उत्तराखंड में हिमालयी आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज के छात्र फीस वृद्धि के खिलाफ आमरण अनशन पर
आमरण अनशन कर रहे छात्रों ने कहा आयुष मंत्री हरक सिंह रावत के हैं खुद के 2 निजी मेडिकल कॉलेज, इसलिए वो नहीं होने देना चाहते कोई एक्शन, पुराने बच्चों से तक वसूली जा रही है बढ़ी हुई फीस...
देहरादून से विमला की रिपोर्ट
उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालयों से संबद्ध निजी कॉलेजों की मनमानी फीस वसूलने, बैक पेपरों में तमाशा करने और छात्रों से संबंधित अन्य कई मुद्दों को लेकर छात्र सड़क पर उतर चुके हैं। पहले कई दिनों तक आंदोलन के बाद भी निजी आयुष कॉलेजों के मैनेजमेंट ने जब उनकी बात नहीं सुनी तो अब वे आमरण अनशन पर बैठ गये हैं।
गौरतलब है कि उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय से संबद्ध हिमालयी आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज में छात्र अपनी मांगों को लेकर 10 अक्टूबर से आमरण अनशन पर बैठ गये हैं। इससे पहले कई दिनों से बढ़ी हुई फीस और बैक पेपर कराये जाने समेत कई अन्य मांगों को लेकर आंदोलनरत छात्र धरने पर बैठे हुए थे। अब छात्रों को कांग्रेस समेत उत्तराखण्ड क्रांति दल और अन्य कई राजनीतिक—सामाजिक संगठनों का समर्थन मिल रहा है।
उत्तराखंड के हिमालयी आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज के छात्र प्रगति जोशी और अजय छात्रों की तमाम मांगों को लेकर आमरण अनशन पर बैठ गये हैं। उन्हें समर्थन देने के लिए अनशन स्थल पर ललित तिवारी, शिवम शुक्ला, हार्दिक, अजय, आदित्य, कनक जोशी और पवन मौर्या भी बैठे हैं।
छात्रों के आंदोलन को समर्थन देते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह कहते हैं, निजी आयुष कॉलेजों द्वारा छात्रों का उत्पीड़न किया जा रहा है। नियमों के विरुद्ध छात्रों पर बढ़ा हुआ शुल्क जमा करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है, लेकिन राज्य सरकार मौन है। इन आयुर्वेद कॉलेजों में पर्वतीय क्षेत्र के गरीब परिवारों के छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। न्यायालय के आदेशों के बावजूद आयुष कॉलेजों द्वारा बढ़े हुए शुल्क को जमा करने का दबाव सरकार के संरक्षण में छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ व अभिभावकों का शोषण है। हमारी पार्टी छात्रों की शुल्क वृद्धि रोकने की न्यायोचित मांग का समर्थन करती है।'
हालांकि 3 अक्टूबर को ही छात्रों का आंदोलन तब हंगामे में तब्दील हो गया था, जब अपनी मांगों की कोई सुनवाई न होने पर उग्र हुए छात्रों ने विश्वविद्यालय में सभी की आवाजाही रोक दी। इसके कारण स्थानीय लोगों और छात्रों के बीच टकराव पैदा हो गया। इसके बाद आंदोलनकारी छात्रों के लिए कुलपति ने पांच अक्तूबर को त्रिपक्षीय बैठक बुलाई थी। 4 अक्टूबर को आंदोलनरत छात्रों ने यह कहते हुए आयुष मंत्री हरक सिंह रावत के पुतले शवयात्रा निकाली कि फीस संबंधी मामला पिछले काफी वक्त से चल रहा है, पर मंत्री ने इसे सुलझाने की कभी पहल नहीं की।
निजी आयुर्वेदिक कॉलेजों की ओर से बढ़ा हुआ शुल्क मांगने और शुल्क न देने पर परीक्षा फॉर्म न भरने देने के खिलाफ छात्र पिछले कई दिन से आयुर्वेद विश्वविद्यालय में धरने पर बैठे हुए हैं। 3 अक्टूबर को उन्होंने विवि के मुख्य गेट पर ताला लगा दिया था। इस वजह से कोई भी बाहर नहीं आ पाया। इस पर कुलपति डॉ. सुनील जोशी ने निजी कॉलेज संचालकों को बुलाया और उनसे बात की।
छात्रों के पिछले 10 दिनों से चल रहे आंदोलन और अब आमरण अनशन को लेकर कालेज की प्रिंसिपल डॉक्टर अर्चना कम्बोज से जब जनज्वार ने बात करने की कोशिश की तो उन्होंने यह कहते हुए फोन काट दिया कि इसमें बात करने जैसा कोई मुद्दा नहीं है।
वहीं आमरण अनशन पर बैठे छात्रों को समर्थन दे रहे आयुष विश्वविद्यालय के ही छात्र ललित मोहन तिवारी कहते हैं, हम छात्रों द्वारा आज 14 अक्टूबर को दिन में 12 बजे सरकार की बुद्धि, शुद्वि यज्ञ किया गया है, ताकि सरकार कुनीतियों से बाज आकर छात्र हितों की बात कर सके। हालांकि आमरण अनशन पर बैठे छात्रों स्वास्थ्य में गिरावट आ रही है, मगर वे अपनी मांगों पर डटे हुए हैं।
