मजबूरी में अमित शाह को देनी पड़ी कार्यकर्ताओं को सोशल मीडिया से दूर रहने की सलाह

Update: 2017-09-11 13:18 GMT

जनज्वार। कहावत है, बबूल बोओगे तो आम कहां से काटोगे! इस समय कुछ इसी कहावत के आसपास से भाजपा गुजर रही है। पार्टी कार्यकर्ता लगातार बड़े नेताओं से पूछ रहे हैं कि सोशल मीडिया पर हमारी सरकारों को इतना विरोध क्यों है, क्यों समर्थक भी अब आलोचकों के साथ खड़े हो रहे हैं?

भाजपा को लेकर कांग्रेस, आप, सपा—बसपा, वामपंथी पार्टियों समेत सभी विपक्षी दलों की यह आम आलोचना रही है कि वह सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों, झूठी कैंपेनों और तोड़ी—मोड़ी गयी जानकारियां परोस कर प्रचंडतम बहुमत से सत्ता पर आसीन हुई है। विपक्षी पार्टियां हर मंचों से कहती रही हैं कि इनका सोशल मीडिया नेटकर्व इतना मजबूत और सशक्त है कि वह अपनी झूठे दावे और जानकारी को घंटे भर के भीतर उसे राष्ट्रीय जानकारी और मसला बना देते हैं।

भाजपा अपनी इस आलोचना पर गुमान भी करती रही है और एक से बढ़कर एक पार्टी के कद्दावर नेताओं को सोशल मीडिया पर फरेब फैलाओ अभियान का सिपाही बनाती रही है। पिछले दिनों भाजपा सांसद परेश रावल, पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, दिल्ली की नेता नुपूर शर्मा, आईटी सेल भाजपा हेड फर्जी खबरों को फैलाने के लिए विवादों में रहे हैं और इन पर मुकदमें भी दर्ज हुए हैं।

पर अब पार्टी के अध्यक्ष और चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह अपने ही बनाए चक्रव्यूह में फंसते नजर आ रहे हैं। कल रविवार को अमित शाह से कार्यकर्ताओं ने सर्वाधिक सवाल सोशल मीडिया को लेकर पूछे, उसमें में पार्टी नेतृत्व और उसके कामों के बढ़ते विरोध को लेकर। ऐसे में अब सोशल मीडिया का यह रवैया भाजपा नेताओं को गड़ने लगा है, दर्द देने लगा है।

कल 10 सितंबर रविवार को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अहमदाबाद में थे। अहमदाबाद में वे दीन दयाल उपाध्याय हॉल में अधिखम गुजरात या मजबूत गुजरात कार्यक्रम में शामिल होने आए थे। इस दौरान उन्होंने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए प्रदेशभर के 250 केंद्रों पर 16 से 35 वर्ष के करीब डेढ़ लाख कार्यकर्ताओं को संबोधित किया।

इस कार्यक्रम का मकसद अगले साल गुजरात विधानसभा चुनावों के मद्देनजर केंद्र और राज्य सरकार की उपलब्धियां गिनाना था, जिससे पार्टी कार्यकर्ता अभी से क्षेत्रों में जाकर पार्टी के पक्ष में युद्धस्तर पर प्रचार में जुट जाएं। अमित शाह ने आंकड़ों के साथ कार्यकर्ताओं को पार्टी और सरकार की उपलब्धियां गिनाईं।

लेकिन कार्यकर्ताओं का मन अबकी कुछ और सुनना चाहता था। अमित शाह की वीडियो कांफ्रेंसिंग के दौरान कार्यकताओंं ने हजारों सवाल किए, जिसमें से ज्यादातर सोशल मीडिया से संबंधित थे, वह भी पार्टी और सरकार की आलोचना को लेकर। कार्यकर्ता जानना चाहते थे कि एकाएक पार्टी विरोधी पोस्टें, खबरें, चुटकुले और दावे क्यों बढ़ गए हैं? सुत्रों के मुताबिक युवा गुजरात से थे इसलिए ज्यादातर सवाल असफलता को लेकर थे और सरकार के बनते माहौल को लेकर?

सोशल मीडिया पर सरकार विरोधी कैंपनों के सवालों पर अमित शाह ने कहा, 'कार्यकर्ता पार्टी विरोधी पोस्ट और प्रोपगंडा से दूर रहें और अपने दिमाग का इस्तेमाल करें। किसी बहकावे में न आएं और कार्यकर्ता शोसल मीडिया पर ध्यान देने की बजाय क्षेत्र में जाएं और जनता को उपलब्धियां बताएं।' साथ ही अमित शाह पाटीदार आंदोलन को लेकर भी सवाल पूछे गए जिसका फायदा कांग्रेस तो नहीं ले जाएगी

अब सवाल यह उठता है कि जो अमित शाह और पार्टी सोशल मीडिया पर ही अपने पक्ष में राजनीतिक माहौल बनाने में कामयाब रही थी, केंद्र की सत्ता के तीन साल बीतते—बीतते ऐसा क्या हुआ कि उसी पार्टी के मुखिया को कहना पड़ रहा है कि कार्यकर्ता ऐसे खबरों से दूर रहें। साफ है कि सोशल मीडिया में फर्जी खबरों के जरिए छा जाने का जो तरीका भाजपा ने लोगों को पकड़ाया है, उसे ही अब लोग भाजपा के खिलाफ उपयोग करने लगे हैं।

क्योंकि लोग अब मोदी की बातों और घोषणाओं से आगे चाहते हैं, वह काम के असर को अपनी जिंदगी में आई बेहतरी के रूप में देखना चाहते हैं।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जैसे—जैसे सरकार की असफलताएं बढ़ती जाएंगी वैसे—वैसे भक्त विरोधी बनते चले जाएंगें, विपक्षी हावी होते जाएंगे, क्योंकि लोगों को मोदी से प्यार और लगाव सिर्फ इसलिए है कि वह कांग्रेस का बेहतर विकल्प बनेंगे।

लेकिन सरकारी दावों और नीतियों की जारी एक के बाद एक असफलता के चलते मोदी की छवि को तेजी से बदला है। और वह दिन दूर नहीं कि जिस सोशल मीडिया ने तीन साल पहले लोकसभा चुनावों में मोदी को छत्रप बनाया था, वही सोशल मीडिया 2019 चुनाव से पहले राजनीतिक परसेप्शन में मोदी को सही वाला फेंकू न साबित कर दे।

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