World Human Rights Day : एनएचआरसी को पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने 'India's teasing illusion' क्यों कहा?
World Human Rights Day: पीड़ित पक्ष को व्यावहारिक न्याय देने में एनएचआरसी के असमर्थ होने के कारण भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने इसे 'India's teasing illusion' की संज्ञा दी है।
नई दिल्ली। आज विश्व मानव अधिकार दिवस ( World Human Rights Day ) है। संयुक्त राज्य महासभा में 1948 में मानव अधिकारों की संरक्षा के लिए एक प्रस्ताव लाया गया और 1950 से पूरी दुनिया में यह दिवस प्रचलन में है। लेकिन भारत में मानवाधिकार का उल्लंघन आम बात है। यही वजह है कि इंडिया में मानव अधिकार आयोग गठन 43 साल बाद 12 अक्टूबर 1993 को मानवाधिकार आयोग अस्तित्व में आया।
देर से ही सही भारत में इस अधिकारों की संरक्षा के लिए 12 अक्टूबर 1993 को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन हुआ था। उसके बाद से मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित कोई मामला यदि NHRC के संज्ञान में आता है या शिकायत के माध्यम से लाया जाता है तो NHRC को उसकी जांच करने का अधिकार है। इसके पास मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित सभी न्यायिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार है। आयोग किसी भी जेल का दौरा कर सकता है और जेल में बंद कैदियों की स्थिति का निरीक्षण एवं उसमे सुधार के लिए सुझाव दे सकता है। NHRC संविधान या किसी अन्य कानून द्वारा मानवाधिकारों को बचाने के लिए प्रदान किए गए सुरक्षा उपायों की समीक्षा कर सकता है और उनमें बदलावों की सिफारिश भी कर सकता है।
आयोग के पास दीवानी अदालत की शक्तियां हैं और यह अंतरिम राहत भी प्रदान कर सकता है।इसके पास मुआवज़े या हर्जाने के भुगतान की सिफ़ारिश करने का भी अधिकार है। NHRC की विश्वसनीयता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके पास हर साल बहुत बड़ी संख्या में शिकायतें दर्ज होती हैं। यह राज्य तथा केंद्र सरकारों को मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने के लिये महत्त्वपूर्ण कदम उठाने की सिफ़ारिश भी कर सकता है। आयोग अपनी रिपोर्ट भारत के राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करता है जिसे संसद के दोनों सदनों में रखा जाता है।
NHRC की सीमाएं
NHRC के पास जांच करने के लिए कोई भी विशेष तंत्र नहीं है। अधिकतर मामलों में यह संबंधित सरकार को मामले की जांच करने का आदेश देता है। पीड़ित पक्ष को व्यावहारिक न्याय देने में असमर्थ होने के कारण भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ( former Attorney General Soli Sorabji ) ने इसे 'India's teasing illusion' — भारत का चिढ़ाने वाला एक भ्रम करार दिया है। NHRC के पास किसी भी मामले के संबंध में मात्र सिफारिश करने का ही अधिकार है, वह किसी को निर्णय लागू करने के लिये बाध्य नहीं कर सकता। कई बार धन की अपर्याप्ता भी NHRC के कार्य में बाधा डालती है। NHRC उन शिकायतों की जांच नहीं कर सकता जो घटना होने के एक साल बाद दर्ज कराई जाती हैं और इसीलिए कई शिकायतें बिना जांच के ही रह जाती हैं। अक्सर सरकार या तो NHRC की सिफारिशों को पूरी तरह से खारिज कर देती है या उन्हें आंशिक रूप से ही लागू किया जाता है। राज्य मानवाधिकार आयोग केंद्र सरकार से किसी भी प्रकार की सूचना नहीं मांग सकते, जिसका सीधा सा अर्थ यह है कि उन्हें केंद्र के तहत आने वाले सशस्त्र बलों की जांच करने से रोका जाता है। केंद्रीय सशस्त्र बलों के संदर्भ में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की शक्तियों को भी काफी सीमित कर दिया गया है।
आज भी भारत में मानवाधिकार के नाम पर गलत कार्य करने वाले को जैसे तैसे बचा लिया जाता है। हालांकि, अब इसके खिलाफ आवाजें भी बड़े पैमाने पर उठने लगी हैं। भारतीय संविधान में मानव अधिकारों की संरक्षा का प्रावधान अनुच्छेद 14,15,16,17,19,20,21,23,24,39,43,45 के तहत है।
संविधान में शामिल भारतीय नागरिकों के मूल अधिकार
समता या समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18)
स्वतंत्रता का अधिकार ( अनुच्छेद 19 से 22 )
शोषण के विरुद्ध अधिकार ( अनुच्छेद 23 से 24 )
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार ( अनुच्छेद 25 से 28 )
संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार ( अनुच्छेद 29 से 30 )
संवैधानिक उपचारों का अधिकार ( अनुच्छेद 32 )