साक्षरता प्रेरकों का योगी सरकार दबाए बैठी है 662 करोड़, कोर्ट के फटकार पर भी सुनने को नहीं तैयार

अन्तर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस पर 8 सितम्बर, 2009 को प्रधानमंत्री ने भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग की ओर से साक्षर भारत मिशन शुरू करने की घोषणा की। इस कार्यक्रम का लक्ष्य प्रौढ़ शिक्षा, विशेषकर महिला शिक्षा को बढ़ावा देकर मजबूत बनाना था....

Update: 2021-06-26 07:02 GMT

(अन्तर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस पर 8 सितम्बर, 2009 को प्रधानमंत्री ने भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग की ओर से साक्षर भारत मिशन शुरू करने की घोषणा की थी।)

जीतेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

जनज्वार। निरक्षर वयस्कों को साक्षर बनाने के मकसद से देशभर में जिन लाखों प्रेरकों ने अपना योगदान दिया,वे अब सरकार की कारगुजारियों से निराश हैं। 'साक्षर भारत' अभियान के बंद हुए तीन वर्ष का वक्त गुजर गया, पर इस कार्य में लगें प्रेरकों समेत अन्य कर्मियों के बकाया मानदेय का भुगतान नहीं किया गया। देशभर में ऐसे प्रेरकों का छह माह से लेकर तकरीबन पांच साल तक का मानदेय बकाया है। इसमे अकेले यूपी की योगी आदित्यनाथ की सरकार पर 662 करोड़ बकाया है। इसको लेकर न्यायालय की शरण में गए प्रेरकों को भुगतान करने का कई बार आदेश हुआ,पर सरकारों के तरफ से पहल होते नहीं दिखी। इसका नतीजा है कि कल के बेहतर उम्मीद के साथ लगे लाखों बेरोजगार नौजवानों ने साक्षरता अभियान के साथ जुड़ कर योग्यताधारी उम्र हो गंवा दिया,अब ये भुखमरी के शिकार हैं।

प्रेरकों के मानदेय भुगतान की मांग को लेकर आंदोलित प्रेरक वेलफेयर ऐसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु प्रताप सिंह कहते हैं कि सरकार ने भुगतान को लेकर मात्र हमेशा झूठा आश्वासन देते रही है जिसके चलते राज्यभर के तकरीबन एक लाख से अधिक प्रेरकों का 662 करोड का भुगतान बकाया है विष्णु प्रताप कहते हैं, राज्य के 26 जिलों में प्रथम चरण में योजना शुरू हुई थी इन जिलों के प्रेरकों का 40 माह का मानदेय लंबित है जबकि 40 जनपदों में दूसरे चरण में योजना शुरू हुई इन जिलों के प्रेरकों का 20 से 25 माह तक का मानदेय नहीं मिला है इसको लेकर संगठन लगातार संघर्षरत है।

देवरिया जिले के खुखुन्दु निवासी लियाकत अहमद की सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में पहचान है। साक्षर भारत मिशन की शुरूवात होने पर इन्हें ब्लाक समन्वयक की जिम्मेदारी दी गई। इनके उत्साहजनक कार्यपरिणाम देख कर विभाग ने एक अतिरिक्त ब्लाक का भी कार्यभार दिया। लेकिन उनके सेवा व कार्य के प्रति उत्साह का पारितोषिक सरकार ने घोर निराशा के रूप में दी है।ऐसे ही प्रेरक व समन्वयकों की भारी तादाद है,जो सरकार के रवैये से निराश हैं। लियाकत कहते हैं, हम सबों ने मानदेय भुगतान के लिए विभागीय अधिकारियों से कई बार दरख्वास्त की। इसको लेकर लंबा आंदोलन चला। अपने मेहनत की मजदूरी मांगने पर कई कई बार पुलिस की लाठियां मिली, पर बकाया का भुगतान नहीं मिला।

सरकार व बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा मानदेय के सवाल पर कोई ठोस जवाब न मिलने पर कई लोगों ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। देवरिया के भलुवनी ब्लाक के बहादुरपुर निवासी मनीष त्रिपाठी ने अपने दो दर्जन प्रेरकों के साथ मिलकर प्रयागराज हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की। मनीष के मुताबिक हाईकोर्ट ने तीन माह के अंदर सभी बकाया मानदेय का भुगतान करने का जिलधिकारी व बेसिक शिक्षा अधिकारी को निर्देश दिया। लेकिन कोर्ट के आदेश पर कोई अमल होते नहीं दिखा। ऐसे में हमने न्यायालय की अवमानना संबंधित याचिका दायर की। इसके बाद एक बार फिर हाईकोर्ट के डबल बेंच ने बेसिक शिक्षा अधिकारी को खुद न्यायालय में उपस्थित होकर अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया। इसके लिए 26 मार्च 2020 की तिथि तय हुई,पर इसके चार दिन पहले ही 22 मार्च को कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए कोर्ट बंद कर दिया गया।इसके बाद से न्यायिक प्रक्रिया बाधित है।

प्रेरक वेलफेयर ऐसोसिएशन के जिलाध्यक्ष सिकंदर राय कहते हैं कि जब-जब मानदेय की बात को लेकर हम लोगों ने धरना प्रदर्शन किया,तब प्रशासन ने भुगतान का दिलाशा देते हुए ऑडिट की प्रक्रिया शुरू कर दी। राज्य व केंद्र की टीम द्वारा कई बार किए गए सत्यापन के बाद भी भुगतान नहीं किया गया। हर बार अफसरों ने मात्र झूठा आश्वासन दिया।

