फर्जी मुठभेड़ के दोषी 7 सैन्य अधिकारियों को आर्मी कोर्ट ने दी उम्रकैद की सजा

Update: 2018-10-16 08:26 GMT

सेना के कुछ अपराधी किस्म के अधिकारी महज कुछ ईनाम और समय पूर्व प्रमोशन के लालच में वो इस हद तक गिर सकते हैं कि किसी भी निर्दोष की हत्या करने में भी उन्हें पल भर की झिझक तक नहीं होती...

सुशील मानव

जनज्वार। असम के डिब्रूगढ़ जिले में 24 साल पुराने फर्जी मुठभेड़ मामले में आर्मी जनरल समरी कोर्ट मार्शल army Summary General Court Martial (SGCM) की कोर्ट ने 5 सैन्य अधिकारियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। आर्मी कोर्ट के इतने साहसी फैसले के बाद हाशिमपुरा, माधोपुर, सिख तीर्थयात्री एनकाउंटर, इशरतजहाँ, बाटलाहाउस व कश्मीर का माछिल फेक एनकाउंटर समेत कई फर्जी एनकाउंटरों की टीस फिर से ताजा हो उठी है।

असम के डिब्रूगढ़ जिले के डिंजन में 2 इन्फैन्ट्री माउंटेन डिविजन में हुए कोर्ट मार्शल में यह फैसला सुनाया गया। उम्रकैद की सजा पाने वालों में मेजर जनरल एके लाल, कर्नल थॉमस मैथ्यू, कर्नल आरएस सिबिरेन, नॉनकमिशंड ऑफिसर्स दिलीप सिंह, कैप्टन जगदेव सिंह, नायक अलबिंदर सिंह और नाइक शिवेंद्र सिंह शामिल हैं। दरअसल, असम के तिनसुकिया जिले में 18 फरवरी 1994 में यह फेक एनकांटर हुआ था, जिसमें सभी आरोपी सेना के अफसरों का कोर्ट मार्शल कर दिया गया था।

बता दें कि तलप टी एस्टेट के असम फ्रंटियर टी लिमिटेड के जनरल मैनेजर रामेश्वर सिंह की उल्फा उग्रवादियों के जरिए हत्या कर देने के बाद ढोला आर्मी कैंप में सेना ने 9 लोगों को उनके घरों से उठाया था। सेना ने उठाए 5 लोगों को 23 फरवरी 1994 को कुख्यात डांगरी फेक एनकाउंटर में मार डाला गया था।

18 फरवरी 1994 में एक चाय बागान के एक्जीक्यूटिव की हत्या की आशंका पर सेना ने नौ युवाओं को तिनसुकिया जिले से पकड़ा था। इस मामले में बाद में सिर्फ चार युवा ही छोड़े गए थे, बाकी लापता चल रहे थे। जिस पर पूर्व मंत्री और बीजेपी नेता जगदीश भुयान ने हाईकोर्ट के सामने याचिका के जरिए इस मामले को उठाया था.. जगदीश भुयान ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में 22 फरवरी 1994 को याचिका दायर कर गायब युवाओं के बारे में जानकारी मांगी।

फर्जी मुठभेड़ में मारे गए पांचों युवा प्रबीन सोनोवाल, प्रदीप दत्ता, देबाजीत बिस्वास, अखिल सोनोवाल और भाबेन मोरन ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) के कार्यकर्ता थे। इस पूरे मामले में AASU के तत्कालीन उपाध्यक्ष और वर्तमान बीजेपी नेता जगदीश भुयान ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ी। मामले की सीबीआई जांच भी हुई। दरअसल, 14 फरवरी से 19 फरवरी 1994 के बीच तिनसुकिया जिले की अलग-अलग जगहों से फर्जी एनकाउंटर में मारे गए पांचों कार्यकर्ताओं को पंजाब रेजिमेंट की एक यूनिट ने 4 अन्य लोगों के साथ मिलकर उठाया था। उस वक्त सैन्यकर्मियों ने फर्जी एनकाउंटर में पांच युवाओं को मार गिराते हुए उन्हें उल्फा उग्रवादी करार दिया था।

याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने भारतीय सेना को आल असम स्टूडेंट्स यूनियन के सभी नेताओं को नजदीकी पुलिस थाने में पेश करने का हुक्म दिया। लेकिन सेना ने धौला पुलिस स्टेशन में पांच युवाओं का शव पेश किया।

असम के गुवाहाटी स्थित यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया में मैनेजर दीपक दत्ता अपने भाई प्रदीप दत्ता से जुड़ी उस रात की बात बताते हैं कि फौज ने दरवाजा खटखटाया और केसी हत्या का आरोपी और उल्फा उग्रवादियों से संबंध बताकर मेरे भाई प्रदीप दत्ता को गिरफ्तार कर लिया। उसके बाद प्रदीप जिंदा नहीं लौटा। फौज ने मैनेजर दीपक दत्ता के भाई समेत चार अन्य युवकों को भी उठाया था। और फिर चार दिन बाद 23 फरवरी 1994 को इन सब की हत्या कर दी गई। जिसे आगे चलकर डोंगरी फर्जी मुठभेड़ केस के रूप में भी जाना गया।

दीपक बताते हैं कि प्रदीप की हत्या के बाद उनके शव को जिस हाल में उन्हें सौंपा गया था उसे देखने के बाद परिवार कई दिनों तक दहशत में था। जिस समय प्रदीप को फौज ने घर से उठाया था, उससे एक महीने पहले ही प्रदीप की शादी हुई थी। प्रदीप अपने पांच भाइयों में दूसरे नंबर पर था, जो कि तिनसुकिया जिले के तलप इलाके में रहते थे।

कल इस मामले में सैन्य अदालत ने फर्जी मुठभेड़ में दोषी मानते हुए मेजर जनरल समेत सात सैन्यकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। इस केस के फैसले के साथ एक बार फिर से भारतीय सैन्य प्रशासन का अमानवीय व बर्बर चेहरा बेनकाब हो गया है। साथ ही ये बहस एक बार फिर से छिड़ गई है कि सेना और पुलिस कभी मनुष्य और मनुष्यता के रक्षक नहीं हो सकते!

महज कुछ ईनाम और समय पूर्व प्रमोशन के लालच में वो इस हद तक गिर सकते हैं कि किसी भी निर्दोष की हत्या करने में भी उन्हें पल भर की झिझक तक नहीं होती। जाहिर है सत्ता का खुला संरक्षण भी मिला होता है इन्हें। कई बार शोषित वंचित तबके के निर्दोषों की हत्या करवाकर भी सरकार सत्तावादी वर्ग को ये संदेश देती है कि वो उनके साथ है।

उत्तर प्रदेश का हाशिमपुरा फर्जी एनकाउंटर इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। जो हिंदूवर्ग को संतुष्ट करने के मकसद से ही करवाया गया था। लेकिन पाँच जिंदा बचे गवाहों के बावजूद न्यायपालिका द्वारा हाशिमपुरा की उस खूनी जनसंहार में शामिल हत्यारे पीएसी के जवानों को रिहा कर दिया।

उत्तर प्रदेश के मौजूदा हालात और पिछले डेढ़ साल में डेढ़ हजार से ज्यादा फर्जी एनकाउंटर इसके सबूत हैं। जहाँ सिर्फ एक फर्जी एनकाउंटर में पुलिसवाले की गलती से सत्ताधारी वर्ग का विवेक तिवारी निशाना बन गया और फिर उसके पक्ष में मीडिया द्वारा पूरा एक जनदबाव खड़ा कर दिया गया।

सत्ता ने अपनी कुर्सी खतरे में देख फटाफट एक्शन लेते हुए एनकाउंटर के महज 13 वें दिन मृतक की पत्नी को सरकारी नौकरी और 40 लाख रुपए देकर अपना पिंड छुड़ाया, जबकि दूसरे फर्जी मुठभेड़ों के मामलों में ऐसा नहीं पा रहा है। आखिर क्यों?

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