इलाहाबाद विश्वविद्यालय चुनाव संपन्न, वोटिंग हुई रिकॉर्ड तोड़

Update: 2017-10-14 21:42 GMT

इलाहाबाद से अनुराग अनंत

जनज्वार, इलाहबाद। इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव का मतदान संपन्न हो चुका है। मतदान सुबह आठ बजे शुरू हो गए था जो दोपहर दो बजे तक चलता रहा। इविवि में कुल वोटर 19987 हैं, जिसमें छात्राएं 5999 हैं और छात्र 13988 है।

आज विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में रिकार्ड वोटिंग हुई है और पिछले कई सालों का रिकार्ड टूटा है। चुनाव अधिकारी प्रोफ़ेसर आरके सिंह के अनुसार लगभग 45.5 % वोट पड़ा है जबकि कहा जाता है पिछले बार सिर्फ 20 प्रतिशत ही वोट पड़े थे।

इस बार वोट्स का इस तरह बढ़ जाना कई सारे बने बनाए समीकरण बिगाड़ सकते हैं और चुनावी भविष्यवाणियों को झुठला सकते हैं। पुलिसिया सुरक्षा इंतजाम के बीच हलकी नोकझोंक के साथ ही चुनाव शांतिपूर्वक सम्पन हो गया है। शाम सात बजे से मतगणना शुरू हो गयी है और इविवि प्रशासन के अनुसार रात 12 से 1 बजे के बीच परिणाम घोषित कर दिया जायेगा।

आज सुबह से ही कैम्पस में विभिन्न राजनीतिक रंग और आवाजें समां बांधने लगीं थी। लोग अपने अपने प्रत्याशियों के लिए मोर्चे पर थे। दस बजते बजते रास्ते पर्चों से पट गईं थी जो दोपहर दो बजे तक कूड़े के अम्बार में तब्दील हो गया था। सड़कें प्रत्याशियों के नाम से रंग दी गयीं थीं। भंडारों में पूड़ियाँ लगातार छन रहीं थी। गाड़ियां चल रहीं थीं। पेट्रोल भराया जा रहा था और जेबें खाली हो रहीं थी।

प्रत्याशियों के नाम लिखी टीशर्ट पहले टोलियां इधर उधर टहल रही थे और प्रत्याशी हाथ जोड़े वोट मांग रहे थे। बीच में दोपहर में एनएसयूआई के पोस्टर फटने के खबर आयी और एनएसयूआई, छात्रसभा था पुलिस के बीच हल्की नोक झोक, जोर आजमाइश, लाठी के रिहर्सल के साथ ही मामला ख़तम हो गया। इसीबीच देर दोपहर मतदान ख़तम होने से ठीक पहले 1.45 बजे के आसपास खबर उड़ी की इकॉनमिक्स डिपार्टमेंट के कमरा नंबर 4 बूथ कैप्चरिंग की गयी है।

इस खबर से हंगामा मच गया पर पुलिस ने सब संभाल लिया। पूरे मतदान के दौरान पुलिस, विश्वविद्यालय प्रशासन, पीएसी और रैपिड एक्शन फ़ोर्स पूरी तरह मुस्तैद रही। थोड़ी बहुत नोकझोन, मान मनौवल, समझाइस और लाठी पटक कर मतदान संपन्न करा लिया गया। कल सुबह लगभग 10 बजे इलाहबाद विश्यविद्यालय के यूनियन हॉल से पदाधिकारियों को शपथ दिलाई जाएगी और इसी के साथ विश्वविद्यालय में छात्रों की नै सरकार बन जाएगी।

विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में बढे मतदान प्रतिशत से चुनावी समीकरण बदल दिए हैं और पूर्व में की गयीं भविष्यवाणियां पुनर्व्याख्या की मांग कर रहीं हैं। विश्वविद्यालय में कैंपेनिंग के दौरान अपनाई गयी रणनीति, आक्रामकता, लोकप्रियता, भाषण कला और लोगों तक अपनी बात पहुंचने का कला-कौशल हो छुअका अब जब बोये हुए को काटने का समय आया तो कई गुप्त गोदावरियाँ जो भीतर भीतर बह रहीं थीं वो सतह पर आ निकलीं और जो तस्वीर पहले थी वो अलग रंग के साथ उभरी। और जो बात पहले की गयी है या कही गयी है उसमे कुछ जोड़ने घटाने की जरुरत महसूस होने लगी।

