देहरादून के मेयर को आचार संहिता के नाम पर याद आया जनहित

Update: 2018-04-03 16:49 GMT

क्रेडिट लेने के लिए मेयर विनोद चमोली भी पहुंच गए अपने लाव लश्कर के साथ उद्घाटन करने, मीडिया को भी बुलाया गया और तुरत-फुरत उद्घाटन कर हंसते मुस्कुराते खिंचवा ली गई फोटो...

मनु मनस्वी

जब आचार संहिता का मामला आता है तो नेताओं की नींद टूटनी ही है। मौका हाथ से निकल गया तो गए समझो। फिर तो 'मत चूके चौहान' वाली स्थिति हो जाती है। निकाय चुनावों की आहट सुनकर देहरादून के मेयर विनोद चमोली निद्रा का मोह छोड़कर उठ खड़े हुए और झटपट पहुंच गए देहरादून के घंटाघर, जहां इन दिनों जीर्णोद्धार कार्य चल रहा है। कार्य हालांकि अभी तक पूरा नहीं हुआ है और इसी वजह से घंटाघर को हरे कपड़े से ढककर रखा गया है।

पर वो नेता ही क्या, जो क्रेडिट लेने का अवसर छोड़ दे। ऐसा थोड़े ही होता है भाई! सो अपने मेयर विनोद चमोली भी पहुंच गए अपने लाव लश्कर के साथ उद्घाटन करने। मीडिया के लोगों को भी बुलाया गया और तुरत-फुरत उद्घाटन कर हंसते मुस्कुराते फोटो भी खिंचवा ली गईं।

फोटो सेशन चल रहा हो तो भला इस बार मेयर के दावेदार समझे जा रहे सुनील उनियाल उर्फ अपने गामा भाई भी पीछे क्यों रहते? सो पहले वर्तमान मेयर के पीछे-पीछे और उद‌्घाटन कार्यक्रम के समाप्त होते-होते बिल्कुल उनके करीब आकर फोटो सेशन का हिस्सा बन गए।

किसी ने पूछा कि भैय्ये काम तो अभी पूरा तक नहीं हुआ है। थोड़ा इंतजार कर लेते। घंटाघर कौन सा भागा जा रहा है? इस पर एक चेला तुरंत चाभी भरे गुड्डे की तरह बोल उठा, 'बस पेंट का काम ही रह गया है। बाकी सब फिनिश ही है समझो।'

अब इन भक्तों को कौन समझाए कि ये जनहित में दिखाई गई तत्परता नहीं, बल्कि आचार संहिता का पेंच है, जिसके चलते नेताओं की नींद टूटी है। अब भले ही उस दिन अप्रैल फूल ही क्यों न रहा हो, नेताओं ने तो उद्घाटन कर दिया, अब बाकी काम पूरा हो न हो इनकी बला से।

रही बात जनता की, तो वो तो सत्रह वर्षों से हर रोज अप्रैल फूल बनती ही आ रही है। बनाने वाले कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस।

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