अंग्रेजों ने ऐसे ही नहीं कहा था भारत को सांप और सपेरों का देश

Update: 2019-05-30 08:13 GMT

हम सिनर्जी में व्यस्त हैं, अल्पसंख्यकों को पीटने में व्यस्त हैं, वनवासियों को जंगलों से बाहर करने में व्यस्त हैं और संविधान बदलने में व्यस्त हैं। इस बीच में देश पूरी तरह बदल चुका है, लोग बदल चुके हैं...

महेंद्र पाण्डेय, वरिष्ठ लेखक

मंदिरों में आपने देखा होगा वीवीआईपी या फिर पैसे देकर जानेवाले श्रद्धालु देर तक पूजा करते हैं और बार-बार भगवान् के चरणों में गिरकर पूजा करते हैं। हमारे प्रधानमंत्री जी भी कभी संसद की सीढ़ियों और कभी संविधान के सामने झुक-झुक कर मत्था टेकते हैं। संविधान का पालन करते-करते पांच साल बीत गए और अगले पांच साल के लिए गद्दी भी आ गयी। अब तो आश्चर्य होता है कि संसद में जो संविधान रखा गया है, उसमें जिल्द के नीचे कुछ है भी या नहीं।

आजकल प्रधानमंत्री जी लगभग हरेक संबोधन में सिनर्जी की खूब बातें करते हैं। हाल में ही उन्होंने कहा कि रणनीति और नीति की सिनर्जी से सरकार चलती है। उनका भाषण कुछ भी हो, पर सिनर्जी कहाँ से आती है, अब पता चल रहा है।

रणनीति और नीति के अलावा सिनर्जी में डंडे के जोर से मुस्लिम लोगों से राम का नाम बुलवाना, पिछड़ी जाति के डॉक्टर को जाति के नाम पर इस हद तक प्रताड़ित करना कि उसे आत्महत्या के अलावा कुछ और नजर ही नहीं आये, किसी रेहड़ी वाले को केवल इसलिए गोली मार देना क्योंकि वह एक मुस्लिम है, जिन राज्यों में बीजेपी की सरकार नहीं है, वहां की सरकारें अस्थिर करना, दूसरे दलों के विधायकों को 50-60 करोड़ रुपये देकर खरीदना जैसे विषय भी शामिल हैं।

चुनाव के दौरान ही और किसी ने नहीं बल्कि स्वयं प्रधानमंत्री ने टीएमसी के 40 विधायकों के बीजेपी में आने की बात कही थी। दरअसल यह टीएमसी विधायकों के लिए एक चुनावी आचार संहिता मुक्त सन्देश था कि बीजेपी में उनका स्वागत है, और अब वैसा ही हो रहा है। यही करिश्मा अब मध्य प्रदेश और राजस्थान में होने जा रहा है। राजनीति कोई सेवा तो है नहीं, विधायक तो पैसे की तरफ भागेंगे ही, और यह बार—बार बताया जाता है कि पैसा तो एक ही पार्टी के पास है।

दरअसल हमारे देश में कहानियां और काव्य बड़े प्रचलित रहे हैं। महाकाव्यों ने अनेक किरदार हमारे मानस पटल पर हमेशा के लिए अंकित कर दिए हैं। प्रधानमंत्री की कामयाबी का राज भी यही कहानियां हैं। कभी चाय बेचने वाला, कभी चौकीदार, कभी सेवक, तो कभी बहुत गरीब पृष्ठभूमि से आने वाला, कभी हिमालय पर तपस्या करने वाला तो कभी कुछ और। एक ऐसा नायक जो तमाम तूफानों से टकराने के बाद भी हरेक संघर्ष जीतता है और न चाहते हुए भी गद्दी पर बैठा दिया जाता है।

गद्दी पर बैठते ही देश में विकास की नदियाँ बहने लगती हैं, सारी समस्याएं ख़त्म हो जातीं हैं, खेत लहलहाने लगते हैं, रोजगार इतने पैदा होते हैं जितने देश में बेरोजगार भी न हों, सभी शत्रु निरीह हो जाते हैं। प्रधानमंत्री जी लोगों की नब्ज अच्छी तरह जानते हैं, इसीलिए अपने भूतकाल को जनता के भविष्य से जोड़ते हैं। जनता को भी यही सब्जबाग पसंद है। अंग्रेजों ने इसे ऐसे ही सांप और सपेरों का देश थोड़े ही कहा था।

