वेश्यावृत्ति और बलत्कृत होने को मजबूर हैं आदिवासी महिलाएं

Update: 2017-11-22 22:31 GMT

पुणे में रानी दुर्गावती, राघोजी भांगरे और बिरसा मुंडा की संयुक्त जयंती महोत्सव का आयोजन...

पुणे से रामदास तांबे की रिपोर्ट

प्राचीनकाल से आदिवासी समाज भारत के कला और परम्परा को संभालते आया है, लेकिन आज देश के कई राज्यों में आदिवासी समाज मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। इसलिए समाज के लोगों को इकट्ठा हो समाज की प्रगति के लिए काम करने चाहिए। यह बात एक कार्यक्रम के दौरान झारखंड की वरिष्ठ पत्रकार बरखा लाकड़ा ने कही।

पुणे में आदिवासी सांस्कृतिक उत्सव समिति पुणे और पिम्परी चिंचवड़ की तरफ से रानी दुर्गावती, राघोजी भांगरे और बिरसा मुंडा की संयुक्त जयंती महोत्सव का आयोजन किया गया था।

इस महोत्सव में समाज और आदिवासी समाज से ताल्लुक रखने वाली कई जानी—मानी हस्तियों ने उपस्थित होकर आदिवासी समाज की कल-आज-कल की परिस्थितियों के मुद्दों पर अपनी बात रखी। आदिवासी समाज से ताल्लुक रखने वाले लोगों ने इस कार्यक्रम के माध्यम से अपने समाज के विवाह जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में वर्षों से चली आ रही परम्परा के बारे में जाना।

वरिष्ठ पत्रकार बरखा लाकड़ा ने कहा कि आज की तारीख में अनेक जगहों पर आदिवासी समुदाय आधुनिक सुविधाओं से दूर है, क्योंकि उन्हें कोई भी आधुनिकता के साथ शामिल होने नहीं दे रहा। इसी कारण आदिवासी समुदाय की प्रगति नहीं हो रही।

सुनियोजित ढंग से कई आदिवासी महिलाओं और लड़किड़ों को वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर किया जा रहा है। दस हजार कन्याओं को कुंवारी टेस्ट करके अरब देश में वेश्यावृत्ति के लिए भेजा गया है। यही केस झारखंड के हाइकोर्ट में दर्ज है, उन लोगों के लिए कौन लड़ेगा?

उन्होंने बताया कि नक्सलियों के नाम पर 3000 आदिवासी महिलाओं पर केस दर्ज है। छत्तीसगढ़ राज्य में अर्धसैनिक बल के जवान लड़कियों के स्तन निचोड़कर यह देखते हैं कि वो कुंवारी है कि नहीं। कई बार पुलिस वाले उनका बलात्कार करते हैं। इसलिए वहाँ की आदिवासी महिला चौराहे पर खड़ी हो खुद को बचाने की गुहार लगा रही है कि कोई तो आएगा उनकी मदद को आगे।

वक्ताओं ने कहा कि शहरी लोगों को यहां की चकाचौंध में आदिवासी समुदाय की परिस्थितियां समझ नहीं आएंगी। हम देश आज आजाद जरूर हो चुके हैं, लेकिन हम अभी भी गुलामी की मानसिकता में हैं। हमारे पूर्वजों ने जिस संस्कृति को संरक्षित किया, वो खत्म होने जा रही है। आदिवासियों को भी गुलाम की मानसिकता से बाहर निकलना होगा, तभी वो आधुनिक समाज के साथ चल पाएंगे।

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