर्चा में है। भाजपा सरकार के मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के सपा में शामिल होने के बाद इसे बड़ा राजनीतिक घटना क्रम बताते हुए एक सप्ताह तक इसके लाभ व हानि पर चर्चा चलती रही। अब राहुल गांधी की टीम के करीबीयों में से एक आरपीएन सिंह को तोड़कर भाजपा में शामिल कराने के नतीजों पर चर्चा शुरू हो गई है। आरपीएन सिंह कुशीनगर जिले से आते हैं,जहां की सात सीटों में से छह पर भाजपा गठबंधन को तथा एक मात्र सीट पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू को विजय मिली थी। अब बदले हालात में संख्या के अनुसार चार पर भाजपा के विधायक रह गए हैं। शेष तीन सीटों में से एक कांग्रेस व एक सुभासपा के पास है तथा स्वामी प्रसाद मौर्य अब भाजपा से नाता तोड़कर सपा के हो गए हैं। ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि आरपीएन सिंह अपने नए घर में आकर भाजपा की लाज बचा पाएंगे या स्वामी प्रसाद मौर्य का यहां जादू चलेगा। इस पर मंथन मतदाताओं के बीच शुरू हो गया है।

कुशीनगर जिले में 2 संसदीय निर्वाचन क्षेत्र हैं। पहली खुद कुशीनगर है और दूसरी आंशिक रूप से देवरिया लोकसभा है। इस जिले में कुल 7 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र खड्डा, पडरौना, तमकुहीराज, फाजिलनगर, कुशीनगर, हाटा और रामकोला है। जिसमें से 2 विधानसभा सीटें तमकुहीराज और फाजिलनगर देवरिया लोकसभा के अंतर्गत आती हैं। बाकी बची सीटें कुशीनगर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है।

2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 7 में से 5 सीटों पर जीत हासिल की थी। रामकोला विधानसभा सीट पर तब भाजपा के सहयोगी दल सुभासपा से रामानंद विधायक बने थे। वहीं तमकुहीराज विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। इसी विधानसभा सीट से कांग्रेस के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू दो बार से चुनाव जीत रहे हैं। बाकी अन्य पांच सीटें खड्डा, पडरौना, फाजिलनगर, कुशीनगर और हाटा भारतीय जनता पार्टी ने जीती थी। अब सवाल उठता है कि भाजपा अपनी पुरानी साख को बनाए रख पाने में कितना कामयाब हो पायेगी। ऐसे वक्त में जब भाजपा के साथ न अब स्वामी प्रसाद मौर्य हैं और न ही ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा का गठबंधन रह गया है। अब नई बात यह है कि आरपीएन सिंह जैसे कददावर नेता अब भाजपा के हो गए हैं।

वर्ष 2017 के विधान सभा चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो कुशीनगर सीट पर भारतीय जनता पार्टी के रजनीकांत मणि त्रिपाठी विजयी हुए थे। इन्होंने बहुजन समाज पार्टी के बंटी राव को 48000 से अधिक वोटों से हराया था। इस बार बसपा ने अन्य को उम्मीदवार बनाया है। जबकि भाजपा के उम्मीदवार घोषित होने हैं। पूर्व में यह सीट दो बड़े नेताओं के सियासी जंग के लिए जानी जाती थी। इस सीट से समाजवादी पार्टी के दिग्गज ब्रह्माशंकर त्रिपाठी और भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे सूर्य प्रताप शाही चुनाव लड़ते रहे हैं। ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी इस सीट से तीन बार लगातार वर्ष 2002, 2007 और 2012 में विधायक रहे हैं। यह सीट ब्राह्मण बाहुल्य सीट बताई जाती है। पहले यह सीट कसया विधानसभा के नाम से जानी जाती थी। अबकी बार यहां मुख्य लड़ाई सपा और भाजपा के बीच ही है।

तमकुहीराज विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू वर्ष 2017 का चुनाव जीते थे, वे पिछले दो बार से इस सीट पर जीत हासिल कर रहे हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने जगदीश मिश्रा को यहां से उम्मीदवार बनाया था, लेकिन वह 18000 वोटों से चुनाव हार गए। इस सीट पर पिछड़ी जाति के मतदाताओं का प्रभाव है और वर्तमान विधायक लल्लू पिछली वर्ग से आते हैं। साथ ही लल्लू इस विधानसभा में अपने व्यक्तिगत जनाधार के लिए अधिक जाने जाते हैं। 2012 से यहां पर समाजवादी पार्टी काफी पीछे दिखाई पड़ती है। इसलिए इस बार भी मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच में माना जा रहा है।

पडरौना विधानसभा सीट कभी कांग्रेस पार्टी के वर्चस्व की सीट हुआ करती थी। यहां से कांग्रेस के आरपीएन सिंह कई दफा चुनाव जीत चुके हैं। लेकिन वर्तमान में सीट आरपीएन सिंह से नहीं बल्कि भाजपा से सपा के नेता बन चुके स्वामी प्रसाद मौर्य के मजबूत किले के रूप में जानी जाती है।1996 से पडरौना विधानसभा सीट पर चुनाव जीतते आ रहे आरपीएन सिंह सन 2009 में लोकसभा के लिए चुने गए। तब हुए उपचुनाव में स्वामी प्रसाद मौर्य ने बसपा के टिकट पर यहां से चुनाव जीता था। फिर 2012 में बसपा के टिकट पर और 2017 में भाजपा के टिकट पर वह यहां से चुनाव जीत चुके हैं। इस बार संभावना है कि खुद वह या उनके पुत्र इस सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। आगामी विधानसभा चुनाव में यह सीट स्वामी प्रसाद मौर्य के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन चुकी है क्योंकि भाजपा हर हाल में दगा कर गए स्वामी प्रसाद मौर्य को चुनौती देने की तैयारी कर रही है।

