Uttarakhand News : उत्तराखंड में बढ़ते अपराधों पर एकजुट होने लगा विपक्ष, सम्मेलन में विपक्ष और जन संगठनों ने एकजुट होकर उठाई आवाज़

Uttarakhand News। राज्य में बढ़ते अपराध और ध्वस्त होती कानून व्यवस्था से सरकार ने भले ही आंख मूंद रखी हो, लेकिन विपक्ष और जनसंगठनों के लोगों ने इसके खिलाफ आवाज बुलंद करनी शुरू कर दी है।

Update: 2022-12-05 11:06 GMT

Uttarakhand News। राज्य में बढ़ते अपराध और ध्वस्त होती कानून व्यवस्था से सरकार ने भले ही आंख मूंद रखी हो, लेकिन विपक्ष और जनसंगठनों के लोगों ने इसके खिलाफ आवाज बुलंद करनी शुरू कर दी है। रविवार को देहरादून के ख़ुशीराम पब्लिक लाइब्रेरी में एक संयुक्त सम्मेलन में प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सरकार को आईना दिखाने का प्रयास किया। चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल के संचालन में आयोजित इस एक दिवसीय सम्मेलन में राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस, सीपीआई (CPI), सीपीआई एम (CPI.M), समाजवादी पार्टी व उत्तराखंड क्रांति दल के प्रतिनिधियों एवं राज्य के विभिन्न मज़दूर, महिला, छात्र और अन्य संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।

इस दौरान वक्ताओं ने राज्य में बिगड़ती हुई कानून के राज पर आक्रोश जताते हुए कहा कि एक तरफ माफिया तंत्र, अपराध और हिंसा बढ़ोतरी पर है और दूसरी तरफ सरकार कानून को पूरी तरह से ताक पर रख कर पुलिस प्रशासन का दुरूपयोग कर रही है। मज़दूरों, महिलाओं, दलितों और अल्पसंख्यक समुदायों के बुनियादी हक़ों पर माफिया और सरकारी विभाग दोनों हनन कर रहे हैं और अपराधियों पर सख्त कार्रवाई करने के बजाय उनको बचाया जा रहा है। वक्ताओं ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि प्रदेश में बुलडोज़रों द्वारा अपराधियों पर कार्यवाही की जा रही है। लेकिन बिना क़ानूनी प्रक्रिया के बिना इस रूप में बुलडोजरों के इस्तेमाल अपराधों को छुपाने के लिए भी किया जा सकता है, अंकिता हत्याकांड में हुई बुलडोजर कार्यवाही इसका उदाहरण है। वक्ताओं ने कहा कि महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों पर प्रशासन कार्रवाई नहीं कर रहा है। बिना किसी क़ानूनी प्रक्रिया के मज़दूरों के घर तोडे जा रहे हैं। अंकिता और जगदीश के केस में सीधा पक्षपात और लापरवाही दिखाई दे रही है। अल्पसंख्यक और दलित समुदायों पर हो रहे हमलों में सरकार मूकदर्शक बन कर बैठी है। अगर पुलिस प्रशासन और कानून के राज को इस रूप में कमज़ोर किया जायेगा तो प्रदेश में अपराधों का ग्राफ बढ़ना स्वाभाविक है। वक्ताओं ने डॉ. आंबेडकर के निर्वाण दिवस के अवसर (6 दिसंबर) पर इसपर एकजुट हो कर आवाज़ उठाने का निश्चय भी दोहराया।

सम्मेलन में तीन प्रस्ताव हुए पारित

सम्मेलन में तीन प्रस्ताव भी पारित किए गए। जिसमें कहा गया है कि अंकिता, जगदीश, पिंकी, किरण नेगी हत्याकांड सहित शोषित जातियों और अल्पसंख्यक लोगों के साथ हुई घटनाओं में लापरवाही के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ प्रभावी और त्वरित कार्यवाही की जाए। अंकिता के केस में बुलडोज़र का इस्तेमाल के लिए जिसने भी आदेश दिया उस पर भी कार्यवाही की जाए। उच्चतम न्यायालय के 2006 के फैसले के अनुसार राज्य में एक पुलिस शिकायत आयोग होना चाहिए जो स्वतंत्र होगा। अगर पुलिस प्रशासन किसी घटना को ले कर लापरवाही करेगी, या किसी पर अत्याचार करेंगे, इस आयोग द्वारा ज़िम्मेदार अधिकारीयों पर कार्यवाही की जा सकती है। लेकिन उत्तराखंड में कागजों पर ही सीमित और कमज़ोर आयोग बनाया गया है। इसके लिए स्वतंत्र व अधिकार संपन्न सशक्त पुलिस शिकायत आयोग बनाया जाए। 

उच्चतम न्यायालय के 2018 के फैसले के अनुसार भीड़ की हिंसा पर रोक लगाने के लिए हर जिला में नोडल अधिकारी होना चाहिए। जातिवादी और सांप्रदायिक गतिविधियों पर तुरंत कार्यवाही करने के लिए व्यवस्था बननी चाहिए। जो उत्तराखंड में आज तक नहीं दिख रहा है। इसलिए हर जिले में प्रभावी नोडल अधिकारी की नियुक्ति की जानी चाहिए।

यह लोग रहे शामिल

इस दौरान सम्मेलन में कांग्रेस की प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी, उत्तराखंड महिला मंच के निर्मला बिष्ट, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य उप सचिव रविंदर, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव डॉ. एसएन सचान, बार कौंसिल की पूर्व अध्यक्ष रज़िया बैग, आल इंडिया किसान सभा के राज्य अध्यक्ष सुरेंद्र सजवाण और महामंत्री गंगाधर नौटियाल, एसएफआई (SFI) के राज्य अध्यक्ष नितिन मलेठा, सर्वोदय मंडल के हरबीर सिंह खुश्वाह, उत्तराखंड लोकतान्त्रिक मोर्चा के अध्यक्ष एसएस पांगती, जनवादी महिला समिति के राज्य सचिव इंदु नौटियाल, गढ़वाल सभा के नत्था सिंह पंवार, इंसानियत मंच के डॉ. रवि चोपड़ा, जन संवाद समिति के सतीश धौलखंडी, चेतना आंदोलन की सुनीता देवी, प्रभु पंडित, मुकेश उनियाल आदि। 

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