फीस वृद्धि के खिलाफ सरकार को सदबुद्धि देने के लिए यज्ञ करते हिमालयी आयुर्वेदिक कॉलेज के आंदोलनरत छात्र
उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय के इन छात्रों की मांग है कि कॉलेज में की गई फीस वृद्धि पर रोक लगाई जाये, बैक पेपर कराये जाएं, छात्रों को क्लास में बैठने दें और विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा उन पर किसी प्रकार का दबाव न बनाये। गौरतलब है कि बढ़ी हुई फीस कॉलेज से वसूले जाने के लिए उच्च न्यायालय भी आदेश दे चुका है जिसका विश्वविद्यालय द्वारा पालन नहीं किया गया, छात्रों की मांग है कि विश्वविद्यालय कोर्ट का आदेश मानते हुए उन्हें बढ़ी हुई फीस वापस करे।
आमरण अनशन पर बैठी आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज की छात्रा प्रगति जोशी कहती हैं, उत्तराखंड के पृथक राज्य बन जाने के बाद यहां की सरकारों ने शिक्षा का बाजारीकरण कर दिया है। हम अपनी मांगों को लेकर 10 दिनों से धरने पर बैठे हैं। अब 12 अक्टूबर से हमने आमरण अनशन शुरू कर दिया है। हमारी फीस 80 हजार से सीधे 1 लाख 15 हजार कर दी गयी। हमें क्लास में नहीं बैठने दिया जा रहा है। अगर हमारे मांगें पूरी नहीं हुईं तो हम राजभवन की तरफ कूच करेंगे।'
प्रगति कहती हैं, 'उत्तराखंड के आयुष मंत्री हरक सिंह रावत के खुद के 2 प्राइवेट मेडिकल कॉलेज हैं, इसलिए वो इस पर कोई एक्शन नहीं होने लेना चाहते हैं। पुराने बच्चों से तक बढ़ी हुई फीस वसूली जा रही है। यही नहीं बैक पेपर भी नियमित रूप से नहीं कराए जा रहे हैं।
आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज के आंदोलनरत छात्र ललित मोहन तिवारी कहते हैं, उत्तराखंड सरकार और आयुष विभाग ने मिलकर 2015 में एक जीओ बनाया, जिसमें आयुष प्राइवेट कॉलेजों की फीस 80 हजार से 1 लाख, 15 हजार कर दी।
गौरतलब है कि फीस वृद्धि को लेकर विश्वविद्यालय ने एक समिति का गठन किया, जिसका चेयरमैन हाईकोर्ट के रिटायर जजों को बनाया जाता है। 2016 हाईकोर्ट में इसे लेकर एक अपील डाली तो 9 जुलाई 2018 में जस्टिस खोलिया की बैंच ने बढ़ाई गयी फीस पर रोक लगा दी। कहा कि ये जीओ असंवैधानिक है, जो सुप्रीम कोर्ट के नियमों का उल्लंघन करता है। साथ ही हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि कॉलेज 14 दिन के अंदर बढ़ी हुई फीस को बच्चों को वापस लौटाये। उत्तराखंड में 16 निजी कालेज हैं, जो फैसले को लेकर डबल बैंच में गये, मगर वहां भी उनकी अपील खारिज कर दी गयी।
फीस वृद्धि पर निजी आयुर्वेदिक कॉलेजों का कहना है कि हम तो उतनी ही फीस लेंगे, जितनी तय कर दी गयी है। जबकि मोहिनी जैन बनाम कर्नाटक सरकार के मामले में उच्चतम न्यायालय ने आदेश पारित किया था कि शिक्षा पाने का अधिकार अनुच्छेद 21 में प्रत्येक नागरिक का मूल अधिकार है।
फीस वृद्धि के खिलाफ आमरण अनशन पर बैठे अजय और प्रगति
इस मामले में कर्नाटक सरकार ने राज्य के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में ली जाने वाली टयूशन फीस को विनियमित करने के प्रयोजन से कर्नाटक एजुकेशन इंस्टीट्यूशन प्रोहीबिशन आफ कैपिटेशन फीस एक्ट 1983 पारित किया था। इसके अधीन एक अधिसूचना द्वारा विभिन्न छात्रों के लिए टयूशन फीस निर्धारित कर दी गयी थी। सरकारी कोटे में 2 हजार रुपये, कर्नाटक राज्य के छात्रों के लिए 25 हजा और कर्नाटक के बाहर के छात्रों के लिए 60 हजार प्रतिवर्ष फीस की दर तय की गयी थी।
मोहिनी जैन उत्तर प्रदेश की निवासी थीं, जिन्हें फीस नहीं देने के कारण प्रवेश नहीं दिया गया। पिटीशनर मोहिनी जैन ने उक्त अधिनियम को कोर्ट में चुनौती दी, यह कहते हुए कि शिक्षा पाने का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत मूल अधिकार में आता है। ऐसे में कॉलेजों द्वारा कैपिटेशन फीस वसूलना नागरिकों को इस अधिकार से वंचित करना है। प्रत्येक नागरिक को शिक्षा उपलब्ध कराना राज्य का संवैधानिक दायित्व है।
अब उत्तराखंड आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय के आंदोलनरत छात्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा हमारा उत्पीड़न किया जा रहा है। कोर्ट के आदेश की खुलेआम अवहेलना की जा रही है। निजी कॉलेज पढ़ाई के नाम पर जमकर लूटपाट कर रहे हैं, क्योंकि इन्हें कोर्ट के डंडे की भी कोई फिक्र नहीं है।