क्या है देवदासी प्रथा जिसको लेकर NHRC ने केंद्र और 6 राज्यों को जारी किया नोटिस, आखिर ये कुरीति खत्म क्यों नहीं होती?

Devdasi Tradition : देवदासी प्रथा की कुरीतियों को रोकने के लिए कई कानून बनाए गए हैं, लेकिन यह कुरीति भारतीय समाज में अब भी प्रचलन में है।

Update: 2022-10-16 02:21 GMT

Devdasi Tradition : भारतीय समाज में देवदासी प्रथा ( Devdasi system ) प्रतिबंधित है। इसके बावजूद कुछ राज्यों में इसके जारी होने की सूचना मिलने के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ( NHRC ) ने केंद्र और छह राज्यों को नोटिस जारी कर विभिन्न मंदिरों, विशेष रूप से दक्षिण भारतीय राज्यों में देवदासी प्रथा के निरंतर जोखिम पर विस्तृत कार्रवाई रिपोर्ट मांगी है। खास बात यह है कि एनएचआरसी ने एक मीडिया रिपोर्ट के आधार स्वत: संज्ञान के आधार पर ये कार्रवाई की है।

एनएचआरसी ( NHRC ) ने कहा कि देवदासी प्रथा ( Devdasi tradition ) की कुरीतियों को रोकने के लिए कई कानून बनाए गए हैं, लेकिन यह कुरीति अब भी प्रचलन में है। शीर्ष अदालत ने भी युवा लड़कियों को देवदासी के रूप में समर्पित करने की कुरीतियों की निंदा की है। साथ ही सख्त रुख अपनाने के भी संकेत दिए हैं। एनएचआरसी ( NHRC ) ने देवदासी प्रथा को यौन शोषण और वेश्यावृत्ति जैसी बुराई बताते हुए इसे महिलाओं के जीने के अधिकार तथा सम्मान एवं समानता के अधिकारों का उल्लंघन करार दिया है।

इन राज्यों में जारी है देवदासी प्रथा

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने शुक्रवार को केंद्र और कर्नाटक सहित छह राज्यों को देवदासी प्रणाली पर प्रतिबंध लगाने वाले कानूनों के बावजूद इस प्रथा के जारी रहने पर नोटिस जारी किया है। सभी सरकारी एजेंसियों को छह सप्ताह के अंदर रिपोर्ट देने को कहा गया है। एनएचआरसी ने केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय और सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र को विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है।

देवदासी प्रथा ( Devdasi tradition ) क्या है

भारतीय समाज में प्राचीन समय से तमाम कुरीतियों और अंधविश्वासों का बोलबाला रहा है जो समय के साथ व्यापक वैज्ञानिक चेतना के विकसित होने से धीरे-धीरे लुप्त होते गए। किंतु हमारे समाज में आज भी कुछ ऐसी कुरीतियों और अंधविश्वासों का अभ्यास व्यापक पैमाने पर किया जाता है जो 21वीं सदी के मानव समाज के लिये शर्मसार करने वाली हैं। इन्हीं कुरीतियों में से एक है देवदासी प्रथा। इस प्रथा के अंतर्गत देवी/देवताओं को प्रसन्न करने के लिए सेवक के रूप में युवा लड़कियों को मंदिरों में समर्पित करना होता है। इस प्रथा के मुताबिक एक बार देवदासी बनने के बाद ये बच्चियां न तो किसी अन्य व्यक्ति से विवाह कर सकती है और न ही सामान्य जीवन व्यतीत कर सकती है। यह प्रथा एक तरह से चुवा लड़कियों द्वारा खुद को भगवान को समर्पित करना है, लेकिन इसकी आड़ में हमेशा से यौन शोषण को बढ़ा मिला है। यह पूरी तरह से अंधिविश्वास पर आधारित है। 

एक बार फिर चर्चा में क्यों

दरअसल, हाल ही में नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (NLSIU), मुंबई और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ (TISS), बेंगलुरु द्वारा देवदासी प्रथा पर दो नए अध्ययन किए गए हैं। ये अध्ययन देवदासी प्रथा पर नकेल कसने हेतु विधायिका और प्रवर्तन एजेंसियों के उदासीन दृष्टिकोण की एक निष्ठुर तस्वीर पेश करते हैं। कर्नाटक देवदासी (समर्पण का प्रतिषेध) अधिनियम, 1982 (Karnataka Devadasis (Prohibition of Dedication) Act of 1982) के 36 वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद भी राज्य सरकार द्वारा इस कानून के संचालन हेतु नियमों को जारी करना बाकी है जो कहीं-न-कहीं इस कुप्रथा को बढ़ावा देने में सहायक सिद्ध हो रहा है।

देवी/देवताओं को प्रसन्न करने के लिये सेवक के रूप में युवा लड़कियों को मंदिरों में समर्पित करने की यह कुप्रथा न केवल कर्नाटक में बनी हुई है बल्कि पड़ोसी राज्य गोवा में भी फैलती जा रही है। अध्ययन के मुताबिक मानसिक या शारीरिक रूप से कमज़ोर लड़कियां इस कुप्रथा का सबसे आसान शिकार होती हैं। नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (NLSIU) के अध्ययन की हिस्सा रहीं पांच देवदासियों में से एक ऐसी ही किसी कमज़ोरी से पीड़ित पाई गई। NLSIU के शोधकर्त्ताओं ने पाया कि सामाजिक-आर्थिक रूप से हाशिये पर स्थित समुदायों की लड़कियां इस कुप्रथा की शिकार बनती रहीं हैं जिसके बाद उन्हें देह व्यापार के दल-दल में झोंक दिया जाता है। TISS के शोधकर्त्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि देवदासी प्रथा को परिवार और उनके समुदाय से प्रथागत मंज़ूरी मिलती है।

देवदासी प्रथा खत्म क्यों नहीं होती?

व्यापक पैमाने पर इस कुप्रथा के अपनाए जाने और यौन हिंसा से इसके जुड़े होने संबंधी तमाम साक्ष्यों के बावजूद हालिया कानूनों जैसे कि-यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 और किशोर न्याय (JJ) अधिनियम, 2015 में बच्चों के यौन शोषण के एक रूप में इस कुप्रथा का कोई संदर्भ नहीं दिया गया है। भारत के अनैतिक तस्करी रोकथाम कानून या व्यक्तियों की तस्करी (रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक, 2018 में भी देवदासियों को यौन उद्देश्यों हेतु तस्करी के शिकार के रूप में चिह्नित नहीं किया गया है। एनएलएसआईयू और टिस के अध्ययन ने यह रेखांकित किया है कि समाज के कमज़ोर वर्गों के लिए आजीविका स्रोतों को बढ़ाने में राज्य की विफलता भी इस प्रथा की निरंतरता को बढ़ावा दे रही है।

क्या करने की है जरूरत

भारत में देवदासी प्रथा का अभी तक जारी रहना शर्मनाक पहलू है। हालांकि, अब इसका अस्तित्व केवल 6 राज्यों तक सीमित है, जिसे जितना जल्द हो सके समाप्त करने की जरूरत है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि वहां के लोग आगे आएं और सरकार देवदासी प्रथा के तहत महिलाओं के यौन शोषण को पोक्सो और अन्य दुष्कर्म जैसी कानून अपराध में शामिल करें।

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