इस बार राजभर करेंगे योगी आदित्यनाथ का सियासी हिसाब, जेल में मुख्तार अंसारी से की मुलाकात
ओमप्रकाश राजभर ने बांदा जेल में बंद मुख्तार अंसारी से मुलाकात की है। अंसारी से उनकी मुलाकात के बाद से सियासी गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म हो गया है।
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 ( Uttar Prdesh Assembly Election 2022 ) केवल दो माह शेष हैं। इस बार कांग्रेस, बसपा और सपा का अलग-अलग चुनाव लड़ना लगभग तय है। इसके बावजूद चुनाव को देखते हुए यूपी का सियासी गणित तेजी से बदल रहा है। सीएम योगी आदित्यनाथ ( CM Yogi Adityanath ) से लंबे अरसे से नाराज चल रहे पुराने सहयोगी ओमप्रकाश राजभर ( Omprakash Rajbhar ) अपना हिसाब बराबर करने की जद्दोजहद में जुटे हैं। उनको सपा के साथ गठबंधन लगभग तय है। अब वो बांदा जेल में योगी के धुर विरोधी पूर्वांचल वोटबैंक के कारोबारी मुख्तार अंसारी ( Mukhtar Ansari ) से मिले हैं। यानि राजभर हर हाल में योगी की सत्ता में वापसी नहीं होने देना चाहते हैं।
इस योजना के तहत ही ओमप्रकाश राजभर ने बांदा जेल में बंद मुख्तार अंसारी से मुलाकात की है। अंसारी से उनकी मुलाकात के बाद से सियासी गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म हो गया है। एक घंटे की मुलाकात में राजभर और अंसारी ने अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर क्या सियासी खिचड़ी पकाई है इसे लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।
खास बात यह है कि पूर्वाचल के सियासी खेल में अंसारी परिवार की अहमियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली बीजेपी की काट तैयार करने के लिए ही सपा मुखिया अखिलेश यादव ( Akhilesh Yadav ) की राजभर को मुख्तार से मिलने का सुझाव दिया है। यानि अंसारी इस बार सपा-सुभासपा के बैनर तले चुनाव लड़ सकते हैं। वर्तमान में मुख्तार अंसारी मऊ से बसपा के विधायक हैं लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री मायावती उनका टिकट काटने का ऐलान पहले ही कर चुकी हैं।
इसका लाभ अब सपा-सुभासपा के नेता उठाना चाहते हैं। यूपी की राजनीति के जानकार इसे पूर्वांचल में मुस्लिम वोटों को साधते हुए यादव, गैर यादव पिछड़ी जातियों के साथ ऐसा समीकरण खड़ा करने की अखिलेश की कोशिश के तौर पर देख रहे हैं जो 2022 के महासमर में बीजेपी की काट बनकर सपा की नैय्या पार लगा सके। सपा के लिए ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है कि सत्ता में वापसी इसके बगैर संभव नहीं है।
28 जिलों की 164 सीटों पर नजर
पूर्वांचल में 28 जिले आते हैं। इनमें वाराणसी, सोनभद्र, प्रयागराज, जौनपुर, भदोही, मिर्जापुर, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महाराजगंज, संतकबीरनगर, बस्ती, आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, बलिया, सिद्धार्थनगर, चंदौली, अयोध्या, गोंडा, बलरामपुर, श्रावस्ती, बहराइच, सुल्तानपुर, अमेठी, प्रतापगढ़, अंबेडकरनगर और कौशांबी शामिल हैं। यहां से आने वाली 164 सीटें में से जिस दल को सबसे अधिक सीटें मिलीं उसके लिए सत्ता की मंजिल आसान ही नहीं, लगभग सुनिश्चित हो जाती है। 2017 के चुनाव में बीजेपी ने इनमें से 115 सीटों पर जीत हासिल की थी। जबकि सपा को 17, बसपा को 14, कांग्रेस को 2 और अन्य को 16 सीटें मिली थीं।
2012 के चुनाव में सपा ने 102 सीटें जीती थीं जबकि बीजेपी को 17, बसपा को 22, कांग्रेस को 15 और अन्य को 8 सीटें मिली थीं। तब सूबे की सत्ता में अखिलेश यादव की ताजपोशी हुई थी। 2007 में जब मायावती पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई थीं तो उनकी बसपा को पूर्वांचल से 85 सीटें मिली थीं। उस चुनाव में सपा को 48, बीजेपी को 13, कांग्रेस को 9 और अन्य को चार सीटें ही मिली थीं।
मुख्तार की अहमियत
मऊ से लगातार तीन बार जीतकर विधानसभा में पहुंचे मुख्तार अंसारी, उनके सांसद भाई अफजाल अंसारी और परिवार का पूर्वांचल के मुस्लिम वोटों पर खासा असर बताया जाता है। मुस्लिमों के अलावा सवर्ण वोटों के एक धड़े का भी अंसारी परिवार की ओर झुकाव रहता है। पूर्वांचल की कुछ सीटों पर मुस्लिम आबादी 10 से 11 फीसदी तक है। मुस्लिम वोटर बड़ी संख्या में सपा को वोट करते हैं लेकिन मुख्तार की वजह से पूर्वांचल में पिछले चुनावों में इन सीटों पर बसपा की मजबूत दावेदारी होती थी। अब सपा प्रमुख अखिलेश यादव उस आधार को एकतरफा हासिल करना चाहते हैं। इसके लिए वह राजभर से हाथ मिलाने का फैसला पहले ही ले चुके हैं।
नया समीकरण तैयार करने की कोशिश
राजनीति के जानकारों का कहना है कि सपा-सुभासपा गठबंधन के साथ मुख्तार अंसारी आते हैं तो यादवों के साथ गैर यादव पिछ़ड़ी जातियों और मुस्लिम ( yadav-backwar-muslim ) वोटों का नया समीकरण खड़ा हो सकता है। इसमें ओमप्रकाश राजभर जहां पूर्वांचल के जिलों में 12 से 22 फीसदी और पूरे प्रदेश तीन फीसदी की तादाद में मौजूद राजभर वोटों को साधने में भूमिका निभा सकते हैं तो वहीं मुख्तार अंसारी मुस्लिम वोटों को। चंदौली, गाजीपुर, मऊ, बलिया, देवरिया, आजमगढ़, लालगंज, अंबेडकरनगर, मछलीशहर, वाराणसी, जौनपुर, भदोही और मिर्जापुर में राजभर वोटों की अच्छी खासी तादाद है। प्रदेश की करीब चार दर्जन सीटों पर इनका असर है। कहा जाता है कि प्रदेश की करीब 22 सीटों पर भाजपा की जीत में राजभर वोटबैंक बड़ा कारण था। इस चुनाव में राजभर की पार्टी को चार सीटों पर जीत मिली थी। भाजपा के साथ राजभर की दोस्ती पिछले लोकसभा चुनाव में टूट गई थी। उनके जातीय आधार को देखते हुए अब अखिलेश ने उनसे हाथ मिलाया है। सीएम योगी के लिए इस गठजोड़ को साधना ही सबसे बड़ी चुनौती है।