किसान संगठनों ने कहा सरकार की किसान विरोधी कॉरपोरेट पक्षधर नीतियों के कारण भारतीय किसान विश्व बाजार में कम बेच पाते हैं फसलें
इंदौर। किसान संघर्ष समिति के कार्यकारी अध्यक्ष पूर्व विधायक एवं 250 किसान संगठनों के समन्वय अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के मध्यप्रदेश प्रभारी डॉ सुनीलम, हिंद मजदूर किसान पंचायत के महासचिव रामस्वरूप मंत्री, किसान संघर्ष समिति मध्य प्रदेश के महासचिव दिनेश सिंह कुशवाह ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया है अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति तथा जनआंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के साथ जुड़े संगठन, केंद्र सरकार द्वारा किसान विरोधी, रिजनल कॉम्प्रीहैंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) व्यापार संधि पर गोपनीय ढंग से सहमति देने का विरोध करेंगे। आज 4 नवंबर को मध्य प्रदेश सहित देशभर में आर.सी.ई.पी. व्यापार संधि का पुतला दहन कर विरोध प्रदर्शन किया जाएगा तथा प्रधानमंत्री मोदी को एक ज्ञापन भी सौंपा जायेगा।
आरसीईपी मुक्त व्यापार संधि में भारत को शामिल करने के विरुद्ध सरकार को चेतावनी देते हुए अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने देशव्यापी विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी है।
डॉ सुनीलम और रामस्वरूप मंत्री ने मोदी सरकार से आर.सी.ई.पी., क्षेत्रीय समग्र व्यापार संधि, जो कि 16 देशों के बीच एक बहुपक्षीय मुक्त व्यापार संधि है, में भारत को शामिल करने की योजना पर प्रश्न उठाया है। डॉ सुनीलम ने केंद्र सरकार से मांग की है कि वह 4 नवम्बर आर.सी.ई.पी. समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करे।
किसान संघर्ष समिति ने जोर देकर कहा है कि सरकार की किसान विरोधी कॉरपोरेट पक्षधर नीतियों के कारण भारतीय किसान विश्व बाजार में अपनी फसलें बेच पाने में कम सक्षम हैं। विश्वभर में सरकारें फसलों की लागत में भारी छूट देती हैं और अपने किसानों को खेती की अच्छी सुविधाएं प्रदान करती हैं, जिसकी वजह से उनकी उपज के दाम बाजार में प्रतियोगी बने रहते हैं। भारत में लागत पर इतना भारी कर लगाया जाता है और किसानों को लाभकारी मूल्य नहीं दिया जाता कि किसान घाटे में रहते हैं और कर्ज से लदे रहते हैं। आरसीईपी इस संकट को और गम्भीर बना देगा।
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने कहा कि इतने व्यापक प्रभाव वाले व्यापार समझौते को जो करोड़ों भारतीय किसानों की जीविका को प्रभावित कर देगा, एक पूर्ण गोपनीय समझौता किया जाना, लोकतंत्र का मजाक उड़ाना है।
डॉ सुनीलम ने कहा कि इस समझौते का कोई प्रारूप सार्वजनिक तौर पर देखने तक के लिए उपलब्ध नहीं है। राज्य सरकारों से भी सुझाव नहीं लिए गये हैं और संसद में भी इसकी चर्चा नहीं की गयी है। वाणिज्य मंत्री का यह कहना कि -जब तक समझौता बाहर नहीं आता तक तक सभी को चुप्पी साधे रखनी चाहिए, बेहद निन्दनीय है। डॉ सुनीलम एवं मध्य प्रदेश किसान संघर्ष समिति के दिनेश सिंह कुशवाहा ने कहा कि सरकार विरोध को तब तक रोके रखना चाहती है, जब तक यह समझौता हस्ताक्षर के बाद एक मजबूरी न बन जाए।
किसान संघर्ष समिति ने सरकार से मांग की है कि वह इस पर 4 नवम्बर को हस्ताक्षर करने से पहले समझौते का प्रारूप सार्वजनिक करे। बिना राज्यों की सहमति तथा बिना राज्य की विधानसभाओं, लोकसभा और राज्यसभा में समझौते पर बहस किये यह किसान विरोधी समझौता नहीं करे।
किसान संघर्ष सामिति ने कहा है कि आरसीईपी सर्वाधिक विपरीत प्रभाव डेयरी क्षेत्र पर पड़ेगा। अब तक नियम यही रहा है कि खेती को मुक्त व्यापार समझौतों से मुक्त रखा जाए, जिस नियम पर अमरीका और यूरोप के बीच समझौतों में भी पालन किया गया है। इसमें आयात शुल्क शून्य या लगभग शून्य हो जाने से 10 करोड़ डेयरी किसान परिवार के रोजगार पर हमला होगा। इसी तरह का खतरा गेहूं और कपास (जिसका आयात आस्ट्रेलिया व चीन से होता है), तिलहन (पाॅम आयल के कारण) और प्लाण्टेशन उत्पाद कालीमिर्च, नारियल, सुपाड़ी, इलायची, रबर आदि पर पड़ेगा।
आरसीईपी का भारतीय किसानों पर प्रभाव आयात शुल्क तक सीमित नहीं है। इससे विदेशी कम्पनियों का असर बीज के पेटेन्ट व फसलों व पशुओं के प्रजनन के अधिकार पर भी पड़ेगा। इससे विदेशी कम्पनियों को खेती की जमीन अधिग्रहीत करने, अनाज की सरकार खरीद में हस्तक्षेप करने, खाद्यान्न प्रसंस्करण में निवेश करने तथा ई-व्यापार बढ़ाकर छोटी दुकानदारी को नष्ट करने से भारतीय किसान और अधिक मात्रा में कारपोरेट पर निर्भर हो जाएंगे, जिनका मुनाफा किसानों की कीमत पर बढ़ेगा। डॉ सुनीलम ने उक्त सभी मुद्दों पर सरकार से स्पष्टीकरण देने की मांग की है।