कोर्ट ने कहा, आवास का अधिकार केवल जीवन का संरक्षण ही नहीं है बल्कि घर शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं धार्मिक विकास के लिए है जरूरी....
जेपी सिंह की रिपोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि संविधान के तहत घर का अधिकार मूल अधिकार है। सरकार का संवैधानिक दायित्व है कि वह गरीबों को आवास मुहैया कराए। कोर्ट ने कहा कि आवास का अधिकार केवल जीवन का संरक्षण ही नहीं है, बल्कि घर शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं धार्मिक विकास के लिए भी बेहद जरूरी है। आवास सभी मूलभूत सुविधाओं के साथ होना चाहिए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(इ) के तहत आश्रय का अधिकार मूल अधिकार है, जिसमें अनुच्छेद 21 के जीवन के अधिकार के तहत आवास का अधिकार भी शामिल है। सरकार का संवैधानिक दायित्व है कि वह गरीबों को आवास मुहैया कराए। आवास का अधिकार केवल जीवन का संरक्षण ही नहीं है अपितु घर शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं धार्मिक विकास के लिए जरूरी है। आवास सभी मूलभूत सुविधाओं के साथ होना चाहिए।
कोर्ट ने कहा दलितों और आदिवासियों को देश की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए आवश्यक है कि सरकार उनको आवासीय सुविधाएं उपलब्ध कराए। ऐसा करना सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए आवश्यक है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि इसका यह अर्थ नहीं है कि किसी भी व्यक्ति को सार्वजनिक उपयोग की भूमि का अतिक्रमण करने का अधिकार है।
यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केशरवानी ने राजेश यादव की जनहित याचिका को ख़ारिज करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि सामाजिक व आर्थिक न्याय के लिए सरकार कमजोर लोगों को सुविधाएं प्रदान करे। इसी के साथ कोर्ट ने बलिया की रसड़ा तहसील के पखनपुरा गांव में 1995 से पट्टे पर आवंटित जमीन से पिछड़ा वर्ग के श्रमिकों की बेदखली का आदेश देने से इनकार कर दिया है। साथ ही कहा कि यदि शासन उन्हें हटाना ही चाहता है तो वैकल्पिक आवास देने के बाद हटाए। कोर्ट ने इसे जनहित याचिका के बजाय व्यक्तिगत हित की याचिका मानते हुए याची पर 10 हजार रुपये हर्जाना लगाते हुए याचिका खारिज कर दी है।
कोर्ट ने कहा है कि पारंपरिक रूप से रोटी, कपड़ा और मकान किसी व्यक्ति की मूलभूत जरूरत मानी गई है। राज्य का दायित्व है कि वह उचित कीमत पर गरीबों को आवास दे। हालांकि कि किसी भी व्यक्ति को सार्वजनिक उपयोग की जमीन पर अतिक्रमण करने का अधिकार नहीं है। आवास का अधिकार केवल जीवन का संरक्षण ही नहीं है। आवास शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं धार्मिक विकास के लिए जरूरी है। आवास सभी मूलभूत सुविधाओं के साथ होना चाहिए।
गौरतलब है कि एसडीएम ने एक मामले में खलिहान, खाद का गड्ढा और खेल के मैदान की भूमि को दूसरे स्थान पर शिफ्ट किया और सार्वजनिक उपयोग की खाली जमीन को बंजर दर्ज कर दिया। ग्राम प्रधान के प्रस्ताव पर पिछड़े वर्ग के पांच भूमिहीन कृषि मजदूरों को 1995 में आवासीय पट्टा जारी किया गया था, जिसमें वह मकान बनाकर रह रहे हैं।
आबादी से पहले सार्वजनिक भूमि होने के आधार पर पट्टे की वैधता पर आपत्ति दर्ज की गई थी। 12 साल बाद एसडीएम ने पट्टे को रद्द कर दिया था, मगर आवंटीगण ने अपना कब्जा नहीं छोड़ा तो जमीन खाली न होने पर राजेश यादव ने एक जनहित याचिका दाखिल की और निवासियों की बेदखली के लिए समादेश जारी करने की मांग की थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राजेश यादव की यह याचिका 10 हजार रुपए हर्जाने के साथ खारिज कर दी है।