6 महीने में 24 हजार बच्चियों का बलात्कार, उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर 'काबिज'
एक जनवरी से लेकर 30 जून के बीच इस साल बच्चियों से रेप के 24 हजार 212 केस हुए दर्ज, 11,981 मामलों में चल रही है जांच, तो 12,231 मामलों में पुलिस ने अभी तक दाखिल की है चार्जशीट दाखिल, जबकि मात्र 911 मामलों में ट्रायल में आया है फैसला...
जेपी सिंह की रिपोर्ट
जनज्वार। देश में बच्चों का यौन उत्पीड़न रोकने के लिए कानून कड़ा करने और फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने जैसे कई कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। उच्चतम न्यायालय ने देशभर में चाइल्ड रेप मामले में चिंता जताई है और मामले में खुद संज्ञान लेते हुए परीक्षण करने का फैसला किया है।
उच्चतम न्यायालय को यहां तक कहना पड़ा है कि लगता है कानून का कोई डर नहीं रह गया है। उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, दीपक गुप्ता व अनिरुद्ध बोस की तीन सदस्यीय पीठ ने सुनवाई के दौरान मामले को पीआईएल में बदलते हुए सीनियर वकील वी गिरी को कोर्ट सलाहकार बनाया है और उन्हें मामले में पक्ष रखने को कहा है।
पीठ ने याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि पिछले छह महीने में 24 हजार बच्चियों के साथ रेप की घटना चिंताजनक है। पीठ ने कहा कि हम मामले में संज्ञान लेते हैं और परीक्षण करेंगे। हम इस बात पर गौर करेंगे कि क्या ऐसे मामले की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया जाए। क्या स्पेशल कोर्ट का गठन किया जाए। पीठ ने इन तमाम संदर्भ में कोर्ट सलाहकार से अपना पक्ष सोमवार, 15 जुलाई तक रखने को कहा है।
इसके पहले उच्चतम न्यायालय ने बच्चियों से रेप के मामले में रजिस्ट्री से कहा था कि वह रिपोर्ट पेश कर बताए कि पिछले छह महीने में चाइल्ड रेप की कितनी घटनाएं हुई हैं। उच्चतम न्यायालय ने ये भी पूछा था कि कितने मामले दर्ज हुए, कितने की जांच चल रही है, कितने में चार्जशीट हुई है, अदालत में कितने मामले पेंडिंग है? चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि जो रिपोर्ट पेश की गई है वह तमाम राज्यों की है। रिपोर्ट चिंतनीय है।
रिपोर्ट बताती है कि एक जनवरी से लेकर 30 जून के बीच इस साल बच्चियों से रेप के 24 हजार 212 केस दर्ज हुए। इनमें से 11,981 मामलों में जांच चल रही है। पुलिस ने अभी तक 12,231 मामलों में चार्जशीट दाखिल की है। ट्रायल में अभी तक 911 मामलों में फैसला आ चुका है। 6449 मामले में ट्रायल चला है। इस तरह केवल 900 मामले में ट्रायल पूरा हुआ है और फैसला आया है, जो कि कुल संख्या का मात्र चार फीसद है।
बच्चों के यौन उत्पीड़न को लेकर उच्चतम न्यायालय की पहल पर तैयार सूची में उत्तर प्रदेश 3457 मुकदमों के साथ सबसे ऊपर है। यूपी ऐसे कांड में ही आगे नहीं है, बल्कि पुलिस भी ढीले रवैये में भी सबसे आगे है, यहां 50 फीसदी से ज्यादा केसों में जांच चल रही है, जो बेहद ढीली है।
कानून मंत्रालय एवं संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टके अनुसार ट्रायल और न्याय की धीमी रफ्तार की वजह पुलिस जांच और न्यायिक प्रक्रिया है। आबादी के अनुपात में पुलिस और जजों की संख्या में भारी कमी है। 454 लोगों के लिए एक पुलिस अधिकारी होना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र के मानक के मुताबिक 514 लोगों के लिए एक पुलिस अधिकारी होना चाहिए। भारत में गृह मंत्रालय के 2016 के आंकड़ों के मुताबिक 10 लाख लोगों के लिए 19 जज हैं, यूएन के मानक के मुताबिक इनकी संख्या 50 होनी चाहिए।
इस बीच बच्चों के साथ यौन अपराध करने वालों को अब फांसी की सजा दी जा सकेगी। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार 10 जुलाई को यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) कानून 2012 में जरूरी संशोधनों को मंजूरी दी है। इसमें बाल पोर्नोग्राफी पर लगाम लगाने के लिए सजा और जुर्माने का भी प्रावधान है।
यौन उत्पीड़न के मामलों की जल्द सुनवाई के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 18 राज्यों में 1023 फास्ट ट्रैक कोर्ट खोलने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इनमें महिला के यौन उत्पीड़न और बाल अपराधों से जुड़े पॉक्सो एक्ट के मामलों की सुनवाई होगी।
बच्चियों के साथ यौन उत्पीड़न की घटनाओं में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर बना हुआ है। उत्तर प्रदेश में बच्चियों के बलात्कार की 3457 एफआईआर दर्ज की गई, जिनमें से 1,779 मामलों में अब तक छानबीन जारी है। वहीं मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर है, वहां इस तरह के 2,389 मुकदमे दर्ज किए। एमपी पुलिस 1,841 मामलों में चार्जशीट दायर कर चुकी है, जबकि 247 मामलों का ट्रायल पूरा हो चुका है। वहीं इस दौरान राजस्थान में 1,285, कर्नाटक में 1,133, गुजरात में 1,124, तमिलनाडु में 1,043, केरल में 1,012, ओडिशा में 1,005 मुकदमे दर्ज किए गए।