इलाहाबाद विश्वविद्यालय में समाजवादी छात्र सभा आगे, कल है वोटिंग

Update: 2017-10-13 16:11 GMT

आइसा के उम्मीदवार शक्ति हैं कड़ी टक्कर में, एबीवीवी की प्रियंका सिंह के पास है सत्ता की हनक तो उधार के उम्मीदवार के भरोसे है एनएसयूआई

इलाहाबाद से अनुराग अनंत की रिपोर्ट

इलाहाबाद विश्वविद्यालय का चुनाव चल रहा है और कल वोटिंग होनी है। वोटिंग से पहले नारे हैं, वादे हैं, इरादे हैं और साथ में है आश्वासन, जोशीले भाषण हैं।

जिन लोगों को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के चुनावी व्याकरण नहीं मालूम है उनके लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय की समझ फ़िल्म 'हासिल' से होकर पहुँचती है। जातीय समीकरण, क्षेत्रीय वर्चस्व की लड़ाई, धनबल, बाहुबल और सत्ता का हस्तक्षेप सबकुछ कमोबेश वैसे ही मौजूद है।

परिसर में नेताओं के झुण्ड हैं। जेएनयू की निधि त्रिपाठी एबीवीपी के मोर्चे पर हैं और सुचेता डे आइसा की जीत के लिए पसीना बहा रहीं हैं। समाजवादी छात्रसभा के लिए एमएलए, एमएलसी डेरा डेल हुए हैं। लखनऊ से दिग्विजय सिंह देव और राहुल सिंह कैम्पस का कोना कोना छान रहे हैं और छात्र-छात्रों को देखकर अवनीश यादव को वोट दें या छात्र सभा बोल कर आगे निकल जाते हैं। छात्र रूपेश सिंह कहते हैं, 'विधायकी के इलेक्शन से कम थोड़े ही है, यहाँ का अध्यक्ष शहर के मेयर से कम थोड़े है।'

इलाहाबाद विश्वविद्यालय का अध्यक्ष सियासी गलियारों में एक अच्छा ख़ासा कद रखता है और उसके सत्ता सुख की महत्वाकांक्षा की पहली बस यहीं यूनियन हॉल के भीतर से मिलती है। इसीलिए परिसर की राजनीति में राजनीतिक पार्टियां भी अच्छी—खासी दिलचस्पी लेती हैं।

हम दक्षता भाषण के एक दिन बाद इलाहाबाद विश्वविद्याल पहुंचे थे। यहाँ प्रेसिडेंशियल डीबेट को 'दक्षता भाषण' कहते हैं। परिसर में पहुचंते ही राहुल सिंह और दिग्विजय सिंह देव दिखे। राहुल सिंह समाजवादी छात्रसभा के वर्तमान अध्यक्ष हैं और दिग्विजय सिंह देव भूतपूर्व अध्यक्ष।

आइसा के शक्ति राजवार और उनका पैनल आइसा की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुचेता डे के साथ प्रचार कर रहे थे। छात्रसभा के अवनीश यादव के पक्ष में पूरे कैम्पस में छोटी—छोटी टुकड़ियों में लोग प्रचार कर रहे थे। लगभग हर दस कदम पर अवनीश के लिए वोट मांगती हुई एक टुकड़ी से आपका सामना हो जाता है।

हम कैंपस में नारों, जलूस, समर्थकों के झुण्ड को पार करते हुए आगे बढ़े तो चिलचिलाती धूप में एकदम नए—नए छात्रों का आया एक समूह महलनुमा बने डीएसडब्लू के ऑफिस के बाहर बैठा हुआ था। साथ में एक छोटा सिलेंडर, सिंगल चूल्हा, कुछ थाली बर्तन और एक तख्ती जिसपे लिखा था "हॉस्टल की चाभी दो, अन्यथा कल डीन के घर में खाना बनेगा।'

