रामचंद्र गुहा : सरकार के लिए उल्टा पड़ गया जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 का दांव

Update: 2019-11-10 09:33 GMT

कश्मीर में सरकार का अनुच्छेद 370 का कदम नैतिक और राजनीतिक दोनों रूप में गलत है। ताकत के बल पर समृद्धि कभी नहीं लायी जा सकती। कश्मीर में सरकार के लॉकडाउन के समय ने भी हैरान किया है। ऐसे समय में जब तुरंत भारी बहुमत के साथ दोबारा चुनी गयी मोदी सरकार को आर्थिक समस्याओं को हल करने के लिए कदम उठाने थे, सरकार ने कश्मीर को प्राथमिकता दी...

रामचंद्र गुहा, चर्चित इतिहासकार

स लोकतांत्रिक देश में बीते 61 वर्षों में अनुच्छेद 370 हटाया जाना उन चंद कदमों में शामिल है जिसने मुझे गहराई तक चिंतित किया है। मौजूदा सरकार द्वारा इसे लागू करने में जो कठोरता बरती गयी और जिस तरीके से देश के शेष हिस्सों में इसका व्यापक स्वागत किया गया। इससे अब तक भारत से निष्ठा जताते आ रहे कश्मीरी भी बेचैन हैं। कुछ भारतीय मानते हैं कि पिछले कुछ दशकों से कश्मीर समस्या पाकिस्तान के कारण है।

नके मुताबिक राज्य की सीमा से सटे होने के कारण इस पर पाकिस्तान अपना दावा जताता रहा और खुद के एजेंडे का पालन करते हुए भारत के खिलाफ तीन युद्ध लड़ा। दूसरी ओर निरन्तर आतंकी गतिविधियां घाटी में जारी रखी। कश्मीरी मुसलमान जिन्हें विशेष अधिकार दिए गए थे इसलिए भी धारा 370 का हनन पाकिस्तान के लिए करारे जवाब जैसा है और अस्थिर रूप से लाचार कश्मीरियों के लिए धक्के जैसा। सोशल मीडिया पर कुछ अतिवादी हिन्दू अपनी छद्म जीत का परचम लहराते रहते हैं। कुछ घाटी में झीलों के किनारे घरों पर मालिकाना हक जताते हैं तो कुछ घाटी की सुन्दर महिलाओं की कल्पनाओं में रहते हैं।

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क इतिहासकार के रूप में मैंने कई वर्षों तक कश्मीर मुद्दे का अध्ययन किया है और राज्य का कई बार दौरा भी किया है। अपने राज्य को केंद्रशासित प्रदेश में परिवर्तित होना हमेशा कश्मीरियों द्वारा उनकी भावनाओं के अपमान के रूप में देखा गया। कश्मीर में सरकार का कदम नैतिक और राजनीतिक दोनों रूप से गलत है। ताकत के बल पर समृद्धि कभी नहीं लायी जा सकती। कश्मीर में सरकार के लॉकडाउन के समय ने भी हैरान किया है। ऐसे समय में जब तुरंत भारी बहुमत के साथ दोबारा चुनी गयी मोदी सरकार को आर्थिक समस्याओं को हल करने के लिए कदम उठाने थे, सरकार ने कश्मीर को प्राथमिकता दी।

5 अगस्त के बाद के दिनों में एक दोस्त के साथ मेरी कश्मीर पर बातचीत हुई, जो कि बैंगलोर में एक उ़द्यमी हैं। मेरे विपरीत उन्होंने उत्साहपूर्वक अनुच्छेद 370 के हनन को सही ठहराया। उनके (दोस्त) मुताबिक यथास्थिति अस्वीकार्य थी और इसे खत्म करने के लिए बहुत पहले कुछ किया जाना चाहिए था। वह इस कठोर कार्रवाई के परिणाम को लेकर बहुत आशावादी थे। उनके अनुसार अब कश्मीर कानूनी तौर से एक हो गया है इससे घाटी में निवेश की लहर आएगी, जो कि वहां की आर्थिक रूप से पूरी सूरत ही बदल देगी।

नुच्छेद 370 के निरस्त होने के एक हफ्ते बाद भारत के सबसे अमीर उद्योगपति मुकेश अंबानी ने जम्मू-कश्मीर में रिलायंस द्वारा निवेश की घोषणा करने का वादा किया। उन्होंने इसके लिए एक स्पेशल टास्क फोर्स बनाने का दावा किया। इस बीच जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा कि सितम्बर में श्रीनगर में एक विशेष निवेशक सम्मेलन आयोजित किया जाएगा, लेकिन फिर सरकार ने इस निवेशक सम्मेलन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया।

श्मीरियों के लिए और ज्यादा नौकरी, ज्यादा फैक्ट्री लगाने का वादा किया गया, लेकिन पांच अगस्त के बाद से कश्मीरियों को भारी मात्रा में तैनात सेना और प्रतिबंधों के सिवाय कुछ नहीं मिला। वकील नित्या रामकृष्णन और समाजशास्त्री नंदिनी सुंदर ने हाल ही में घाटी का दौरा किया, जहां उनकी आम कश्मीरियों के साथ लंबी बातचीत हुई। दोनों ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि हुर्रियत नेता सैय्यद अली शाह गिलानी को अपना नेता मानने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है।

भारत सरकार 370 के बाद से वादे कर रही है, लेकिन ये सभी वादे कश्मीरियों के लिए संचार पर पाबंदी, भारी सैन्य मौजूदगी, दमन और मौलिक अधिकारों के हनन के साथ आए हैं।

