मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 97 फीसदी बढ़ी गौरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी

Update: 2018-07-05 11:40 GMT

शिक्षा, रोजगार, आर्थिक विकास, देश की विकास दर, स्वास्थ्य, महंगाई और प्रसाशन भले ही नकारात्मक रूझान में हों लेकिन दंगा, फसाद और धार्मिक गुंडागर्दी के आंकड़े इस सरकार के सिरमौर बने हुए हैं

जावेद अनीस का विश्लेषण

2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से गौरक्षा के नाम पर दलितों और अल्पसंख्यकों पर हमले और उन्हें आतंकित करने के मामले बढ़े हैं। इंडिया स्पेंड वेबसाइट के अनुसार साल 2010 से 2017 के बीच गौरक्षा के नाम पर हुई घटनाओं में से 97 प्रतिशत घटनाएं मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद हुई हैं।

इस दौरान गायों की खरीद-बिक्री और मारने की अफवाहों को लेकर मुसलमानों पर हमले के लिये तो जैसे स्वयं-भू "गौ रक्षकों" के गिरोहों को खुली छूट और संरक्षण मिल गयी है। ह्यूमन राइट्स वॉच द्वारा जारी 'वर्ल्ड रिपोर्ट 2018' के अनुसार मोदी सरकार अल्पसंख्यकों पर हमलों को नहीं रोक सकी हैं वर्ष 2017 में नवंबर तक 38 ऐसे मामले हुये हैं जहां गौरक्षा के नाम पर मुस्लिम समुदाय के लोगों पर हमले हुए, जिनमें 10 लोग मारे गये।

लेकिन इन हमलावर लोगों, गिरोहों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के बजाय प्रशासन की दिलचस्पी पीड़ितों, उनके परिवार के लोगों और रिश्तेदारों के खिलाफ ही गौ हत्या निषेध कानूनों के तहत मामले दर्ज करने में ज्यादा रही। इस दौरान हत्यारों/ हमलावरों को अगर गिरफ्तार भी किया जाता है तो उन्हें इस बात का पूरा भरोसा रहता है कि वे जल्दी ही बरी हो जाने वाले हैं।

सतना जिले के अमगार गांव में गोहत्या के शक में की गयी हिंसा और अनुतरित सवाल

मध्य प्रदेश जो खुद को शांति का टापू कहता है, भी इससे अछूता नहीं है. मध्य प्रदेश में अल्पसंख्यकों की अपेक्षाकृत कम आबादी होने के बावजूद साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील बना रहता है। यहाँ गौ रक्षकों द्वारा रेलगाड़ियों और रेलवे स्टेशनों पर मुस्लिम पुरुषों और महिलाओं पर हमला करने जैसी घटनायें पहले हो चुकी हैं।

इसी कड़ी में बीते 17 मई 2018 की रात को सतना जिले के अमगार गावं में गौकशी करने के शक में भीड़ द्वारा दो लोगों पर हमले का मामला सामने आया, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो चुकी है तथा दूसरा गंभीर रूप से घायल है। इसके बाद मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा बिना किसी ठोस जांच के मृतक और घायल व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया जाता है। इस पूरे मामले में आदिवासी गौड़ समुदाय की भूमिका सामने आ रही है, जो आदिवासी के हिन्दुकरण की लिये चलायी गयी लंबी प्रक्रिया का परिणाम है।

मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार गौड़ आदिवासी बाहुल्य गांव “अमगार” में लगातार मवेशी चोरी होने की घटनाएं हो रही थीं। 17 मई की रात को अमगार गांव के कुछ लोगों ने गांव से कुछ दूरी पर खदान के पास अज्ञात लोगों को मांस काटते हुये देखा, जिसके बाद उन्होंने इसकी सूचना गांव के अन्य लोगों को दी और फिर आधी रात को पूरा गांव एकजुट होकर मौके पर पहुँच गया, जहां गुस्साई भीड़ ने गौ हत्या शक में शकील और सिराज नाम के दो व्यक्तियों को बुरी तरह से मरते दम तक पीटा गया।

