कानपुर के एक गांव में फैला है अंधविश्वास, ब्राह्मण के अलावा दूसरी जाति के रहेंगे तो हो जाएगा सर्वनाश

कानपुर देहात के बरखेड़ा स्थित अनूपपुर गांव जहाँ सिर्फ और सिर्फ ब्राह्मणों के परिवार रहते हैं। लगभग 150 परिवारों वाला इस गांव में दूसरी जाति के लोग नहीं बसते हैं।

Update: 2020-06-12 11:19 GMT

कानपुर से मनीष दुबे की रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो। उत्तर प्रदेश के कानपुर का एक ऐसा गांव जिसका तिलिस्म अपने आप मे अनसुलझी पहेली की तरह है। ये अंधविश्वास है या हकीकत किसी ने भी कुछ पिछली घटनाओं के बाद उन्हें दोहराने की हिम्मत नहीं की। जनज्वार सुनी कही बातों या अंधविश्वास पर भरोसा नहीं करता इसलिए जनज्वार संवाददाता ने खुद गांव जाकर इस रहस्य की पड़ताल की।

स्थानीय निवासियों की मानें तो इस गांव में ब्राह्मण के अलावा कोई अन्य जाति निवास नहीं कर सकती है। यदि कोई अन्य जाति के यहां रहने आए भी तो उसके साथ कुदरती तौर पर कुछ न कुछ अनिष्ट घटनाएं होने लगती हैं। लोगों के मुताबिक यहां पहले कुछ लोग जो अन्य जातियों से ताल्लुक रखते थे, रहने आये लेकिन कुछ हो दिनों में वह बीमार हो गया या फिर उसकी मृत्यु ही हो गई। ऐसा एक नहीं वरन कई लोगों के साथ हो चुका है जिसके बाद अब गांव में रहने की कोई हिमाकत नहीं करता।

कानपुर देहात के बरखेड़ा स्थित अनूपपुर गांव जहाँ सिर्फ और सिर्फ ब्राह्मणों के परिवार रहते हैं। लगभग 150 परिवारों वाला यह गांव अपने आप में एक अबूझ पहेली की तरह बना हुआ है। इस गांव में मुख्यता पांडेय, शुक्ला, दुबे, तिवारी और मिश्रा इत्यादि ही रहते हैं। इस जातियों के अलावा यदि वह ब्राम्हण बिरादरी का नहीं है तो वह इस गांव में रह नहीं सकता। ऐसा हम नहीं इस गांव व इसके आस-पास के गांवों में रहने वाले लोगों का कहना है।

गांव के निवासी 58 वर्षीय विनोद कुमार दुबे जनज्वार संवाददाता से कहते हैं कि उनने अपने बाबाओं परबाबाओं से सुना है कि यहां कोई भी ऐसी जाती जो ब्राह्मण नहीं है निवास नहीं कर सकती है। अब ये किसी का श्राप है अथवा कुछ वरदान है इसका ठीक ठीक हमे पता नहीं है पर आज तक यहां कोई अन्य जाती रहने नहीं आई। हम लोग तो चाहते हैं कि यहां सभी समुदाय के लोग रहें पर टिक ही नहीं पाते हैं। आते हैं उनके साथ कुछ न कुछ उल्टा-पुल्टा होने लगता है फिर कोई नहीं आता।

यहीं के रामू शुक्ला बताते हैं कि ये बात बिल्कुल सत्य है कि हमारे इस गांव में कोई भी पंडित के अलावा दूसरी जाति का व्यक्ति रह-रुक नहीं सकता है। पूर्वजों के मुताबिक एक ऋषि ने कुछ लोगों से परेशान होकर श्राप दे दिया था जिसके बाद अब यहां कोई रहने नहीं आया। आता है तो खुद के अनिष्ट के बाद वह भाग जाता है उसकी सुनकर कोई दूसरा यहां रहने में भय खाता है। रामू ने हमे व्रन्दावन कंस और कृष्ण का उदाहरण देते हुए कई एक श्रापग्रस्त जैसी बातें बताकर समझाया पर वो हमें समझ नहीं आईं।

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अनूपपुर के बगल में पड़ने वाला गांव चम्पतपुर के गोकुल हमसे कहते हैं, 'भईया ये बात बिल्कुल सही है, यहां न जाने ऐसा क्या है जो कोई यहां पंडितों के अलावा रहता नहीं है। अगर रहे तो उसका समूल विनाश हो जाये तो ऐसे में कौन रहेगा। हमने पूछा कि 'क्या आपने कभी ऐसा होते देखा है' तो गोकुल कहता है यहां पास के बाबाजी की कुटिया के बगल में एक तालाब है। उस तालाब में सिंघाड़े इत्यादि उगाने वाला इस गांव में रहने लगा। जब रहने लगा तो कुछ ही दिन में वह बीमार हो गया। उसकी बीमारी ठीक नहीं हो पाई की पत्नी का अकस्मात देहांत हो गया। ऐसी कई एक बातें हैं, बूढ़े बुजुर्ग बताते हैं कि यहां कोई रह ही नहीं सकता। हम भी रह सकते हैं, मगर नहीं रहते कौन खतरा मोल ले।'

गांव के अगल-बगल पड़ने वाले गांवों में सभी जातियां रहती हैं। इन गांवों में रहने वाले लोग ब्राह्मणों के गांव में काम करने आते हैं। शादी विवाह या अन्य किसी समारोह में भी दूसरे गांवों की तमाम जातियों के लोग आकर काम इत्यादि करते हैं लेकिन यदि कोई चाहे तो यहां अपना घर बना ले तो ऐसा हो नहीं पाता। उसके साथ कुछ ना कुछ अनिष्ट होना शुरू हो जाता है, फिर म्रत्यु तक हो जाती है।

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