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समाज

कश्मीर में प्रताड़ना की नई कहानियां : 'उल्टी और पेशाब निकलने तक सेना के जवानों ने मेरी आंत में घूंसे मारे'

Prema Negi
23 Oct 2019 11:37 AM GMT
कश्मीर में प्रताड़ना की नई कहानियां : उल्टी और पेशाब निकलने तक सेना के जवानों ने मेरी आंत में घूंसे मारे
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सेना के जवानों ने 26 वर्षीय आबिद खान के हाथों और एड़ियों को रस्सी से बाँध दिया, और एक पोल से लटका कर चार सैनिकों ने उसके कूल्हों और पीठ पर बल्ले से वार किया। खान कहते हैं, “मैं दर्द में तड़प रहा था, और मेरी कलाईयाँ और एड़ियाँ नीली पड़ गयीं थी। हर पिटाई के बाद चोट के निशान और बदतर होते जाते...

हिलाल मीर और मुहम्मद राफी

वीडियो रिकॉर्ड किए गए साक्षात्कारों में पीड़ितों ने यह आरोप लगाया है कि भारतीय सेना ने उन्हें बहुत शारीरिक पीड़ा दी और उन पर मानसिक दबाव बनाया।

"अगर वे वीडियो को प्रसारित करते हैं और वीडियो वायरल हो जाता है, तब क्या होगा?" यह डर अक्सर आबिद खान को आत्महत्या जैसे विचारों की ओर धकेलता है। आबिद क़रीब एक महीने से अपने परिवार द्वारा उनकी व्यापक चिकित्सा और मानसिक जाँच करवाने हेतु दिये जा रहे ज़ोर को टाल रहा है।

26 साल के खान ने बताया कि 13 अगस्त की रात को भारतीय सेना के जवानों ने उन्हें एक कैंप में ले जाकर प्रताड़ित किया और इसके कुछ हिस्सों की फ़िल्म भी बनाई। बिजली के झटके दिए जाने के बाद वह बेहोश हो गया था। उन्हें यह बात चिंतित करती है कि बेहोशी की हालत में उसके साथ क्या हुआ होगा।

“अगर उन्होंने बे-सत्री की होगी और उसे फिल्माया होगा, तब क्या होगा? ऐसे में तो मर जाना बेहतर है,” आबिद ने कहा। कश्मीरी शब्द 'बे-सत्री' यौन हिंसा के विभिन्न रूपों को परिभाषित करता है।

न्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से लगभग 65 किलोमीटर दक्षिण में शोपियाँ के हीरपोरा गाँव में एक अधिकारी के नेतृत्व में सैनिक उनके घर में घुस गए थे। सेना के कई वाहन घर के बाहर इंतज़ार कर रहे थे। कुछ सैनिकों ने उसके सबसे छोटे भाई सुहैल को पकड़ लिया और उसे एक यंत्र की मदद से सीने में बिजली के झटके दिए।” आबिद ने कहा।

बिद कहते हैं, “सुहैल आँगन में बेहोश हो गया और उसे छोड़ दिया गया। सैनिकों ने मुझे एक वाहन में धकेल दिया और मेरी आंखों पर पट्टी बांधकर कैंप में ले गए।”

बिद के घर से क़रीब 8 किलोमीटर दूर, चौगाम में स्तिथ 66 राष्ट्रीय राइफल्स बी कंपनी नामक कैंप में, आबिद को नंगा कर, वॉटरबोर्डिंग की गई (मुंहपर कपड़ा देकर पानी डालकर डुबोने की टॉर्चर प्रक्रिया) और उसे एक ‘भयानक बदबूदार’ पानी अत्यधिक मात्रा में पीने के लिए मजबूर किया गया।

"उल्टी और पेशाब निकलने तक उन्होंने मेरी आंत में घूँसे मारे" उसने कहा।

खान ने बताया कि उसके हाथों और एड़ियों को रस्सी से बाँध दिया गया, और एक पोल से लटका कर चार सैनिकों ने उसके कूल्हों और पीठ पर बल्ले से वार किया।

आबिद खान को उलटा लटकाकर उनके कूल्हों पर वार किया गया था। यह निशान उस टॉर्चर की पुष्टि करते है (क्रेडिट- एएफपी)

“मैं दर्द में तड़प रहा था, और मेरी कलाईयाँ और एड़ियाँ नीली पड़ गयीं थी। हर पिटाई के बाद चोट के निशान और बदतर होते जाते।” उसने कहा।

पिटाई के 32 दिन बाद भी उसके कूल्हों पर बल्ले के हल्के निशान दिखाई देते हैं। खान ने इन संवाददाताओं को अपने सूजे हुए और काले पड़े कूल्हों का एक वीडियो दिखाया जिसे उसके परिवार के सदस्यों ने प्रताड़ना के बाद फिल्माया था।