इसके बाद घटना की सूचना 100 डॉयल कर पुलिस को दी गई। पुलिस करीब लगभग सुबह 4 बजे मौके पर पहुँची और दोनों घायलों को मैहर अस्पताल ले गयी। इलाज के दौरान एक की मौत हो गयी, जबकि दूसरे को इलाज के लिये जबलपुर रेफर कर दिया गया। घटनास्थल पर पुलिस द्वारा दो कटे हुए बैल, एक सर कटा हुआ बैल और एक बंधी हुयी गाय मिली और तीन बोरे में कटा हुआ मांस और मांस काटने का औजार भी बरामद किया गया।

इस पूरी मामले की एक स्वतंत्र नागरिक जांच दल द्वारा पड़ताल की गयी, जिसकी रिपोर्ट में इस पूरे घटनाक्रम को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े किये गये हैं।

जाँच दल द्वारा निरीक्षण के दौरान पाया गया कि घटनास्थल से 100 मीटर की दूरी पर पक्की सड़क है और वहां से कुछ दूरी पर ही गाँव भी है ऐसे में वहां किसी भी बड़े जानवर के काटने की आवाज विशेष तौर पर रात में बहुत आसानी से सुनाई पड़ जानी चाहिये, ऐसे में कोई वहां तीन बड़े जानवर काटने का इतना बड़ा रिस्क क्यों लेगा?

करीब 40-50 ग्रामीणों ने इन दोनों के अलावा न तो किसी को घटनास्थल से भागते हुये देखा और न ही उन्होंने किसी वाहन की आवाज सुनी गयी. जबकि बड़े मवेशियों को काटने के लिये कम से कम 6 से 8 अनुभवी लोगों की जरूरत पड़नी चाहिए ऐसे में कई सवाल अनुतरित रह जाते हैं जैसे केवल दो व्यक्ति इस घटना को कैसे अंजाम दे सकते हैं? यदि सिराज खान, शकील अहमद मवेशी काट रहे थे तो उनके साथ और कौन लोग शामिल थे? क्या मांस को ले जाने के लिये उनके पास गाड़ी थी? घटनास्थल से 3-4 क्विंटल मांस बरामद किये गये हैं इतनी अधिक मात्र में मांस का वो क्या करने वाले थे? क्या इसके पीछे मांस तस्करी का कोई गैंग है?

इसी तरह से अमगार गांव के लोगों का कहना था है कि घटना के दिन से पहले ही उनके गांव से 10 दिनों से हर रात औसतन 2 से 4 मवेशी गायब हो रहे थे और उन्हें जानवरों के ताजे कंकाल मिल रहे थे, लेकिन किसी ने भी इसको लेकर रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई। बदेरा थाना निरीक्षक द्वारा भी इसकी पुष्टि नहीं की गयी और इस दौरान मिले कंकालों को कई महीनों पुराना बताया जाता है।

जांच दल द्वारा सिराज खान की मौत और शकील अहमद के खिलाफ मामला फोरेंसिक परीक्षण रिपोर्ट आने के पहले ही पंजीकृत करने पर भी सवाल उठाये गये हैं और यह मांग की गयी है कि जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि बरामद किया गया मांस गाय का ही है, तब तक के लिए सिराज खान, शकील अहमद पर मध्य प्रदेश गौवंश वध प्रतिशेष अधिनियम और कृषक पशु अधिनियम के तहत लगायी गयी धाराओं को वापस लिया जाए.