आरपीएन सिंह के प्रभाव का लाभ लेते हुए भाजपा उन्हें इस सीट से चुनाव लड़ा सकती है। इस विधानसभा सीट पर सबसे अधिक 84000 मुस्लिम मतदाता है। इसके साथ ही मुख्य रूप से 76000 अनुसूचित जाति, 52 हजार ब्राह्मण, 48000 यादव, 46000 सैंथवार, 44,000 कुशवाहा जाति की मतदाता है। भाजपा की नजर 52000 ब्राम्हण और 46000 सैंथवार मतदाताओं पर है। लेकिन मुस्लिम और यादव गठजोड़ की वजह से सपा मजबूत चुनौती दे सकती है। स्वामी प्रसाद मौर्य की कुशवाहा जाति का जुड़ना इस सीट को सपा के लिए और सुरक्षित बना देता है। कांग्रेस की तरफ से मनीष जायसवाल को उम्मीदवार बनाया गया है। लेकिन मनीष के आरपीएन सिंह का करीबी होने के नाते वे चुनाव न लड़कर भाजपा में जा सकते हैं। ऐसे में कांग्रेस को अपना उम्मीदवार तलाशना पड़ेगा।

2017 विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर फाजीलनगर से गंगा कुशवाहा ने 41 हजार से अधिक वोटों से यहां जीत हासिल की थी। दूसरे स्थान पर समाजवादी पार्टी के विश्वनाथ रहे थे। गंगा सिंह कुशवाहा इस सीट से लगातार दो बार चुनाव जीत चुके हैं। यह विधानसभा सीट कुशवाहा बाहुल्य सीट बताई जाती है। स्वामी प्रसाद मौर्य के सपा में जाने के बाद से इसका लाभ पार्टी को मिलेगी। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य समाज की आबादी भी इस सीट पर निर्णायक है। चर्चा इस बात की भी है कि स्वामी प्रसाद मौर्य अपने पुत्र को इस सीट से लड़ाने की बात कर सकते हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य की नजर उनके कुशवाहा बिरादरी के साथ यादव और मुस्लिम की कुल 19 फीसदी वोट बैंक पर है। अगर कुशवाहा, यादव और मुस्लिम एक साथ इस सीट पर मतदान करें तो स्वामी प्रसाद मौर्या के पुत्र के लिए यह सीट आसान हो जाएगी।

हाटा विधानसभा क्षेत्र से 1985 से लेकर आज तक कोई भी प्रत्याशी या पार्टी यहां से दो बार लगातार नहीं जीता है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के पवन केडिया ने समाजवादी पार्टी के राधेश्याम सिंह को तकरीबन 53 हजार से अधिक वोटों से चुनाव हराया था। इससे पहले भाजपा यह सीट 2007 और 1995 में भी जीत चुकी है। 2012 में समाजवादी पार्टी से राधेश्याम सिंह यहां से चुनाव जीते थे। ब्राह्मण बहुल्य इस विधानसभा सीट पर क्षत्रिय, यादव, कुशवाहा और मुसलमान भी अपना गहरा प्रभाव रखते हैं। इस बार भी यहां मुकाबला सपा बनाम भाजपा होता दिखाई पड़ रहा है। इस सीट पर भी स्वामी प्रसाद मौर्य के होने का लाभ मिल सकता है।

खड्डा विधानसभा सीट 2012 से पहले विधानसभा सीट नौरंगिया के नाम से जानी जाती थी। 2012 में इसका नाम बदलकर खड्डा विधानसभा कर दिया गया। 2017 विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के जटाशंकर त्रिपाठी ने बसपा के विजय प्रताप कुशवाहा को 44 हजार से अधिक मतों से चुनाव हराया था। यह विधानसभा सीट कभी भी किसी एक पार्टी के वर्चस्व की सीट नहीं रही है। हालांकि पूर्णमासी देहाती यहां से तीन दफा चुनाव जीत चुके हैं। इस सीट पर सबसे अधिक ब्राम्हण 17 प्रतिशत बताए जाते हैं। ऐसे में भाजपा इस सीट पर कड़ा मुकाबला देने की तैयारी में है।

रामकोला विधानसभा अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट है। 2017 विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपने तत्कालीन सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को यह सीट समझौते के अंतर्गत दी थी। इस सीट पर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के रामानंद बौद्ध विधायक है। खड्डा विधानसभा से चुनाव लड़ते रहे पूर्णमासी देहाती ने 2017 के चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ा था। वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में सुभासपा का गठबंधन समाजवादी पार्टी के साथ हो चुका है। अब यहां देखना दिलचस्प होगा कि क्या सपा फिर गठबंधन के अंतर्गत यह सीट ओमप्रकाश राजभर की पार्टी को देगी? पूर्व में इस सीट पर राधेश्याम सिंह दो बार समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं। इस विधानसभा सीट पर सैंथवार क्षत्रिय, मुस्लिम और हरिजन निर्णायक माने जाते हैं।

फिलहाल सात सीटों के समीकरण से यह साफ है कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू का तमकुहीराज सीट पर जीत की दावेदारी सबसे मजबूत रहेगी। अन्य सीटों पर बदली राजनीतिक परिस्थितियों में सुभासपा के सपा के साथ गठबंधन होने व स्वामी प्रसाद मौर्य के सपा में शामिल हो जाने तथा दूसरी तरफ आरपीएन सिंह के भाजपा में चले जाने के कारण मतों के ध्रुवीकरण पर इसका अवश्य असर पड़ेगा। जिसकी तस्वीर साफ सभी दलों के उम्मीदवारों के नामों की घोषणा के बाद ही होगी।

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