रामकृष्ण और नंदिनी सुंदर के मुताबिक कश्मीरियों ने अपना आक्रोश और असंतोष का इजहार करने के लिए गांधीवादी शैली को चुना है। इसी तरह शोपियां फल मंडी पूरी तरह से बंद कर दी गई है और यहां तक कि बाहर ट्रक भी खड़े नहीं हैं। एक फल उत्पादक ने कहा कि अगर हजरात ने आजादी पाने में मदद की तो वह लाखों का नुकसान करने के लिए तैयार हैं। इस बीच तकनीकी तौर पर स्कूल खुल रहे हैं, लेकिन कोई भी बच्चा स्कूल नहीं जा रहा है। शिक्षक दिनभर में केवल एक दो घंटे और कभी-कभी सप्ताह में 2-3 बार अपनी हाजिरी दर्ज कराते हैं।

सौरा (श्रीनगर) की एक छह वर्षीय लड़की ने कहा कि उसे स्कूल जाने से डर लगता है, क्योंकि पुलिस वाले अंकल गोली मारेंगे। अभिभावक भी बिना मोबाइल फोन के तैनात भारी सेना के बीच अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते हैं...गांवों की स्कूलें बंद हैं। इलाके के लोग डरते हैं कि बाहर कुछ घटना हो सकती है।

रामकृष्ण और नंदिनी सुंदर ने रिपोर्ट में बताया कि लोग जबकि भारत सरकार से नफरत करते हैं, लेकिन वह हम आम भारतीयों का खूब आतिथ्य सत्कार करते हैं। उन्हें आम भारतीयों से कोई समस्या नहीं है, अगर वह मीडिया से नहीं है।

पांच अगस्त के बाद से कश्मीरियों की बढ़ती समस्याओं को लेकर मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर अनिरुद्ध काला और ब्रिनेल डिसूजा, लेखक रेवती लुल और सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी के द्वारा एक रिपोर्ट तैयार की गई। इसमें वे लिखते हैं कि ‘कश्मीर में ऐसे डर से भरा हुआ है जैसे सर्पिल घाटी चारों ओर से कांटेदार तारों से बंधी हो। यातना, गिरफ्तारी और यहां तक कि यातनापूर्ण सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत युवकों को हिरासत की भी कहानियां हैं।

काला एत अल की एक 70 पन्नों की एक विस्तृत रिपोर्ट है जिसमें आम कश्मीरियों की ओर से दी गई प्रतिक्रियाओं को प्रकाशित किया गया है। कुछ उदाहरण प्रकाशित इस प्रकार हैं-

''टीवी का भगवाकरण हो गया है। यह बकवास है कि वे जनता के सामने आ रहे हैं।''

"क्या आप एक घंटे के लिए भी फोन के बिना रह सकते हैं?"

''वे हमें फिजिकली वश में कर सकते हैं लेकिन मानसिक रूप से नहीं कर सकते।''

''विश्वास की कमी, धोखा और अपमान की भावना है। पांच अगस्त से पहले भारत समर्थक भावना मजबूत थी। हम कहते थे पाकिस्तान एक लोकतांत्रिक देश नहीं वहां कोई धर्मनिरपेक्षता नहीं है।''

''बीच का मैदान हमेशा के लिए खो गया है। आजादी समर्थक और पाकिस्तान समर्थक भावना वास्तव में बहुत ज्यादा नहीं थी लेकिन आज लोग आजादी के बारे में बात कर रहे हैं।''

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स समूह ने जम्मू का भी दौरा किया, जहां उन्होंने पाया कि सरकार के इस निर्णय से लोगों का शुरुआती उत्साह गायब हो चुका था। इससे भयानक हालात स्पष्ट हो गए हैं। जम्मू और कश्मीर की अर्थव्यवस्था हमेशा एक दूसरे से जुड़ी हुईं थी। इन दोनों क्षेत्रों के बीच व्यापार, यात्रा, पर्यटन और परिवहन के क्षेत्र में नुकसान हुआ है। इससे जम्मू के निवासी भी खुद को कटा हुआ महसूस कर रहे हैं। थोक बाजार - मंडी में आमतौर पर इतनी भीड़ होती थी कि खड़े होने की जगह नहीं होती। लेकिन अब यह उजाड़ है। खाली हैं।

न रिपोर्ट्स को व्यापक रुप से पढ़ा जाना जरुरी है, क्योंकि ये बताती हैं कि अनुच्छेद 370 को बेअसर किए जाने का कितना बुरा असर पढ़ा है। इसने देश के बाकी हिस्सों से कश्मीरियों को अलग-थलग कर दिया, हमारे सुरक्षा बलों पर अनावश्यक बोझ डाल दिया। विदेशी मीडिया में भी भारत के खिलाफ प्रचार हो रहा है। इसने आर्थिक और संस्थागत नवीनीकरण से ध्यान हटा दिया है, जो भविष्य के लिए बेहद जरुरी है। कश्मीरियों को रिझाने के लिए सरकार केवल नुकसान पहुंचाने में सफल रही है।

( चर्चित इतिहासकार रामचंद्र गुहा का यह आलेख 'द टेलीग्राफ' में पूर्व में प्रकाशित किया जा चुका है।

संदर्भ: 1- http://nandinisundar.blogspot.com/2019/10/go-back-to-india-and-cover-every-statue.html

2- http://sanhati.com/articles/19333/

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