Dehradun News: 45 दिवसीय सद्भावना यात्रा का देहरादून में हुआ समापन, पहल को जारी रखने का लिया संकल्प

Dehradun News: सामाजिक रूप से जहरीले हो रहे वातावरण में सद्भाव की अलख जगाने के मकसद से प्रख्यात लेखक कुंवर प्रसून के जन्मदिन 8 मई से कुमाउं मंडल के हल्द्वानी शहर से शुरू हुई सद्भावना यात्रा का 45 दिन बाद सोमवार को देहरादून प्रेस क्लब में गोष्ठी के माध्यम से समापन किया गया।

Update: 2022-06-20 11:11 GMT

Dehradun News: सामाजिक रूप से जहरीले हो रहे वातावरण में सद्भाव की अलख जगाने के मकसद से प्रख्यात लेखक कुंवर प्रसून के जन्मदिन 8 मई से कुमाउं मंडल के हल्द्वानी शहर से शुरू हुई सद्भावना यात्रा का 45 दिन बाद सोमवार को देहरादून प्रेस क्लब में गोष्ठी के माध्यम से समापन किया गया। नैनीताल, उधमसिंहनगर, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, चमोली, उत्तरकाशी, पौड़ी, टिहरी, देहरादून आदि जनपदों में अस्सी पड़ाव के दौरान 4500 किमी. लंबी इस यात्रा में 200 से अधिक सद्भावना सभाओं के माध्यम से कई सामाजिक कार्यकर्ताओं व जनसंगठनों के करीब 10 हजार लोगों ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष ढंग से समाज के मिजाज का जाएजा लिया।

रविवार की शाम सद्भावना यात्रा के देहरादून पहुंचने पर देहरादून शांति दल के द्वारा शहीद स्मारक पर उनका पुरजोर स्वागत किया गया। शहीदों को पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद वहां पर रामधुन, ईश्वर अल्ला तेरो नाम और सद्भावना गीतों के बाद सोमवार को प्रेस क्लब देहरादून के सभागार में एक गोष्ठी रखी गई तो यहां यात्रा दल ने अपने यात्रा अनुभव साझा किए ।


यात्रा संयोजक भुवन पाठक ने बताया कि दल द्वारा राज्य के लगभग सभी जिलों में यात्रा की गई और शांति और सद्भावना की अपील की। यात्रा के दौरान टीम को सामाजिक, आर्थिक व पर्यावरण से जुड़े तमाम मुद्दों की कई नई जानकारियां मिली। उत्तराखंड का पहाड़ हो या मैदानी क्षेत्र, दोनो ही जगह धार्मिक व जातीय दुर्भावना मौजूद है। बड़े शहरों में जातिवाद सतह पर नजर नहीं आता। लेकिन गांवों में यह अपने वीभत्स रूप में सड़ांध मार रहा है। लोगों में चेतना जागृति का अभाव स्पष्ट नजर आता है, जिससे जनता को बरगलाना कहीं ज्यादा आसान है। पर्वतीय क्षेत्रों में उच्च शिक्षा के अवसरों में बढ़ौतरी तो हुई है, लेकिन गुणवत्ता का जबरदस्त अभाव है।

युवाओं के लिए व्यवसायिक प्रशिक्षण, चिकित्सा व नगरीय सुविधाओं का अभाव है। महिलाओं के ऊपर घरेलू काम का बोझ बढ़ा है। जबकि पुरुषों में शराबखोरी की लत एक बड़ी समस्या के तौर पर देखी गई। पहाड़ों में विस्थापन व पलायन का भी कोई कारगर इलाज नहीं किया गया है। संचार के नए माध्यमों ने लोगों का सूचना तंत्र मजबूत किया है लेकिन लोगों के बीच आपसी संवाद न होने के कारण सामूहिक कार्यों की परम्परा में गिरावट आई है।

कमला पंत के संचालन में आयोजित कार्यक्रम के दौरान उपपा नेता पीसी तिवारी ने कहा कि इस प्रकार की यात्राएं समाज के वातावरण को बदलने में अपनी सांस्कृतिक भूमिका निभाती हैं। ऐसी यात्राओं को आगे भी जारी रखना होगा। समाज की सद्भावना को खत्म करने वालों को इन यात्राओं के माध्यम से ही बेनकाब किया जा सकता है।


नैनीताल समाचार के संपादक राजीव लोचन शाह यात्राओं के माध्यम से जनता से खुले संवाद का रास्ता खुलता है। जो समस्याओं के समाधान में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रदेश की चर्चित अस्कोट से आराकोट यात्रा के बाद उत्तराखंड में यह ऐतिहासिक यात्रा है। जिसे भविष्य में भी जारी रखा जाना चाहिए।

लोगों में संवाद खत्म हुआ है। गांव की चौपाल उजड़ गई है। हर व्यक्ति अपने घर में कैद होकर रह गया है। जिसका लाभ समाज में आग लगाने वाले तत्वों को मिल रहा है। आपस में लोग अपनी समस्या के बारे में बात नहीं करते। आपसी चर्चा केवल कार्यक्रम तक ही सीमित रहती है। जातिवाद का जहर गांव में बहुत है। गांव से बाहर जातीयता की दीवार भले ही टूटी हो लेकिन गांव के सभी रिश्ते में यह कोढ़ सतह पर दिखाई देता है। समाज में संघर्ष सामूहिक की जगह व्यक्तिगत तौर पर चल रहा है। इस दौरान प्रभात ध्यानी, प्रेम बहुखंडी, त्रिलोचन भट्ट, जयदीप सकलानी, सतीश धौलाखंडी, मयंक बड़ौला, अंबुज शर्मा, इस्लाम हुसैन सहित कई लोग मौजूद रहे।

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