UP Elections 2022: UP चुनाव में नई शिक्षा नीति के विरोध में बड़ी गोलबंदी में जुटे संगठन, विरोध प्रदर्शन कल

UP Election 2022: नई शिक्षा नीति का विरोध कर रहे छात्र व शिक्षकों के साझा संगठन अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच अपने आंदोलन को तेज करने में जुटा हुआ है। संगठन का मानना है कि यूपी समेत पांच राज्यों में होनेवाले विधान सभा चुनाव में जनता के मुददों पर बहस तेज करने की जरूरत है।

Update: 2021-12-23 14:38 GMT

UP Elections 2022: UP चुनाव में नई शिक्षा नीति के विरोध में बड़ी गोलबंदी में जुटे संगठन, विरोध प्रदर्शन कल

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

UP Election 2022: नई शिक्षा नीति का विरोध कर रहे छात्र व शिक्षकों के साझा संगठन अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच अपने आंदोलन को तेज करने में जुटा हुआ है। संगठन का मानना है कि यूपी समेत पांच राज्यों में होनेवाले विधान सभा चुनाव में जनता के मुददों पर बहस तेज करने की जरूरत है। इसके तहत नई शिक्षा नीति के विरोध में 24 दिसंबर को देशभर में विरोध प्रदर्शन का आहवान किया है। इस मंच के साथ एक सौ से अधिक संगठन अपनी साझेदारी जता रहे हैं। संगठन के तरफ से सभी जिला मुख्यालयों पर नई शिक्षा नीति-2020 को वापस लेने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन करने के साथ ही राष्टपति को संबोधित पत्रक जिलाधिकारी को सौंपने का निर्णय लिया गया है।

जिसकी सफलता को लेकर एक दिन पूर्व संगठन के कार्यकर्ता आवश्यक तैयारी में जुटे रहे। मंच के केंद्रीय कार्यकारणी के सदस्य डा. चतुरानन ने कहा कि हमें सभी के लिए मुफ्त व वैज्ञानिक शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार की गारंटी करनी है तो यकीन मानिए लड़ने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं है। अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच ने 24 दिसंबर 2021 को राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 को रद्द करने और सबको मुफ्त व अनिवार्य तौर पर वैज्ञानिक शिक्षा उपलब्ध कराने की मांग को लेकर स्थानीय स्तर पर आंदोलन करने व जिलाधिकारी के माध्यम से राष्ट्रपति को ज्ञापन देने का आह्वान किया है। इस क्रम में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ भवन पर आइसा,दिशा,आईसीएम समेत विभिन्न संगठनो के कार्यकर्ता इकट्ठा हों और जिलाधिकारी को ज्ञापन देकर अपनी आवाज बुलंद करेंगे। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार, बिना छात्र-छात्राओं व जनता से राय लिए बिना जन विरोधी व शिक्षा-अधिकार

विरोधी राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 लेकर आयी है। जिसका विरोध हम लगातार विभिन्न आयोजनों के माध्यम से करते रहे हैं। इस अभियान में लगातार देश के छात्र व शिक्षक संगठनों की बढ़ती भागीदारी स्वागत योग्य है।

नई शिक्षा नीति का इसलिए कर रहे विरोध

यह नई शिक्षा नीति का विरोध करनेवाले संगठनों का कहना है कि स्वतंत्रता आंदोलन की आकांक्षाओं के बिल्कुल विपरीत जाकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा तैयार की गई है। इस नीति के माध्यम से गरीबों, दलितों, आदिवासियों, महिलाओं को शिक्षा सेे बिल्कुल दूर करने की तैयारी कर ली गयी है। यह नीति शिक्षा को देशी-विदेशी पूंजीपतियों के हवाले करने पर आमादा है। यह शिक्षा नीति हमारे समाज मे पहले से व्याप्त जाति आधारित और संप्रदाय आधारित विभाजन को भी और तेज करेगी। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में सरकार संसाधनों की कमी का रोना रोती है। ऐसा कहते हुए वो शिक्षा के डिजिटलाइजेशन की बात करती है। ताकि उसे कुर्सी, मेज, इंफ्रास्ट्रक्चर व अन्य चीजों पर कोई खर्च न करना पड़े। जिसका नतीजा यह है कि सबकुछ खुल चुका है लेकिन

जानबूझकर हमारे विश्वविद्यालयों को नहीं खोला जा रहा है। जबकि हर कोई जानता है कि ऑनलाइन शिक्षा कभी ऑफलाइन शिक्षा का विकल्प हो ही नहीं सकती। आज धड़ल्ले से प्राइवेट कॉलेज व यूनिवर्सिटीज खुल रहे हैं। जहां स्नातक के एक वर्ष की फीस