बजरंग दल का पेंच

जांच दल की रिपोर्ट में बजरंग दल जैसे संगठनों का पेंच भी उभर कर सामने आया है। अमगार के लोगों ने जांच दल को बताया गया है कि अमगार और बदेरा थाना के आसपास के क्षेत्रों में बजरंग दल सक्रिय है और इनका अमगार और आरोपीगणों से भी संपर्क रहा है। ग्रामीणों ने बताया कि जानवर ले जा रही गाड़ियों को रोककर मारपीट की घटनाएं कई बार हो चुकी हैं, इसी तरह से गांव वालों द्वारा इस घटना की सूचना पुलिस को देने से पहले बजरंग दल वालों को दी गयी थी और घटनास्थल पर पुलिस टीम के पहुँचने से पहले बजरंग दल के लोग पहुँच चुके थे।

अमगार गाँव के लोगों द्वारा जांच दल को यह भी बताया गया कि बजरंग दल वालों ने आश्वासन दिया है कि इस मामले में जिन चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है, उन्हें चार से छह महीने के अन्दर रिहा करवा लिया जाएगा, तब तक शांत रहना है।

पिछले कुछ सालों से मैहर और इसके आसपास का इलाका साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील बना हुआ है और इसके पीछे मुख्य रूप से बजरंग दल जैसे संगठनों की गतिविधियां और उनको दी गयी खुली छूट है। पिछले साल दिसम्बर में ईद मिलादुन्नबी के दिन झंडा लगाने को लेकर मैहर में तनाव की स्थिति बनी थी। उस समय मीडिया में प्रकाशित ख़बरों के अनुसार बजरंग दल के जिला संयोजक महेश तिवारी द्वारा ईद मिलादुन्नबी के दिन मैहर घंटाघर चौराहे पर इस्लामी झंडा लगाने का विरोध किया गया, जिससे तनाव की स्थिति बन गयी थी।

इस दौरान दोनों पक्षों के बीच हाथापाई हुई जिसमें महेश तिवारी को भी चोटें आयीं। बाद में बजरंग दल और अन्य हिन्दुतात्वादी संगठनों द्वारा इस घटना को आधार बनाकर पूरे शहर में आगजनी और तोड़फोड़ की और मुस्लिम समुदाय के कई दूकानों को आग के हवाले कर दिया गया। इस दौरान पुलिस निष्क्रिय बनी रही। बजरंग दल के कार्यकर्ताओं द्वारा विरोध प्रदर्शन के दौरान तैनात पुलिस फोर्स को धक्का देकर भगा दिया गया, यहां तक की थाने में पुलिस वालों से अभद्रता की गयी।

मैहर और आसपास के इलाकों में गाय को लेकर बजरंग दल की सक्रियता को उसके जिला संयोजक महेश तिवारी के 20 दिसंबर 2017 के फेसबुक पोस्ट और पोस्टर से समझा जा सकता है। पोस्टर इस साल 16 मार्च 2018 को मैहर में आयोजित हुये हिन्दू पंचायत को लेकर है, जबकि फेसबुक पोस्ट में वो मैहर में गौ हत्या, इसको लेकर मुस्लिम समाज के लोगों को गिरफ्तारी, बड़ी बसों और ऑटो से मैहर से गौमांस की सप्लाई की बात कर रहे हैं और इसके साथ ही चेतावनी दे रहे हैं कि “ये अत्याचार मैं मैहर में नही होने दूँगा चाहे धर्म की रक्षा के लिये मुझे अपने प्राणों की आहूति देनी पड़े, हँसते हँसते मां भारती के लिये अपने सीस कटा दूँगा।”