ये लड़के छोटे—छोटे गावों से जुलाई में 'पूरब के ऑक्सफ़ोर्ड' यानी इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ने आये थे। सितंबर के आखिरी में हॉस्टल मिला, वो भी हिन्दू हॉस्टल जैसा जर्जर हॉस्टल, जिसके लिए लगभग 15 हज़ार फ़ीस दी। पर अब तक प्रशासन चाभी नहीं दे सका। हॉस्टल कागज़ में लड़के के नाम से अलॉट है पर कमरे में भइया जी रह रहे हैं या उनका ताला जड़ा है, कब्ज़ा पसरा है।

प्रशासन लचर है और ये लड़के लाचार। पहले हॉस्टल अलॉटमेंट के लिए नग्न प्रदर्शन किया, अब चाभी पाने के लिए तेज धूप में बदन जला रहे हैं, खून सूखा रहे हैं।

परिसर की राजनीति में भइयावाद और छात्रनेताओं के वर्चस्व चेतना इस समस्या की जड़ में है। इसी साल छात्रावासों में रह रहे कब्जेदार छात्रों को निकालने के लिए प्रशासन ने प्रयास किया। जिसका विरोध किया गया और वो बड़े बवाल और हिंसा तक रूप ले लिया। इसी साल डेलीगेसियों में न्यूनतम किराए को फिक्स करने और छात्रावासों में सुविधा देने को लेकर आंदोलन हुआ था पर नतीजा ढांक के तीन पात रहा। धरने पर बैठे अमित छात्र रह—रह कर कहते हैं, 'भइया इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए, हमें हाइलाइट नहीं होना है।' धरने पर बैठे लड़के मायूस से दिखते हैं।

हम आगे बढ़ते हैं और चाय की दुकान पर बहसों में हिस्सा लेते हैं। जानने की कोशिश करते हैं कि अबकी इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव किसकी कितनी दावेदारी है? किसको कितना समर्थन, सहयोग है? किसकी कितनी सम्भावना है? और किसका कितना आधार है?

बात अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की प्रियंका सिंह से शुरू करते हैं। भगवा पगड़ी, भगवा चोला पहले एक लड़की एबीवीपी से अध्यक्ष पद की उम्मीदवार है। उत्साह से लबरेज है और अध्यक्ष पद पर एकमात्र महिला उमीदवार भी। नारी शक्ति की बात करती हैं पर बीएचयू में हुए लड़कियों पर अत्याचार के सवाल पर असहज हो जाती हैं।

एबीवीपी के अध्यक्ष पद की दावेदार बीएचयू पर जवाब देते हुए वहां के पूर्व कुलपति जीसी त्रिपाठी की तरह प्रतीत होती हैं। विरोधी भूतपूर्व अध्यक्ष ऋचा सिंह पर हुए एबीवीपी के हमले और हिंसा का सवाल उठाते हैं तो उनके लिए और उनके संगठन के लिए उत्तर में वाक्यों की भूलभुलैया उभरने लगती है, जबकि आम छात्राओं में बीएचयू के सवाल पर गुस्सा और नाराजगी है। प्रियंका सिंह की गाड़ी का काफिला और जनता का जुटान देख कर लगता है कि पैसा खूब लगाया गया है। पर आम छात्राएं वैसा जुड़ाव नहीं महसूस पा रहीं हैं।

एनएसयूआई के अध्यक्ष पद के उमीदवार सूरज दुबे प्रियंका के लिए कहते हैं जो लोग कल तक लाल झंडा उठा कर चलते थे उन्हें आज भगवा पहनवा कर घुमा दिया गया है। गाड़ियों, लोगों के जुटान और पैसों के जोर से भी जीत का बिहान मुश्किल ही है। फिर भी प्रियंका लड़ाई में हैं।

विश्वविद्यालय चुनाव में इस बार का सबसे बड़ा पॉलिटिकल गिमिक और चर्चा सूरज कुमार दुबे हैं। फेसबुक पर सूरज दुबे है, ब्रैकेट में "एक संघर्ष" लिखते हैं। कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई से अध्यक्ष पद के उमीदवार हैं पर परिचय में खुद को एबीवीपी का छात्रनेता बताते हैं। फेसबुक पर आज भी उनका प्रोफ़ाइल खोलने पर उनके परिचय वाले हिस्से में लिखा हुआ मिलता है "इलाहाबाद विश्वविद्यालय ABVP"।

