बढ़ाई गई फीस जमा नहीं करने पर मैनेजमेंट दे रहा परीक्षा में न बैठने देने की धमकी : उत्तराखंड आयुर्वेद विवि के छात्रों का आरोप

Update: 2020-01-16 11:26 GMT

बढ़ी हुई फीस के खिलाफ आयुर्वेद विवि के छात्र 2 महीने से भी ज्यादा समय तक कर चुके हैं अनशन, अब विश्वविद्यालय प्रबंधन द्वारा छात्रों को नहीं भरने दिये जा रहे परीक्षा फॉर्म, जबकि कल बैक पेपर के लिए फॉर्म भरने की है अंतिम तिथि, छात्र बोले हम पर बनाया जा रहा है दबाव कि पहले बढ़ी हुई ​फीस भरो, फिर होगा परीक्षा फॉर्म जमा, हम फिर से होंगे आंदोलन को बाध्य...

जनज्वार। आयुर्वेद और योग की धरती कहे जाने वाले उत्तराखंड में पिछले कुछ समय से आयुष छात्र लगातार अपनी मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं, मगर उनकी मांगों को नजरंदाज़ करते हुए आयुर्वेद विश्वविद्यालय साफ़ तौर पर अपनी मनमानी पर अड़ा हुआ है।

छात्रों का कहना है कि अब उन्हें विश्वविद्यालय प्रबंधन द्वारा परीक्षा फॉर्म नहीं भरने दिये जा रहे हैं, जबकि कल बैक पेपर के लिए 17 जनवरी फॉर्म भरने की अंतिम तिथि है। छात्रों पर दबाव बनाया जा रहा है कि पहले बढ़ी हुई ​फीस भरो, फिर परीक्षा फॉर्म जमा होगा। आक्रोशित छात्रों का कहना है कि अगर विवि प्रशासन इसी तरह मनमानी करता रहा तो हम जल्द ही फिर से आंदोलन का रास्ता अख्तियार करेंगे।

गौरतलब है कि वर्ष 2015 में उत्तराखंड सरकार एवं समस्त मेडिकल कॉलेजों ने मिलकर आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों में शुल्क वृद्धि संबंधी आदेश ज़ारी किया था, जिसमें शुल्क 80,000 को बढ़ाकर 215000 कर दिया गया। यानी शुल्क में सीधे 135000 रुपयों की बढ़ोत्तरी की गई।

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स संबंध में उत्तराखण्ड छात्र संगठन से जुड़े छात्र कहते हैं, सामान्यतया बढ़े हुए शुल्क को नए सत्र के साथ ही पूर्व में प्रवेशित छात्रों से भी लिए जाने का आदेश ज़ारी किया गया। ये फ़ैसला शिक्षा के बाज़ारीकरण का भले ही समर्थन करता हो, परंतु हमारे हित में बिल्कुल नहीं था।

त्तराखंड सरकार तथा समस्त मेडिकल कॉलेजों के इस छात्र विरोधी फ़ैसले के ख़िलाफ़ हिमालयीय आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज देहरादून के समस्त छात्रों ने राज्यपाल के समक्ष भी अपनी बात रखी, परन्तु कोई हल नहीं निकला। इसके बाद ललित तिवारी और अन्य छात्रों ने उच्च न्यायालय में याचिका WPMS 3433/2016 दायर की, जिसे सुनने के बाद इस शुल्क वृद्धि पर दिसम्बर 2016 में रोक लगा दी गई।

सी प्रकरण पर उच्च न्यायालय ने 09 जुलाई 2018 को निर्णय देते हुए इस शुल्क वृद्धि संबंधी शासनादेश को रद्द किया तथा जिन छात्रों से बड़ा शुल्क लिया गया उन्हें 14 दिनों के भीतर लौटने के निर्देश हुए।

स फैसले में सुप्रीम कोर्ट गाइडलाइंस के अनुसार निजी कॉलेजों में शुल्क निर्धारण के लिए शुल्क नियामक समिति Act- 2016 बनाई, जिसके अध्यक्ष उच्च न्यायालय के सेनानिवृत जस्टिस होते हैं। यह आदेश बिना समिति के आदेश के निर्गत किया गया। इसके अलावा शासनादेश निर्गत होने की तिथि से या अगले सत्र से लागू होता है, ना कि पिछले साल से।