प्रेरक बेलफेयर ऐसोसिएशन का कहना है कि देवरिया जिले के प्रेरकों का 40 माह का मानदेय बकाया है। इसी तरह ब्लाक समन्वयक छह माह व जिला समन्वयक चार माह के मानदेय से वंचित रह गए हैं। उधर संगठन के गोरखपुर जिलाध्यक्ष मृत्युंजय पांडे का कहना है कि जिले के प्रेरकों का 28 से 30 माह का मानदेय लंबित है। इसको लेकर गोरखपुर प्रवास के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कई बार प्रतिनिधिमंडल मिला व अपने मांगों से अवगत कराया। लेकिन हर बार आश्वासन के अलावा कुछ भी हासिल नहीं हुआ।

अन्तर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस पर प्रधानमंत्री ने की थी योजना की घोषणा

अन्तर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस पर 8 सितम्बर, 2009 को प्रधानमंत्री ने भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग की ओर से साक्षर भारत मिशन शुरू करने की घोषणा की। इस कार्यक्रम का लक्ष्य प्रौढ़ शिक्षा, विशेषकर महिला शिक्षा को बढ़ावा देकर मजबूत बनाना था। इसके लिए शिक्षा से वंचित ऐसे व्यक्तियों को लक्षित किया गया जो किसी कारण से औपचारिक शिक्षा नहीं ग्रहण कर पाए एवं तत्संबंधी निर्धारित आयु सीमा पार कर चुके है तथा अब पुनः शिक्षा ग्रहण करना चाहते है।

शिक्षा के आयामों में साक्षरता, बुनियादी शिक्षाऔपचारिक शिक्षा के समकक्ष, व्यावसायिक शिक्षाकौशल विकास, भौतिक एवं भावनात्मक विकास, व्यावहारिक कलाएं प्रायोगिक विज्ञान, खेल-कूद एवं मनोरंजक गतिविधियॉं आदि को शामिल करने का लक्ष्य रखा गया। साक्षर भारत कार्यक्रम अन्तर्गत 15 वर्ष या इससे अधिक आयु के समस्त वयस्कों को शिक्षित किए जाने का लक्ष्य तय करते हुए महिलाओं को प्राथमिकता देने पर जोर दिया गया इस कार्यक्रमों के समन्वयन एवं प्रबंधन हेतु लोक शिक्षा केन्द्र स्थापित किए गए। साक्षर भारत कार्यक्रम का विधिवत संचालन 1 अक्टूबर, 2009 से प्रारम्भ किया गया।

इसके अनुसार 15 वर्ष या इससे पर की आयु के सात करोड़ वयस्कों को चिन्हित किया गया। साक्षर भारत मिशन की अन्तिम लाभार्थी मुख्यतः महिलाओं को तय किया गया। इसके साथ ही निम्न साक्षरता दर वाले राज्यों के विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में अनुसूचित जाति, जनजाति, अल्पसंख्यकों विशेषकर मुस्लिम आबादी, अन्य वंचित वर्गो एवं नव किशोर वर्ग को प्राथमिकता देने का संकल्प व्यक्त किया गया।

योजना को लागू करने के लिए पंचायत से लेकर जिले तक लोक शिक्षा समिति का गठन किया गया । जिसके तहत प्रत्येक ग्रामपंचायतों में गठित समिति में दो प्रेरक रखे गए जिनमें एक महिला को रखना अनिवार्य था इसका संचालन पंचायत में मौजूद प्राथमिक विद्यालय से किया जाता था समिति का पदेन सचिव प्रधानाध्यापक हुआ करते थे इसी तरह ब्लाक लोक शिक्षा समिति के एक समन्वयक व बीडीओ को सचिव की जिम्मेदारी दी गई थी जिला लोक शिक्षा समिति में चार समन्वयक के अलावा सचिव का कार्यभार बेसिक शिक्षा अधिकारी को मिली थी।

प्रेरक संजय शुक्ल कहते हैं कि देवरिया जिले में 2034 प्रेरक थे जिले में योजना की शुरूआत 27 मई 2011 से हुई योजना के तहत सुचारू रूप से कार्य होता रहा, पर प्रेरकों का दो हजार रूपए मानदेय का कभी समय से भुगतान नहीं हुआ। अभी भी 40 माह का मानदेय बकाया है।

31 मार्च 2018 को देश में बंद हो गई योजना

साक्षर भारत कार्यक्रम का विधिवत संचालन 1 अक्टूबर, 2009 से प्रारम्भ किया गया। इसे वर्ष 2012 तक चलाने का पूर्व में निर्णय लिया गया था। जिसका समय समय पर विस्तार किया जाते रहा। 31 दिसंबर 2017 को ही इसकी अवधि खत्म हो गई थी। लेकिन बाद में 31 मार्च 2018 तक इसे दोबारा विस्तार दिया गया था। इसके बाद से ही योजना स्थाई रूप से बंद है । अब इसके बदले कोई नई योजना शुरू करने या इसे जारी रखने को लेकर कोई दिशानिर्देश अभी तक केंद्र से राज्य सरकार को नहीं मिला है। यह हमेशा चर्चा होती रही हैै कि केंद्र सरकार इस अभियान के बदले कोई नई और व्यापक योजना लेकर आ रही है।

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