“उन्होंने मुझे पानी में डुबाकर कई बार बिजली का झटका दिया। एक समय ऐसा आया जब मैं और नहीं सह सका और मुझे बेहोशी का नाटक करना पड़ा। उस वक़्त बिजली के एक और झटके ने मुझे चौंका दिया और मैं मौत की प्रार्थना करने लगा। कुछ ही समय बाद मैं बेहोश हो गया,” खान ने कहा।

बिद ने बताया कि हर थोड़ी देर में उसके साथ और बदतर होता था।

“जब मुझे होश आया, तो उन्होंने छड़ी से मेरे गुप्तांगों पर मारा।”

"एक अधिकारी ने मुझसे कहा ‘मैं तुम्हारी ज़िंदगी अभी ख़तम कर दूँगा।’"

"वह गर्म लोहे की रॉड मेरे लिंग के क़रीब लाया, मगर छुआ नहीं। उसके साथी ने उससे कहा 'ऐसा मत करो। उसने हाल ही में शादी की है। और आख़िर उसकी पत्नी हमारी बहन जैसी ही है।’" उन्होंने मेरे जननांग के पास की खाल को चिमटे से खींचा, इतना कि अभी तक पेशाब करने में तकलीफ़ होती है। जब मेरे पूरा शरीर नीला पड़ गया था तो उन्होंने मेरी चोटों पर नमक रगड़ा था। ये पर्वत मेरे प्रताड़ना की साक्षी हैं। उन्होंने मेरी चीखें सुनी हैं।” उसने कहा।

खान ने कहा कि प्रताड़ना शुरू करने से पहले सेना के एक अधिकारी ने उसे बताया कि उसने रियाज़ नाइकू, जो कि कश्मीर का मोस्ट वांटेड विद्रोही कमांडर है, को जुलाई में अपनी शादी में आमंत्रित किया था। इस अधिकारी ने उस पर यह आरोप लगाया कि उसने अपने घर में आतंकवादियों के छुपने के लिए एक ठिकाना बनाया है, जो कि आठ एकड़ के सेब के बाग के बीच में स्थित है।

"मैंने उनसे कहा कि वे मेरे घर को उजाड़ कर देख लें और अगर उन्हें छिपने की जगह मिलती है तो वह पूरी जगह को आग लगा सकते हैं। लेकिन अगर कुछ नहीं मिलता है तो वह मुझे एक नया घर बना कर दें। सेना के मेजर को बहुत ग़ुस्सा आ गया। वो चाहता था कि मैं कुछ भी कबूल कर लूँ,” खान ने कहा।

“उसने मुझे यह कबूलने को कहा कि मेरे पड़ोसी पीर सज्जाद के घर में नवीद बाबा [एक मिलिटेंट] छुपा है। मैंने उससे कहा कि मैं क्यों किसी व्यक्ति पर ग़लत आरोप लगाऊँगा वो भी जिसके बारे में मुझे कुछ नहीं पता है? "

खान ने कहा कि 13 अगस्त को उसे सेना के चिकित्सा केंद्र में ले जाया गया जहाँ उसे कई इंजेक्शन दिए गए जिससे "दर्द गायब हो गया और मुझे हल्का महसूस हुआ।"

"मैं अपने चोटिल कूल्हों पर बैठ पा रहा था।" उसने कहा।

दो "दयालु सिख मेडिक्स" ने उसे कैंप के दरवाज़े तक पहुँचाया। खान को शाम में रिहा किया गया और उसके परिवार के सदस्य पूरा दिन बाहर उसका इंतजार कर रहे थे। उसने कहा कि उस अधिकारी ने उसे यह धमकी दी कि अगर वह किसी भी डॉक्टर के पास गया या उसने पुलिस में शिकायत दर्ज करी तो उसके परिवार के सभी सदस्यों को हिरासत में ले लिया जाएगा। उसने बताया कि उसकी पत्नी, पिता, भाई और ग्राम प्रधान को कुछ कागजात पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया था।

घर पर, उसे रुक-रुक कर उल्टियां होने लगीं और दर्द वापस शुरू हो गया।

“मैंने अपने परिवार से कहा कि हमें अस्पताल जाना चाहिए। पहले तो वे नहीं माने, लेकिन जब दर्द असहनीय हो गया तो हम रात के 1 बजे श्रीनगर के एसएमएचएस अस्पताल गए ताकि कोई भी हमें बाहर जाते हुए नहीं देख सके,” उसने कहा।

