राजनेताओं ने मस्जिद बनाम मंदिर आंदोलन से पिछले तीन दशकों में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के बीच कट्टरता और दूरियां बढ़ाकर वोट पॉलिटिक्स की है इसलिए देश में कायम है भय का माहौल कि कहीं दंगे न हो जायें, यूपी में तो 3 दिन के लिए स्कूल-कॉलेज तक कर दिये हैं बंद...
जनज्वार। छह अगस्त से लगातार 40 दिन तक हुई सुनवाई के बाद आज एक घंटे बाद 10.30 बजे सुप्रीम कोर्ट की पीठ अपना फैसला सुना देगी कि अयोध्या में मंदिर बने या मस्जिद। इस संवेदनशील मुद्दे पर फैसले से पहले देशभर में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किये गये हैं। सोशल मीडिया पर लगातार शांति की अपील तमाम राजनेताओं जिनमें प्रधानमंत्री मोदी भी शामिल हैं, द्वारा की जा रही है।
मगर असल सवाल यह है कि आखिर अयोध्या फैसले में ऐसा क्या है कि दंगे की आशंकायें इतनी प्रबल हो रही हैं। गौरतलब है कि राजनेताओं ने मस्जिद बनाम मंदिर आंदोलन से पिछले तीन दशकों में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के बीच कट्टरता और दूरियां बढ़ाकर वोट पॉलिटिक्स की है।
अब तक मंदिर बनाम मस्जिद के झगड़े में देश विभिन्न हिस्सों में कई बार भीषण दंगे हुए हज़ारों जानें गयीं हैं। लोग बेघर हुए और सम्पत्ति का बेहिसाब नुक़सान अलग हुआ। इसलिए इस बार भी जबकि एक घंटे बाद कोर्ट अपना फैसला सुना देगी तो चौतरफा यही चर्चा है कि अयोध्या के मंदिर-मस्जिद विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद कहीं फिर दंगों और कर्फ़्यू का माहौल तो नहीं बन जायेगा।
इतिहास के आइने में देखें तो बाबरी मस्जिद की इमारत में दिसंबर 1949 में हिंदुओं के आदर्श भगवान राम की मूर्ति रखी गयी थी। हालांकि उस समय हिंदू—मुस्लिम मामला इतना कट्टर नहीं था इसलिए कोई दंगा नहीं हुआ। ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि लोगों को सरकार और न्याय तंत्र पर भरोसा था, मगर अब जैसी स्थितियां बन रही हैं लोगों का सरकार और न्यायतंत्र दोनों से भरोसा उठ गया है। इसीलिए फ़रवरी 1986 में विवादित बाबरी मस्जिद बनाम राम जन्म भूमि इमारत का जब ताला खुला तो देश में साम्प्रदायिक हिंसा चरम पर पहुंच गयी।
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तब ज़िला जज फ़ैज़ाबाद ने विवादित स्थल का ताला खोलने का आदेश दिया था, जिसने न्यायपालिका और सरकार दोनों की साख गिराने और लोगों का न्याय और सरकार पर से भरोसा डिगाने का काम किया था। इसी के बाद सांप्रदायिकता राजनीति का केंद्रबिंदु बना था और अयोध्या राजनीति के लिए वोट पॉलिटिक्स का माध्यम।
उसी के बाद विश्व हिंदू परिषद यानी संघ परिवार ने राम मंदिर के नाम पर हिन्दुओं को एक राजनीतिक ताक़त के रूप में इस्तेमाल करने के लिए एकजुट किया।
मुस्लिम समुदाय ने भी 14 फ़रवरी 1986 को बाबरी मस्जिद का ताला खोलने के विरोध में देशभर में काला दिवस मनाया और उसी दिन मेरठ में सांप्रदायिक दंगे भी हुए। तब मेरठ, मुरादनगर, हाशिमपुरा और मलियाना के खौफनाक दंगों, पुलिस पीएसी की ज़्यादतियों, एकतरफ़ा कार्यवाही और निर्दोष लोगों की हत्या की ख़बरें आज भी दहलाकर रख देती हैं। उसके पीड़ित अब भी न्याय की गुहार लगाते देखे जा सकते हैं।
मंदिर-मस्जिद के झगड़े में फरवरी 1986 से जून 1987 के बीच केवल उत्तर प्रदेश में ही 60 दंगे हुए थे, जिनमें 200 से ज़्यादा लोगों की जान गयी और हजारों लोग घायल हुए। संपत्ति का तो बेहिसाब नुकसान हुआ था। उसी के बाद 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाई गयी थी। उसी के बाद मंदिर-मस्जिद के नाम पर तमाम राजनेताओं ने अपनी वोट पॉलिटिक्स की और सत्ता में काबिज हुए।
अब जबकि हिंदुओं के नाम पर राजनीति करने वाली भाजपा केंद्र में है और देशभर में भी ज्यादातर राज्यों में भाजपा की सरकार है, इसलिए संघ प्रभावित हिंदुत्ववादी संगठनों का उत्साह चरम पर है। मीडिया में मंदिर पर जिस तरह की बयानबाजी आ रही है, उनसे लगता है कि थोड़ी देर में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आते ही मंदिर निर्माण शुरू हो जाएगा।
हालांकि दिखावे के लिए संघ परिवार और मुस्लिम धार्मिक नेताओं ने भी सार्वजनिक अपीलें जारी कर खुले दिल से सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का सम्मान किये जाने की बातें कहीं जा रही हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया है 'अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आएगा, वो किसी की हार-जीत नहीं होगा। देशवासियों से मेरी अपील है कि हम सब की यह प्राथमिकता रहे कि ये फैसला भारत की शांति, एकता और सद्भावना की महान परंपरा को और बल दे।'
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी ट्वीट किया है, 'जैसा कि आप सबको पता है, अयोध्या मामले पर आज उच्चतम न्यायालय का फैसला आने वाला है। इस घड़ी में न्यायालय का जो भी निर्णय हो, देश की एकता, सामाजिक सद्भाव और आपसी प्रेम की हज़ारों साल पुरानी परम्परा को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी हम सबकी है। #AYODHYAVERDICT'
वहीं जेएनयू के पूर्व छात्र नेता कन्हैया कुमार ने भी शांति की अपील करते हुए ट्वीट किया है, 'नफरत की राजनीति करने वाले नेताओं और दिन रात लोगों को भड़काने वाले मीडिया चैनलों से अपील है कि वो कल अपना संयम बनाए रखें, सत्ता व TRP की होड़ में इंसानियत की बुनियाद को खोखला ना करें।'
आम लोगों ने भी सोशल मीडिया पर इसी तरह की तमाम अपीलें की हैं, जिससे लग रहा है कि मंदिर या मस्जिद के पक्ष में फैसला आते ही फिर से दंगों का माहौल न बन जाये।