जब शाम ढली तो चर्चाओं और कयासों में एक केन्द्रीय भाव उभरने लगा। लोग अब पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे नंबर पर कौन रहेगा। इस तरह बात करने लगे थे। चुनाव में पड़े वोट के आधार पर लोग रेस में नंबर घोषित कर रहे थे। इस नामों में जो नाम पहले नंबर पर आ रहा था वो अब भी समाजवादी छात्र सभा के अवनीश यादव था पर दूसरे नंबर पर चर्चा एबीवीपी की प्रियंका सिंह, एनएसयूआई के सूरज दुबे या आइसा के शक्ति की नहीं थी बल्कि एबीवीपी के बागी कार्यकर्ता मृत्युंजय राव परमार की थी।

इनका एबीवीपी से टिकट मिलना तय था। पर अंतिम समय में इनका टिकट काटा गया था। इन्होने निर्दलीय पर्चा भरा और "जय मृत्युंजय, तय मृत्युंजय" के नारे के साथ दबे पाँव आते हुए सबको धप्पा बोल दिया। मृत्युंजय अंग्रेजी विभाग में शोध छात्र हैं। इसलिए इन्हें शोध छात्रों का भी समर्थन हैं। तो कैंपस में मुख्या लड़ाई अवनीश बनाम मृत्युन्जय के रूप में उभरी है।

कहने वाले लोग मृत्युंञ्जय की जगह प्रियंका को रख रहे हैं। और कुछ तो प्रियंका को पहला और जीता हुआ भी घोषित कर रहे हैं। इन सबके बीच सूरज तीसरे और चौथे नंबर पर बताये जा रहे हैं। यही हाल शक्ति रजवार का है उनके बारे में लोग कह रहे हैं "शक्ति लड़ा अच्छा पर सिर्फ लड़ने से इलाहाबाद विश्वविद्यालय का चुनाव थोड़े ही जीता जाता है" शक्ति की दावेदारी को लोग मजबूत मान रहे थे और ये माना जा रहा था छात्र—छात्राएं उनके पक्ष में वोट करेंगे और धन-बल पर वोट करेंगे।

पर लोगों से की गयी बातचीत और रुझान तो एक अलग तस्वीर पेश कर रहे हैं। पर मृत्युंजय के लिए लोग पूरे आत्मविश्वास के साथ कहते हुए पाए गए अगर विद्यार्थी परिषद मृत्युंजय को चुनाव लड़वा देती तो विजय निश्चित थी।

विद्यार्थी परिषद गहरी सांगठनिक क्षति के बावजूद लड़ाई में जमकर टक्कर दे रहीं है। दरअसल एबीवीपी के दो बड़े जाने माने चेहरे जो चुनाव की तैयारी कर रहे थे और प्रबल दावेदार माने जा रहे थे. उन्हें टिकट नहीं दिया गया और मृत्युंजय परमार और सूरज दुबे बागी हो गए। जिससे विद्यार्थी परिषद का वोट बँट गया। और बीएचयू की घटना से महिलाओं का वोट प्रियंका को ना मिलने के कयास लगाए जा रहे थे।

साथ ही महिला छात्रावास में सपा की ऋचा सिंह रहतीं है जो की सपा के टिकट से चुनाव लड़ चुकीं हैं उनके प्रभाव से विद्यार्थी परिषद् के पक्ष में लड़कियों के वोट काम पड़ने के आसार है। इस सभी समीकारों की वजह से प्रियंका सिंह की दावेदारी कमजोर पड़ी है। और अवनीश यादव उभर कर सामने आये हैं। और मुख्य लड़ाई अवनीश बनाम मृत्युंजय हो गयी है।

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