जब तीन राज्यों में बीजेपी की हार हुई थी तब इंडिपेंडेंट में प्रकाशित एक खबर में बीजेपी की हार के चार प्रमुख कारण बताये गए थे। पहला कारण है, हिन्दू अतिवादी संगठनों की बढ़ती भूमिका, जो अपनी मर्जी से किसी की हत्या भी सरेआम का सकते हैं और सरकार आँखे बंद कर उन्हें उग्रवादी संगठनों के नक़्शे कदम पर चलने देती है। सरकार की नीतियों के विरुद्ध आवाज उठाने वाले पत्रकारों और सामाजिक संगठनों को खुले आम धमकियां देना, सरकार द्वारा देशद्रोही जैसा दंड देना और कई बार सरेआम उन्हें मार डालना भी एक बड़ा कारण है।

इसके अतिरिक्त केंद्र और बीजेपी शासित राज्यों द्वारा तमाम बड़े दावों के बाद भी बेरोजगारी की समस्या का विकराल होना,और किसानों के उठान के लिए जमीनी स्तर पर कुछ नहीं करना भी हार का बड़ा कारण है। अब जरा सोचिये, इसमें से कौन सी समस्या का हल मिल गया जो मोदी जी को इतना भारी बहुमत मिल गया।

प्रधानमंत्री जी तो विज्ञान के भी बड़े ज्ञाता हैं। पिछले चुनाव को जीतने पर डीएनए पर खूब भाषण दिया था। इस बार बनारस में अंकगणित को केमिस्ट्री से हरा दिया। पर मजाल है कि देश के किसी वैज्ञानिक की इस वक्तव्य पर कोई आवाज उठे। यह तुलना ठीक वैसे ही है जैसे मुंशी प्रेमचंद की तुलना कोई हरगोविंद खुराना से करने लगे। पीएमओ के भाषण में प्रधानमंत्री जी कह रहे थे, जैसे ए प्लस बी होल स्क्वायर को आगे लिखते हैं, ए स्क्वायर प्लस 2एबी प्लस बी स्क्वायर, इसमें जो एक्स्ट्रा 2एबी है...राडार और बादलों के बाद पता नहीं क्यों मोदी जी गणित के पीछे पड़ गए हैं।

वैसे पार्टी का एजेंडा अब तक गौतम गंभीर समेत अनेक नए सांसदों को समझ में आ गया होगा, जिन्हें गलतफहमी रही होगी कि उनकी पार्टी गलत को गलत और सही को सही कहती होगी। अनुपम खेर ने तो सही को सही कहने को मीडिया के एक वर्ग में लोकप्रियता करार दिया है।

बीजेपी को कम से कम इतना पता है कि समस्या का समाधान उनके पास नहीं है, पर समस्या से जनता को गुमराह कैसे किया जा सकता है। इसका उदाहरण पुलवामा में मिल गया था, जहां 40 से अधिक जवान शहीद हो गए थे। पूरे देश में दो दिनों तक चर्चा चली, फिर एक दिन बादलों के बीच राडार से ओझल होकर बालाकोट में कुछ जहाज भेजे गए और फिर पुलवामा का दुख, दर्द और गुस्सा सब ख़त्म हो गया। देश की सुरक्षा चाक—चौबंद हो गयी। देश पूरी तरह से सुरक्षित हो गया और मोदी जी को बहुमत मिल गया। फिर कोई हमला होगा, फिर हम कुछ करेंगे और देश की सुरक्षा ऐसे ही चलेगी।

फिलहाल तो हम सिनर्जी में व्यस्त हैं, अल्पसंख्यकों को पीटने में व्यस्त हैं, वनवासियों को जंगलों से बाहर करने में व्यस्त हैं और संविधान बदलने में व्यस्त हैं। इस बीच में देश पूरी तरह बदल चुका है, लोग बदल चुके हैं। इस चुनाव ने इतना तो बता दिया है कि हमारा लोकतंत्र जिसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है, खतरनाक तरीके से अयोग्य है।

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