उत्तरकाशी सुरंग हादसे के लिए चारधाम सड़क परियोजना निर्माता कंपनी NHIDCL दोषी, 40 मजदूरों की जिंदगी से किया खिलवाड़

Uttarkashi news : उत्तरकाशी सुरंग में फंसे 40 मजदूरों को 100 घंटे से भी ज्यादा वक्त बीत जाने के बावजूद रेस्क्यू न किये जाने के खिलाफ उनके साथी मजदूरों में भारी रोष है। सुरंग में फंसे मजदूरों की सलामती की मांग करने हुए साइट पर विरोध प्रदर्शन जारी है...

Update: 2023-11-16 08:37 GMT

उत्तरकाशी। ब्रह्मखाल-यमुनोत्री राजमार्ग पर सिल्क्यारा सुरंग में फंसे 40 मजदूरों के रेसक्यू में हो रही देरी चिंताजनक है, जिस पर भाकपा माले ने क्षोभ व्यक्त करते हुए सुरंग में फंसे सभी मजदूरों की कुशलता की कामना की है।

भाकपा (माले) के उत्तराखंड राज्य सचिव इंद्रेश मैखुरी कहते हैं, प्रथमदृष्टया यह चारधाम सड़क परियोजना निर्माता कंपनी- एनएचआईडीसीएल द्वारा पहाड़ और मजदूरों की सुरक्षा से खिलवाड़ का मामला प्रतीत होता है। इस कंपनी के विरुद्ध मजदूरों का जीवन खतरे में डालने का मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए। 2021 में उच्चतम न्यायालय ने इस परियोजना को पर्यावरणीय खतरों को भांपने के बावजूद अनुमति देते हुए कहा था कि इस के निर्माण में सर्वश्रेष्ठ उपलब्ध तौर-तरीके अपनाए जाएँ, पर उत्तरकाशी की घटना बता रही है कि ऐसा नहीं किया गया।

बकौल मैखुरी, पूरे चारधाम परियोजना सड़क मार्ग को देख लें तो यह साफ दिखाई देता है कि परियोजना निर्माता कंपनी ने किस कदर लापरवाही के साथ काम करते हुए पहाड़ों को तहस-नहस कर डाला है।

इंद्रेश आगे कहते हैं, यह पहला मौका नहीं है, जबकि इस परियोजना निर्माता कंपनी की लापरवाही से लोगों का जीवन खतरे में पड़ा। जुलाई 2020 में नरेंद्रनगर के खेड़ा गांव में उक्त परियोजना निर्माण करने वाली कंपनी द्वारा महीनेभर पहले बनाए गए पुश्ते के ढहने से एक घर दब गया और तीन बच्चों की मृत्यु हो गयी। 21 दिसंबर 2018 को रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राजमार्ग पर सड़क निर्माण के मलबे में दब कर सात मजदूरों की मौत हो गयी। उस समय भी परियोजना निर्माता कंपनी की लापरवाही सामने आई थी। 24 जुलाई 2021 को असिस्टेंट प्रोफेसर मनोज सुंदरियाल की कार पर इस परियोजना के दौरान खोदी गयी एक चट्टान के गिरने के चलते साकणीधार के पास उनकी मृत्यु हो गयी। कितने वाहनों पर लापरवाही से खोदे गए पहाड़ों से चट्टानें गिरी और वे क्षतिग्रस्त हुए, इसका कोई हिसाब ही नहीं है।

इंद्रेश मैखुरी मांग करते हैं कि इस पूरी तबाही की ज़िम्मेदारी एनएचआईडीसीएल पर एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए। वहीं वह आगे कहते हैं कि इस हादसे के लिए भारत सरकार का सड़क एवं राजमार्ग मंत्रालय भी इस जिम्मेदार है, क्योंकि इस मंत्रालय ने बिना पर्यावरणीय प्रभाव आकलन करवाए ही इस परियोजना को बनाने का काम शुरू कर दिया। इसके लिए 889 किलोमीटर की परियोजना को सौ किलोमीटर से कम के 53 पैकेजों में बांट दिया गया। भारत सरकार के सड़क और राजमार्ग मंत्रालय को बताना चाहिए कि आखिर किसके लाभ के लिए इस परियोजना को पर्यावरणीय प्रभाव आकलन करवाए बिना बनने की अनुमति दी गयी।

इंद्रेश कहते हैं, इस पूरे प्रकरण में आपदा प्रबंधन तंत्र की कमजोरी भी एक बार फिर प्रदर्शित हुई। आपदा आने से पहले आपदा प्रबंधन तंत्र कागजों पर बहुत मजबूत नज़र आता है, लेकिन जैसे ही आपदा के हालात पैदा होते हैं, वह किंकर्तव्यविमूढ़ होकर केवल धूल में लट्ठ चलता नज़र आता है। वास्तविक आपदा की स्थितियों में आपदा प्रबंधन तंत्र केवल हैडलाइन का प्रबंधन करने के ही काम आता है।

गौरतलब है कि उत्तरकाशी सुरंग में फंसे 40 मजदूरों को 100 घंटे से भी ज्यादा वक्त बीत जाने के बावजूद रेस्क्यू न किये जाने के खिलाफ उनके साथी मजदूरों में भारी रोष है। सुरंग में फंसे मजदूरों की सलामती की मांग करने हुए साइट पर विरोध प्रदर्शन जारी है। 

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