कौन हैं गीतांजलि श्री जिन्हें मिला इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार, खिताब पाने वाली हिंदी की पहली किताब

भारतीय भाषा के इतिहास में हिंदी का यह पहला उपन्यास है जिसे यह सम्मान मिला है। खास बात यह कि यह सम्मान हिंदी की महिला लेखिका को मिला है।

Update: 2022-05-27 02:15 GMT

कौन हैं गीतांजलि श्री जिन्हें मिला बुकर पुरस्कार, खिताब पाने वाली हिंदी की पहली किताब

नई दिल्ली। साहित्य जगत से जुड़े लोगों के साथ सभी भारतीयों के लिए एक अच्छी खबर है। भारतीय भाषा ( Indian language ) की पहली किताब टॉम्ब ऑफ़ सैंड ( Tomb of Sand ) यानि रेत समाधि को पहली बार बुकर अंतरराष्ट्रीय सम्मान ( Booker prize ) मिला है। इस पुस्तक की लेखिका गीतांजलि श्री ( Geetanjali Shree ) हैं। अब तक के इतिहास में हिंदी ( Hindi )  का यह पहला उपन्यास है जिसे यह सम्मान मिला है। खास बात यह कि यह सम्मान हिंदी की महिला लेखिका को मिला है। निर्णायक मंडल ने गीतांजलि श्री की रचना का चयन करने की वजह बताते हुए कहा कि उनका भाषा प्रवाह हमें आश्चर्यजनक रूप से सहज ही 80 वर्ष की उस महिला और उसके अतीत की ओर ले जाता है।

गीतांजलि श्री ( Geetanjali Shree ) के उपन्यास 'रेत समाधि' के अंग्रेजी अनुवाद 'टॉम्ब ऑफ़ सैंड' है, जिसने 2022 का अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीत लिया है। हिंदी में यह उपन्यास राजकमल प्रकाशन से छापा है। 'रेत समाधि' हिंदी की पहली ऐसी कृति है जो अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार की लॉन्ग लिस्ट और शॉर्ट लिस्ट तक पहुंची और आखिरकार बुकर पुरस्कार जीत भी ली।

बता दें कि बुकर पुरस्कार की लॉन्ग लिस्ट में गीतांजलि श्री की 'रेत समाधि' ( Tomb of Sand ) के अलावा 13 अन्य कृतियां भी शामिल थीं। बता दें कि बुकर पुरस्कार की लॉन्ग लिस्ट में गीतांजलि श्री की 'रेत समाधि' के अलावा 13 अन्य कृतियां भी शामिल थीं। गीतांजलि श्री ( Geetanjali Shree ) का 'रेत समाधि' उनका पांचवां उपन्यास है। उनकी पहली कृति 'माई' है। इसके बाद उनका उपन्यास 'हमारा शहर उस बरस' नब्बे के दशक में प्रकाशित हुआ था। यह उपन्यास सांप्रदायिकता पर केंद्रित संजीदा उपन्यासों में एक है। इसके कुछ साल बाद 'तिरोहित' आया। इस उपन्यास की चर्चा हिंदी में स्त्री समलैंगिकता पर लिखे गए पहले उपन्यास के रूप में भी होती रही है। चौथा उपन्यास 'खाली जगह' है और कुछ साल पहले 'रेत समाधि' प्रकाशित हुआ।

बुकर से हिंदी का कदम हुआ ऊंचा

अफसोस की बात यह है कि भारतीय साहित्य जगत में लगातार और महत्त्वपूर्ण लेखन के बाद भी गीतांजलि श्री को हिंदी जगत में अभी तक वो सम्मान नहीं मिला जिसका वो हकदार थीं। हिंदी साहित्य के नाम पर राजनीति करने वाले साहित्यकारों ने गीतांजलि को अभी पहचान नहीं पाये। साहित्य संसार ने तब अचानक से गीतांजलि का नाम जाना जब बुकर पुरस्कार ( Booker Prize ) के लॉन्ग लिस्ट में 'रेत समाधि' को शामिल किया गया। इस लिस्ट के सामने आने के बाद हिंदी संसार के बीच गुमनाम सी रहीं गीतांजलि श्री ( Geetanjali Shree ) अचानक सुर्खियों में आ गईं। फिलहाल, गीतांजलि श्री की 'रेत समाधि' को मिले बुकर सम्मान ने हिंदी का न केवल कद ऊंचा किया है बल्कि उनके लिए एक सबक है जो साहित्य के नाम पर केवल गुटबंदी करते हैं।

कौन हैं गीतांजलि श्री?

गीतांजलि श्री उत्तर प्रदेश के मैनपुरी की निवासी हैं। उनका जन्म 12 जून 1957 को उत्तर-प्रदेश के मैनपुरी में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा यूपी के विभिन्न शहरों में हुई। उन्होंने दिल्ली के लेडी श्रीराम कालेज से स्रातक और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से इतिहास में एमए किया। उन्होंने महाराज सयाजी राव विवि, वडोदरा से प्रेमचंद और उत्तर भारत के औपनिवेशिक शिक्षित वर्ग विषय पर शोध किया।

इसके बाद उन्होंने कुछ दिनों तक जामिया मिल्लिया इस्लामिया में अध्यापन का काम किया। उन्होंने सूरत के सेंटर फार सोशल स्टडीज में पोस्ट-डाक्टरल शोध किया। वहीं रहते हुए उन्होंने साहित्य सृजन की शुरूआत की। उनकी कहानी बेलपत्र 1987 में हंस में प्रकाशित हुई थी। उसके बाद उनकी दो और कहानियां हंस में प्रकाशित हुईं। उसके बाद यह सिलसिला चल निकला। उनकी रचनाओं में 'माई', 'हमारा शहर उस बरस', 'तिरोहित', 'खाली जगह', 'रेत-समाधि' (उपन्यास), 'अनुगूंज', 'वैराग्य', 'मार्च, मां और साकूरा', 'यहां हाथी रहते थे' कहानी संग्रह शामिल हैं।

इससे पहले गीतांजलि श्री के उपन्यास 'माई' का अंग्रेजी अनुवाद 'क्रासवर्ड अवार्ड' के लिए नामित किया गया था और अवार्ड की दौड़ में शामिल अंतिम चार किताबों में था। उनकी रचना 'खाली जगह' का अनुवाद अंग्रेजी, फ्रेंच और जर्मन भाषा में हो चुका है। हिंदी अकादमी ने उन्हें 2000-2001 का साहित्यकार सम्मान दिया। 1994 में उन्हें उनके कहानी संग्रह अनुगूंज के लिए यूके कथा सम्मान से सम्मानित किया गया। इसके अलावा वह इंदु शर्मा कथा सम्मान, द्विजदेव सम्मान के अलावा जापान फाउंडेशन, चार्ल्स वालेस ट्रस्ट, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं। अपनी विविध और सशक्त कृतियों से गीतांजलि श्री ने पिछले साढ़े तीन दशक में अपनी एक अलग पहचान बनाई है।

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