लाखों रुपये है। ऐसा गरीबों, मजदूरों- किसानों के बच्चों को शिक्षा से दूर करने के लिए किया जा रहा है। बार-बार यह शिक्षा नीति 'स्वर्णिम अतीत' की बात करती है। लेकिन उस 'स्वर्णिम अतीत' में चार्वाक, बुद्ध, जैन दर्शन का जिक्र कही नही होता। सिर्फ उन्हीं दर्शनों की बात होती है जो आरएसएस की विचारधारा के अनुकूल हैं।

संविधान के मूल भावना के विपरित है नई शिक्षा नीति

अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच का कहना है कि नई शिक्षा नीति हमारे संविधान के मूल भावना के विरूद्ध है। पूरी शिक्षा नीति में समाजवाद व धर्मनिरपेक्ष शब्द का कहीं भी उल्लेख नहीं है। इस शिक्षा नीति में बहुत चतुराई से ऐतिहासिक रूप से वंचित समाजो को संविधान द्वारा प्रदत्त आरक्षण की व्यवस्था को भी खत्म किया जा रहा है। यह शिक्षा नीति बार- बार मेरिट पर जोर देती है। जबकि देश में अलग- अलग तबकों के असमान विकास पर कोई बात नही करती। नई शिक्षा नीति के अनुसार 60 प्रतिशत क्लासेज ऑनलाइन चलेंगी और 40 प्रशित ऑफलाइन। निर्मला सीतारमण ने यह साफ कह दिया है कि विश्वविद्यालय ऑनलाइन डिग्री भी देंगी। इसमें चार तरह की डिग्रियां दी जाएंगी (1) सर्टिफिकेट कोर्स (2) डिप्लोमा कोर्स (3) डिग्री कोर्स और (4) ऑनर्स डिग्री। यानी कि स्नातक चार वर्ष का होने जा रहा है। एनईपी में कॉमन एंट्रेंस टेस्ट का फैसला लिया गया है। हर विश्वविद्यालय के अलग-अलग डिपार्टमेंट की अपनी विशेषता होती है। जिसको ध्यान में रखकर छात्र फार्म डालते हैं। जो कि अब सम्भव नहीं रह जायेगा। हायर एजुकेशन फंडिंग एजेंसी के तहत विश्वविद्यालयो ं को अब अनुदान नहीं बल्कि लोन दिया जाएगा। जो की फीस वृद्धि कर विश्वविद्यालय के छात्रों से ही वसूला जाएगा। नई शिक्षा नीति की वजह से कम से कम 40 प्रतिशत शिक्षकों की नौकरियां खत्म हो जाएंगी। संविदा शिक्षकों की भर्ती बढ़ेगी क्योंकि ऑनलाइन एजुकेशन में एक शिक्षक कई छात्रों को एक साथ पढ़ा सकता है।

हर कोई जानता है कि हमारे देश में व सरकार के पास संसाधनों की कोई कमी नहीं है। हर साल पूंजीपतियों का लाखों- करोड़ रुपये का टैक्स माफ कर दिया जाता है। कोरोना काल में भी जब करोड़ांे लोंगों का रोजगार खत्म हो गया, चंद पूंजीपतियों की संपत्ति बेतहाशा ढंग से बढ़ी है। देश के सार्वजनिक संपत्ति बैंक, रेलवे, एलआईसी, उद्योगों को कौड़ियों के भाव पूंजीपतियों के हवाले किया जा रहा है। लेकिन जब शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसे जनता के मूलभूत अधिकारों की बात की जाती है तो सरकार से ंसाधनों की कमी का रोना रोने लगती है। जबकि सच्चाई यह है कि केंद्र व राज्य की सत्ता में बैठीं सभी सरकारें व राजनीतिक दल कॉरपोरेट परस्त हैं। उनके जेहन में जनहित की कोई बात नहीं है। पिछले एक साल में सिर्फ इलाहाबाद में नौकरी न मिलने की वजह से 100 के

आसपास छात्र- छात्राएं आत्महत्या कर चुके हैं। लेकिन रोजगार को मौलिक अधिकार बनाना किसी भी सरकार के एजेंडे में नहीं है। यह शिक्षा नीति छात्र-संघो व शिक्षक संघों को भी खत्म करने की बात करती है और उसकी जगह पर बोर्ड ऑफ गवर्नेन्स के गठन की बात करती है। ताकि उनकी शिक्षा विरोधी व छात्र विरोधी नीतियो पर कोई सवाल न उठा सके। इस नीति के लागू होने के बाद से शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता खत्म हो जाएगी। क्या पढ़ाया जाएगा, सिलेबस क्या होगा, यह सब भी अब सरकार तय करेगी। स्पष्ट है कि जबरदस्ती शिक्षण संस्थानों पर आरएसएस के एजेंडे थोपे जाएंगे। इस रूप में यह शिक्षा नीति बहुत ही खतरनाक व जन विरोधी है।

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