यानी देश की दो राष्ट्रीय पार्टियों को अपने छात्र नेता नहीं मिले हैं, दोनों उधार के बूते छात्र राजनीति में दखल बनाना चाहते हैं। सूरज दुबे का चुनाव में NSUI की तरफ से अध्यक्ष के पद पर लड़ाया जाना, NSUI की सांगठनिक और राजनीतिक दोनों कमजोरी को एक साथ दिखाता है। NSUI अपने कार्यकर्ताओं में से एक पैनल भी नहीं लड़ा सका और उसे परिषद के छात्र नेता को अध्यक्ष पद के लिए लड़ाना पड़ा। ये सन्देश छात्रों तक गया है और जो लोग NSUI से जुड़े थे या समर्थक थे उन्हें भी बात नागावार ही गुजरी है।

हल्की उम्र भारी तेवर, आवाज़ में मद्धम सा सुलगता गुस्सा, अंदाज़ खुरदरा। बात ऐसी जो दिल तक उतर जाए। जब भाषण देकर मंच से उतरा ये लड़का तो लोग कहते पाए गए, गज़ब यार, मस्त बोला यार! अगर इलाहाबाद की राजनीति जेएनयू की तर्ज पर होती तो इस लड़के का भाषण ही इसे अध्यक्ष बना सकता था। लोगों के बीच शक्ति भाई या कॉमरेड शक्ति के नाम से जाना जाता है ये नौजवान आइसा का अध्यक्ष का उम्मीदवार है।

आइसा इस बार कड़ी टक्कर देने की दशा में है और पूरी ताकत झोंक रही है। जेएनयू और लखनऊ से टीमें आयीं हुई हैं और जमीन पर जज़्बा बो रहीं हैं। शक्ति की अध्यक्ष पद पर उम्मीदवारी इस बार मुख्यधारा की बहस का हिस्सा है। आइसा के अलावा AIDSO और SFI भी चुनाव में हैं। वाम का कोई संयुक्त मंच नहीं है। पर आइसा को छोड़कर कोई और वाम संगठन की दावेदारी बहसतलब नहीं है।

लाल गमछा और सफेद कुर्ता पैजामा पहने जो लड़का इधर उधर हर जगह अट लेना चाहता था उसका नाम अवनीश कुमार यादव है। समाजवादी छात्र सभा का अध्यक्ष पद का उम्मीदवार है। दक्षता भाषण में जो कमी रह गयी उसे कैम्पेनिंग से पूरा कर रही है इसकी टीम। लखनऊ से दर्जनों एमएलए, एमएलसी इसके लिए छात्रों के बीच वोट मांग रहे हैं।

पूरे शहर में बड़े—बड़े पोस्टर इस लड़के के भी लगे हैं। और गाड़ियों का काफ़िला हनकदार था। लिंगदोह कमेटी की रिकमंडेशन यूं तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बेमानी हो जाती है इसलिए अवनीश भी इसका अपवाद नहीं हैं। इस लड़के की अध्यक्ष पद पर सबसे मजबूत दावेदारी है। जितने लोगों से बात की उन्होंने अवनीश की बढ़त की बात कही और इसके साथ ही अवनीश के पक्ष में एक सहज और सरल समीकरण दिख रहा है।

इसके अलावा भारतीय मुक्ति मोर्चा, भगत सिंह विचार मंच जैसे संगठन भी चुनाव लड़ रहें है पर वो सिर्फ चुनाव लड़ रहे हैं। उम्मीदवारी में उम्मीद ही उम्मीद है, दावेदारी में कोई वजन नहीं है। उनका चुनाव लड़ना इलाहाबाद विश्वविद्यालय को वैचारिक वैविध्यता प्रदान करता है और बहुत सारे वैचारिक मंचो वाले इंद्रधनुष के संधान में उनकी महती भूमिका है। पर हार—जीत की खींचातानी से ये संगठन और स्वतंत्र उम्मीदवार बाहर हैं।

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