मुंबई में पेड़ों की कटाई का विरोध कर रहे 200 लोगों की गिरफ्तारी, गिरफ्तारों में कई छात्र जिनकी है 7 अक्टूबर को परीक्षा
बढ़ते प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से खौफजदा नागरिक मुंबई के आरे में हो रहे पेड़ों की कटाई के खिलाफ डटकर खड़े हो गए हैं, जबकि अदालत और सरकार पेड़ों को काटकर विकास करने पर आमादा हैं...
महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट
हम भारतीय सबकुछ स्पष्ट होने के बाद भी पता नहीं क्यों ज्यादा ही उम्मीद बाँध लेते हैं। जिस सरकार के रास्ते में कोई आदमी आता है और उसे मार दिया जाता हो, तब तो पेड़ों की बिसात ही क्या है? जिस देश में हिमालय नहीं बच पा रहा है, जिस देश में गंगा/यमुना नदी नहीं बची, जिस देश में एक उद्योग के सामने प्रदूषण के विरोध में प्रदर्शन कर रहे 13 लोग गोलियों से भून दिए जाते हों, जिस देश में वायु प्रदूषण से लाखों लोग मर रहे हों और फिर भी जिस देश के प्रधानमंत्री संयुक्त राष्ट्र के चैंपियंस ऑफ़ द अर्थ का तमगा लटकाकर नुमाइश कर रहा हो उस देश में पर्यावरण के लिए सोचना भी बेमानी है।
मुंबई की आरे कॉलोनी में पेड़ों की कटाई का मामला लगातार तूल पकड़ता जा रहा है। अभी तक 2500 से अधिक पेड़ काटे जाने की खबरें आ रही हैं। हालांकि प्रशासन की तरफ से इसकी पुष्टि नहीं की गई है, मगर अब कटाई का काम अंतिम चरण में चल रहा है। तमाम राजनीतिक बयानबाजियों के बावजूद पेड़ कटे और आज 6 अक्टूबर की शाम तक कटेंगे, उसके बाद इन्हें ट्रकों में लादकर वहां से रवाना कर दिया जायेगा। ये सब तब हो रहा है जबकि महाराष्ट्र में शिवसेना इसका भारी विरोध कर रही थी।
हमें गर्व हो या न हो, पर सरकारें इस उपलब्धि पर इतरा रही होंगी कि आज देश के पर्यावरण की हालत यह है कि सबसे नीचे के पांच देशों में हम शामिल हो चुके हैं। 2016 के एनवायरमेंट परफॉरमेंस इंडेक्स में भारत 141वें पायदान पर था और 2018 में यह 36 अंक गिरकर 177वें स्थान पर पहुंच गया है। रसातल तक पहुँचाने के बाद भी उसे उपलब्धि बता देना सरकारी आदत बन चुकी है।
अर्थव्यवस्था का हाल तो सभी देख ही रहे हैं, पर्यावरण के सन्दर्भ में भी यही हाल है। कुछ वर्ष पहले तक कम से कम न्यायालयों से उम्मीद रहती थी कि पर्यावरण बचाने की गुहार सुनेंगी, पर अब तो यह उम्मीद भी ख़त्म हो चुकी है।
मुंबई के आरे कॉलोनी में 2646 पेड़ों की कटाई को लेकर शुरू हुआ विवाद गहराता जा रहा है। पुलिस ने पेड़ कटाई का विरोध कर रहे 200 से अधिक प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया है। इसमें अनेक छात्र भी हैं जिनकी परीक्षाएं सोमवार 7 अक्टूबर को ही हैं।
एहतियात के तौर पर पुलिस ने आरे कॉलोनी की तरफ आने वाले सभी रास्तों को भी बंद कर दिया है। इसके साथ ही आरे कॉलोनी के आसपास के इलाके में धारा 144 लगा दी गई है। बॉम्बे हाईकोर्ट से मेट्रो डिपो बनाने के लिए पेड़ों की कटाई रोकने संबंधित याचिकाओं के खारिज होने के कुछ ही घंटे बाद मुंबई महानगरपालिका के अधिकारियों ने कटाई का काम शुरू कर दिया था।
यह खबर आते ही विरोध-प्रदर्शन करने पहुंचे कार्यकर्ताओं का कहना है कि आरे कॉलोनी की तरफ आने वाले सभी रास्तों को बंद कर दिया गया है। इलाके में भारी पुलिसबल की तैनाती की गई है, ताकि कोई आरे कॉलोनी में न जा सके। विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाली शिवसेना नेता प्रियंका चतुर्वेदी को भी हिरासत में ले लिया गया।
हाईकोर्ट ने शुक्रवार 4 अक्टूबर को शहर के एक गैर सरकारी संगठन वनशक्ति द्वारा आरे को जंगल घोषित करने के लिए दायर याचिका को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस प्रदीप नंदराजोग और जस्टिस भारती डांगरे की पीठ ने एनजीओ और आरे कॉलोनी से संबंधित पर्यावरण कार्यकर्ताओं द्वारा दायर चार याचिकाओं को खारिज कर दिया।
आरे मामले के कुछ कार्यकर्ताओं ने शनिवार 5 अक्टूबर को पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए कोर्ट में मामले की तत्काल सुनवाई की अपील की थी। न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी ने मामले में तत्काल सुनवाई करने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ताओं से बॉम्बे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से संपर्क करने को कहा है। कटाई का विरोध कर रहे लोगों ने आरोप लगाया कि प्रशासन ने पेड़ काटना कोर्ट का फैसला आने के पहले ही शुरू कर दिया था।