मध्य प्रदेश में गौरक्षा के नाम पर हुई पूर्व की घटनायें

खिरकिया रेलवे स्टेशन में ट्रेन पर मुस्लिम दंपति के साथ मारपीट- हरदा जिले के खिरकिया रेलवे स्टेशन में ट्रेन पर एक मुस्लिम दंपती के साथ इसलिए मारपीट की गयी, क्योंकि उनके बैग में बीफ होने का शक था। मारपीट करने वाले लोग गौरक्षा समिति के सदस्य थे। घटना 13 जनवरी 2016 की है, मोहम्मद हुसैन अपनी पत्नी के साथ हैदराबाद किसी रिश्तेदार के यहाँ से अपने घर हरदा लौट रहे थे। इस दौरान खिरकिया स्टेशन पर गौरक्षा समिति के कार्यकर्ताओं ने उनके बैग में गोमांस बताकर जांच करने लगे। विरोध करने पर इस दम्पति के साथ मारपीट शुरू कर दी गयी। इस दौरान दंपती ने खिरकिया में अपने कुछ जानने वालों को फ़ोन कर दिया और वे लोग स्‍टेशन पर आ गये और उन्हें बचाया। इस तरह से कुशीनगर एक्सप्रेस के जनरल बोगी में एक बड़ी वारदात होते–होते बच गयी।

इससे पहले खिरकिया में 19 सितम्बर 2013 को गौ हत्या के नाम पर दंगा हो चुका है, जिसमें करीब 30 मुस्लिम परिवारों के घरों और सम्पतियों को आग के हवाले कर दिया गया था, कई लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए थे। बाद में पता चला था कि जिस गाय के मरने के बाद यह दंगे हुए थे, उसकी मौत पॉलिथीन खाने से हुई थी। इस मामले में भी मुख्य आरोपी गौ रक्षा समिति का सुरेन्द्र राजपूत था।

सुरेन्द्र सिंह राजपूत कितना बैखौफ है, इसका अंदाजा उस ऑडियो को सुन कर लगाया जा सकता है जिसमें वह हरदा के एसपी को फ़ोन पर धमकी देकर कह रहा है कि अगर मोहम्मद हुसैन दम्पति से मारपीट के मामले में उसके संगठन से जुड़े कार्यकर्ताओं पर से केस वापस नहीं लिया गया तो खिरकिया में 2013 को एक बार फिर दोहराया जाएगा।

मंदसौर रेलवे स्टेशन पर दो मुस्लिम महिलाओं के साथ मारपीट - दूसरी घटना 26 जुलाई 2016 के शाम की है जिसमें मंदसौर रेलवे स्टेशन पर गाय के मांस रखने के शक में दो मुस्लिम महिलाओं को सरेआम पीटा गया और फिर पुलिस द्वारा इनके खिलाफ गौ वंश प्रतिषेध की धारा 4 और 5 मप्र कृषक पशु परिरक्षण अधिनियम के तहत मामला दर्ज करके जेल भेज दिया गया।

इस मामले में पुलिस द्वारा बिना वेटेनरी रिपोर्ट के ही दोनों महिलाओं को कोर्ट में पेश करके जेल भेज दिया गया था। बाद में जांच में पाया गया कि महिलायें जो मांस लेकर जा रही थीं असल में वो गाय का नहीं भैंस का था। इस दौरान महिलाओं ने आरोप लगाया था कि जिस समय उनके साथ मारपीट हो रही थी पुलिस के लोग वहां मौजूद थे लेकिन वे तमाशबीन बने रहे।

दूसरी तरफ मध्य प्रदेश के गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह का पूरा जोर इस घटना को “छोटी- मोटी धक्कामुक्की” साबित करने पर रहा। उनके अनुसार यह एक “स्वाभाविक जनाक्रोश था और इसे इंटेशनली नहीं किया गया था। बिना किसी जांच उन्होंने यह भी दावा किया कि इस मामले में कोई भी व्यक्ति हिंदू संगठनों से नहीं जुड़ा है, जबकि पीड़ित महिलाओं का आरोप है कि उनके साथ मारपीट करने वाले बजरंग दल के लोग थे। मंदसौर से बीजेपी विधायक यशपाल सिसोदिया ने तो और आगे बढ़ते हुए इसे क्रिया की प्रतिक्रिया बता डाला।