च्च न्यायालय के एकलपीठ के इस आदेश के ख़िलाफ़ खंडपीठ में 16 कॉलेजों की यूनियन ने मिलकर (SPA 639/2018) याचिका दायर की, लेकिन 09 अक्टूबर 2018 को फ़ैसला देते हुए खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश को सही बताया। इसके बाद सरकार द्वारा 02 नवंबर 2018, 23 अप्रैल 2018, 22 मार्च 2018 को हाईकोर्ट के आदेश पालन करने का आदेश ज़ारी किया गया, मगर इस बात को नकारते हुए सभी कॉलेज कहते हैं कि उन्हें शासन की तरफ़ से कोई आदेश नहीं मिला।

भी आयुर्वेदिक कॉलेजों का प्रबंधन दबंगई के साथ उच्च न्यायालय के आदेश को नकारते हुए शुल्क वापसी करने से इंकार कर रहे हैं। यहां पढ़ रहे छात्रों का कहना है कि हमसे कॉलेज प्रबंध कह रहा है कि तुम कहीं भी जाओ, अतिरिक्त शुल्क राशि लौटाई नहीं जाएगी और इसके लिए छात्रों पर दबाव बनाया जा रहा है। उन्हें परीक्षा में बैठने नहीं दिया जा रहा है। छात्रों की उपस्थिति भी संस्थानों में दर्ज़ नहीं कराई जा रही है। उच्च न्यायालय में छात्र द्वारा अवमानना याचिका भी दाखिल की गई, जिस पर स्पष्ट रूप से कक्षाएं संचालित करने समेत बड़े शुल्क की मांग न करने की बात कही गई थी।

गौरतलब है कि छात्रों ने आरोप लगाया था, उत्तराखंड के आयुष मंत्री हरक सिंह रावत के खुद के 2 प्राइवेट मेडिकल कॉलेज हैं, इसलिए वो इस पर कोई एक्शन नहीं होने लेना चाहते हैं। पुराने बच्चों से तक बढ़ी हुई फीस वसूली जा रही है। यही नहीं बैक पेपर भी नियमित रूप से नहीं कराए जा रहे हैं।

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दूसरी तरफ कोर्ट के सभी आदेशों की निजी आयुर्वेदिक कॉलेजों द्वारा धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। छात्रों को परीक्षा से वंचित रखने व संस्थानों में उपस्थिति दर्ज़ ना होने से भारी आक्रोश है। वहीं दूसरी तरफ़ सत्र 2018-19 में प्रवेश लेने वाले छात्रों की प्रवेश के 1 वर्ष बाद भी उन्हें पंजीकरण संख्या ना दिए जाने से छात्रों में भय का माहौल भी व्याप्त है। यानी संस्थानों द्वारा धोखाधड़ी करते हुए छात्रों के प्रवेश नियमों को ताक पर रखा जा रहा है, मगर इसके ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही क्यों नहीं की जा रही है।

पूर्व में भी आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय, हर्रावाला देहरादून के कुलपति सुनील जोशी द्वारा विश्वविद्यालय में त्रिपक्षीय वार्ता बुलाई गयी थी, परन्तु संस्थानों के वार्ता में ना पहुंचने पर भी उनके विरुद्ध कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई करने में कोताही बरती गई, जिसको लेकर छात्र आक्रोशित हैं और संस्थानों पर उचित कार्रवाई करने की मांग कर रहे हैं।

न तमाम समस्याओं से जूझते हुए 1 अक्टूबर 2019 से आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय के छात्रों ने आंदोलन शुरू किया था जो 66 दिनों तक चला। आंदोलन के दौरान कई चीज़ें सामने आयीं, जिससे विश्वविद्यालय प्रशासन और व्यवस्था पर कई सवाल उठे।

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आंदोलन के शुरुआती समय में छात्रों ने अपनी मांगों को लेकर 01 अक्टूबर 2019 से 09 अक्टूबर 2019 तक हर्रावाला यूनिवर्सिटी देहरादून में शांतिपूर्ण तरीके से धरना प्रदर्शन किया, उसके बाद परेड ग्राउंड देहरादून में धरना शुरू हुआ, जिसमें 45 दिनों तक छात्रों ने आमरण अनशन किया। इस धरने में सभी 13 मेडिकल कॉलेजों के छात्र शामिल थे, लेकिन प्रशासन पर कोई असर नहीं पड़ा। बल्कि छात्र प्रशासन की बर्बरता का शिकार हुए, जिसके कारण छात्रों को अनशन खत्म करना पड़ा। उसके बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के आदेश जारी हुई, मगर वह आदेश भी धरे के धरे रह गए। अनशन में बैठे हुए छात्रों को ज़बरदस्ती हटवाया गया और छात्रों पर लाठीचार्ज किया गया।