प्रदर्शन कर रहे कार्यकर्ताओं का कहना है कि इन पेड़ों की कटाई गैरकानूनी है, क्योंकि इसमें प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। उनका दावा है कि पेड़ों की कटाई का आदेश आने के 15 दिन बाद इन्हें काटा जा सकता है। हालांकि मुंबई मेट्रो रेल निगम के प्रबंध निदेशक अश्विनी भिड़े ने इन आरोपों को खारिज किया है। उन्होंने कहा कि '15 दिन के नोटिस की बात पूरी तरह झूठी है। यह बिल्कुल आधारहीन है।'
पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने आरे जंगलों में कटाई को लेकर कहा कि बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा है कि यह जंगल नहीं है। जब दिल्ली में पहले मेट्रो स्टेशन का निर्माण किया जा रहा था, तो उस दौरान भी 20-25 पेड़ काटे जाने थे। तब भी लोगों ने विरोध किया था, लेकिन प्रत्येक पेड़ को काटने के बदले पांच पेड़ लगाए गए थे। पर्यावरण मंत्री ने आगे कहा कि दिल्ली में कुल 271 मेट्रो स्टेशन बने हैं, साथ ही पेड़ क्षेत्र भी बढ़ा है। यही प्रकृति का विकास और संरक्षण है।
प्रकाश जावड़ेकर को पर्यावरण के मुद्दों पर जनता को भटकाने में महारथ हासिल है। वे जिसे प्रकृति का विकास की हकीकत बता रहे हैं, उसकी सच्चाई यह है कि दिल्ली में सघन वन क्षेत्र कम हो गया है, और दूसरी और हाईवे प्रोजेक्ट आने के बाद पूर्वी दिल्ली में वन क्षेत्र तेजी से कम हो गया है। उनके शब्दों का चयन भी देखिये, वे वन क्षेत्र नहीं बल्कि पेड़ क्षेत्र बता रहे हैं। दूसरी तरफ यदि पूर्वी दिल्ली में पेड़ काटे जा रहे हैं और आप इसके बदले दक्षिणी दिल्ली में कहीं पेड़ लगा भी दें तो इससे पूर्वी दिल्ली का पर्यावरण कैसे सुधरेगा?
विपक्षी दलों ने सत्तारूढ़ शिवसेना-भाजपा गठबंधन को निशाना साधते हुए कहा कि वे पेड़ों को बचाने में विफल रहे हैं। शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने कहा है कि आरे कॉलोनी में हो रही पेड़ों की कटाई को वे बहुत गंभीरता से ले रहे हैं। उन्होंने कहा, "आरे, अभी मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है। आज जो कुछ भी हो रहा है, जो कुछ भी हो रहा था और जो कुछ भी भविष्य में होगा, मैं विस्तृत और गहन जानकारी लूंगा कि स्थिति क्या है और इस मुद्दे पर मजबूती से और सीधे बात करूंगा।
ठाकरे ने आगे कहा, "आने वाली नई सरकार हमारी सरकार होगी और हमारी सरकार एक बार फिर से सत्ता में आती है, तो हम आरे वन के हत्यारों से सबसे बेहतर तरीके से निपटेंगे।"
आश्चर्य यह है कि हाईकोर्ट की इसी खंडपीठ ने 1 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान नाकामियों के लिए सरकार को घेरा था। मुंबई में मेट्रो कार शेड के लिए पेड़ों की कटाई को लेकर उठे विवाद के बीच बंबई उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नंदराजोग और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की पीठ ने 1 अक्टूबर को कहा था कि जब सरकार उत्तम संसाधन उपलब्ध होने के बाद राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को नहीं संभाल सकती, तब वह कैसे पारिस्थितिकी को संभाल पाएगी।
मुंबई में आरे में पेड़ काटे जाने के विवाद में कुछ बातें तो बिल्कुल स्पष्ट कर दी हैं। सरकार एक तमाशाई जनता चाहती है, ऐसी जनता जो आँखें बंद कर हरेक विषय पर सरकार का समर्थन करती रहे। सरकार की प्राथमिकता इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स और उद्योग हैं, जनता या पर्यावरण नहीं। पर्यावरण मंत्रालय और एनजीटी जैसी संस्थाएं सरकार के हरेक विनाशकारी योजनाओं के बचाव का काम और उसे कानूनी जामा पहनाने का काम ही करेंगीं, पर्यावरण संरक्षण का नहीं।
अब किसी उच्च न्यायालय या फिर सर्वोच्च न्यायालय से उम्मीद मत रखिये कि वे जनता का और पर्यावरण का हित देखेंगीं, उनके लिए सरकार का हित सर-माथे पर है। जनता तो पर्यावरण विनाश और प्रदूषण से पहले भी मर रही थी, आगे भी मरती रहेगी।