हिन्दुत्ववादी संगठनों को दी गयी छूट

दरअसल भाजपा सरकार के दौर में हिन्दुत्ववादी संगठनों के सामने पुलिस प्रशासन लाचार नजर आता है। मध्य प्रदेश में “गाय” और “धर्मांतरण” ऐसे हथियार हैं, जिनके सहारे मुस्लिम और ईसाई अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना बहुत आसन और आम हो गया है। हिन्दुतत्ववादी संगठन इनका भरपूर फायदा उठा रहे हैं जिसमें उन्हें सरकार और प्रशासन में बैठे लोगों का शह भी प्राप्त है।

पिछले दिनों मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले में बजरंग दल द्वारा अपने कार्यकर्ताओं को हथियार चलाने का प्रशिक्षण देने के लिए कैंप का आयोजन करने की खबरें आई है, जो बताती है कि प्रदेश में संगठन की पैठ कितनी गहरी है और उन्हें सरकार की तरफ से भी पूरा संरक्षण प्राप्त है। इसको लेकर बजरंग दल के जिला संयोजक देवी सिंह सोंधिया का मीडिया में बयान है कि ‘ये हर साल होने वाले एक नियमित कैंप है जो देश विरोधी और लव जेहादी तत्वों से निपटने के लिए किया जाता है।’

हथियारों को चलाने का प्रशिक्षण का आयोजन केवल सरकार या उसके द्वारा अधिकृत संस्थाएं ही कर सकती हैं, ऐसे में सवाल उठता है बजरंग दल हथियार चलाने का प्रशिक्षण कैसे चला सकता है?

सतह पर जो दिखाई दे रहा है उसके पीछे एक लम्बी प्रक्रिया चलायी गयी है। लम्बे समय से हिन्दुत्ववादी संगठनों द्वारा गौरक्षा को लेकर अभियान चलाये गये हैं, जिसमें मुसलमानों के खिलाफ दुर्भावना अन्तर्निहित रही है। इसी के साथ ही भाजपा शासित राज्यों द्वारा बारी-बारी से गौहत्या को लेकर कड़े कानून बनाये गये हैं, जिसमें मध्यप्रदेश भी शामिल है।

यहाँ 2004 से ही मध्य प्रदेश गौवंश वध प्रतिशेष अधिनियम लागू है, जिसके बाद 2012 में इसे और अधिक सख्त बनाने के लिये इसमें संशोधन किया गया जिसमें गौ-वंश वध के आरोपियों को स्वयं अपने आप को निर्दोष साबित करने जैसा प्रावधान जोड़ा गया।

अंग्रेजों ने हम भारतीयों की एकता को तोड़ने के लिये गाय और सूअर का उपयोग किया था अब एक बार फिर यही दोहराया जा रहा है। उनकी कोशिश हमें एक ऐसा बर्बर समाज बना देने की है, जहां महज अफवाह या शक के बिना पर किसी भी इंसान का कत्ल कर दिया जाये। गौहत्या के नाम पर दलित और अल्पसंख्यक समुदाय के साथ जो व्यवहार किया जा रहा है वो हमारे देश की एकता व अखंडता के लिए शुभ संकेत नहीं है। यह सीधे तौर भारत के लोकतंत्र और कानून व्यवस्था को चुनौती है।

भारत में भीड़ का नहीं विधि का शासन है, इसलिये न्याय देने का काम भी कानून का है। यह सुनिश्चित करना सरकारों का काम है कि कानून अपना काम करे और अगर कोई सरकार अपना यह बुनियादी दायित्व निभाने में असफल होती है तो यह उसका नकारापन है।

सितम्बर 2017 में गौरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा पर सुनवाई करते हुये सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हमें ये कहने की ज़रूरत नहीं है, गाय के नाम पर हुई हिंसा में शिकार लोगों को मुआवज़ा देना सभी राज्यों की ज़िम्मेदारी है। साथ ही क़ानून व्यवस्था सर्वोपरि है और क़ानून तोड़ने वालों से सख़्ती से निपटा जाए। क्या सतना लिंचिंग के मामले में शिवराज सिंह चौहान की सरकार माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर अमल करेगी?

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