ब परीक्षाओं के नाम पर छात्रों पर दबाव बनाया जा रहा है कि वह बढ़ा हुआ शुल्क जमा करें, ऐसा ना करने की स्थिति पर उन्हें परीक्षा में नहीं बैठने दिया जाएगा। जबकि परीक्षा की डेटशीट दो बार आ चुकी है। इस मसले पर उत्तराखण्ड छात्र संगठन की भावना पांडे कहती हैं, पहली डेट शीट 28 दिसंबर 2019 को आई, जिसमें साफ़ तौर पर कहा गया था कि छात्र अपने फॉर्म्स विश्वविद्यालय में जमा कर सकते हैं। जो भी केंद्र होगा वह भी विश्वविद्यालय द्वारा ही निर्धारित किया जाएगा और यह पूरक परीक्षाएं होंगी। इसके बाद दूसरी डेट शीट 09 जनवरी 2020 ज़ारी हुई, जिसमें पूरक परीक्षाओं को हटाकर सैशनल परीक्षाएं कराने की बात कही गई और उसमें कहा गया कि छात्र कॉलेज प्रबंधक को ही परीक्षा फॉर्म्स जमा करेंगे, साथ ही परीक्षा शुल्क भी उन्हें ही जमा करेंगे और परीक्षा की सारी व्यवस्थाएं कॉलेज ही करेगा।'

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स मसले पर उत्तराखण्ड छात्र संगठन के छात्र कहते हैं, 'उसी दिन एक डेट शीट और ज़ारी की गई, जिसमें पूरक परीक्षा और मुख्य परीक्षा एक साथ कराने की बात कही गई तथा इसमें भी कॉलेज प्रबंधन को ही परीक्षा करवाने का उत्तरदायित्व दिया गया। विश्वविद्यालय के इस फ़ैसले से अब कॉलेज प्रशासन फिर से बढ़ा हुआ शुल्क जमा करने की बात कर रहे हैं और ऐसा ना करने पर छात्रों को परीक्षाओं से वंचित रखने की बात फिर से हो रही है। हमें लगता है विश्वविद्यालय भी कॉलेज प्रबंधकों के साथ ही शामिल हो चुका है।

छात्र कहते हैं, 8 जनवरी को जैसे ही पतंजलि आयुर्वेदिक संस्थान में कंटेंप्ट का आर्डर आया, उसके ही दूसरे दिन यह डेटशीट निकालना बिल्कुल ठीक नहीं है। एक ओर जहां मुख्यमंत्री जी के आदेशों को कॉलेज एक सिरे से नकार रहा है, वहीं दोबारा विश्वविद्यालय द्वारा यह डेटशीट ज़ारी कर छात्र छात्राओं को फिर से असमंजस में डाल दिया गया है।

त्तराखंड छात्र संगठन का कहना है कि छात्रों के साथ यह नाइंसाफी जारी रही तो हम जल्द ही दोबारा आंदोलन शुरू करेंगे। पहली बार के आंदोलन में भी उत्तराखंड छात्र संगठन पूरी तरह से आयुष छात्रों के साथ था। संगठन कहता है विवि प्रशासन की निरंकुशता पर अंकुश लगाना ज़रूरी है अन्यथा शिक्षा पूरी तरह बाज़ार बन जाएगी।

त्तराखंड छात्र संगठन सवाल उठा रहा है कि क्या सरकार को मुफ़्त शिक्षा की व्यवस्था नहीं करनी चाहिए? क्या सरकार और प्रशासन का काम सिर्फ़ दमन करना है? क्या शिक्षा का बाजारीकण घातक नहीं होगा? क्या रामदेव और बालकृष्ण भी शिक्षा को मात्र एक बाज़ार बनाने के पक्षधर हैं? जब जेएनयू और आयुर्वेद विश्वविद्यालय शुल्क वृद्धि के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे हैं, क्या ऐसे में सरकार को छात्र हित ध्यान में रखते हुए उनकी मांग पूरी नहीं करनी चाहिए?

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