सके अस्पताल के मेडिकल रिकॉर्ड बताते हैं : "सुरक्षा बलों द्वारा किये गए हमले के कारण आघात"। उसके कुल्हे सूज कर नीले पड़ गए थे। 10 दिनों तक चले उपचार के बाद, एक परिचित ने उसे अस्पताल से चले जाने की सलाह दी, ताकि वह आपराधिक जाँच विभाग (सीआईडी) के कर्मियों की नज़रों से बच सके।

“अगर हम रुकते तो शायद पुलिस एफआईआर [आपराधिक जाँच के लिए एक रिपोर्ट] दर्ज कर देती। हम बहुत डरे हुए हैं,” खान ने कहा।

आबिद खान की मेडिकल रिपोर्ट जिसमें लिखा है "सुरक्षा बलों द्वारा किये गए हमले के कारण आघात"। आबिद को 10 दिन तक उल्टियां होती रही। वह 20 दिन बाद ही चल पाए (क्रेडिट- टीआरटी वर्ल्ड)

15,000 की आबादी वाले एक खूबसूरत गाँव, हिरपोरा में, अपने ही एक गाँव वाले के साथ हुए हिंसक प्रताड़ना ने सभी को बहुत परेशान कर दिया। वे कहते हैं कि 30 साल के विद्रोह में कभी भी किसी व्यक्ति के साथ इतना क्रूर व्यवहार नहीं किया गया था। यहाँ तक कि अगर लड़कों को आज़ादी-समर्थक विरोध प्रदर्शनों या पत्थरबाज़ी की घटनाओं में भाग लेने के लिए हिरासत में लिया भी जाता था तो उन्हें जल्द ही रिहा कर दिया जाता था।

स्थानीय लोगों का कहना है कि उसी कैंप में और चार युवकों को हिरासत में लेकर पीटा गया। हालाँकि उन्हें रिहा कर दिया गया है, लेकिन उनमें से कोई भी उस समय गाँव में मौजूद नहीं था जब ये पत्रकार उनके घरों में गए। उनमें से एक की भाभी ने कहा कि उसे भी बिजली के झटके दिए गए थे और डंडे से पीटा गया था लेकिन "आबिद की तरह गंभीर नहीं"।

टीआरटी वर्ल्ड ने इन आरोपों पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए भारतीय सेना के जनसंपर्क अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल देवेंद्र आनंद से संपर्क करने की कोशिश की। कर्नल आनंद को न तो टेलीफोन के माध्यम से पहुँचा जा सका और न ही उन्होंने ईमेल द्वारा भेजे गए प्रश्नों का जवाब दिया।

पिछले 30 वर्षों में भारतीय सैनिकों द्वारा कश्मीर में कथित प्रताड़नाओं पर आधारित मीडिया रिपोर्टों को स्थानीय और विदेशी मीडिया में नियमित रूप से प्रकाशित किया गया है।

ई स्थानीय और स्वतंत्र जाँचों ने प्रताड़ना सहने वालों की कहानियों को प्रकाशित किया है, जिसमें कई कश्मीरी पुरुषों और किशोरों को प्रताड़ित करने के लिए भारतीय सुरक्षा बलों को ज़िम्मेदार ठहराया गया है।

ससे पहले दो स्थानीय मानवाधिकार समूहों, एसोसिएशन ऑफ पेरेंट्स ऑफ डिसएपर्ड पर्सन्स (एपीडीपी) और जम्मू एंड कश्मीर कोएलिशन ऑफ सिविल सोसाइटी (जेकेसीसीएस), ने कश्मीरी क़ैदियों के साथ हुए दुर्व्यवहार और प्रताड़ना- जिसमें नींद से वंचित रखना, यौन उत्पीड़न और वॉटरबोर्डिंग (चेहरे पर कपड़ा डाल कर पानी फेंकना शामिल थे)- पर एक व्यापक रिपोर्ट जारी की थी।

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार संस्था ने पिछले साल कश्मीर पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की और विभिन्न अधिकारों के उल्लंघनों की अंतरराष्ट्रीय जाँच का आह्वान करा, लेकिन भारत ने सभी आरोपों को नकार दिया- चाहे वह पेलेट बन्दूक का इस्तेमाल हो या यौन हिंसा के लिए दंड-मुक्ति।

5 अगस्त को जब भारत सरकार ने क्षेत्र की स्वायत्तता छीन ली तब से कई गांवों में लोगों ने सेना पर रात के दौरान ‘आतंकी छापे’ मारने, घरों में सामान तोड़ने, युवकों को हिरासत में रखने और प्रताड़ित करने का आरोप लगाया है। दक्षिणी क्षेत्रों में जहाँ पिछले पांच वर्षों के दौरान सशस्त्र बग़ावत सबसे अधिक विद्रोही रहा है, वहाँ संवाद-दाताओं ने कई लोगों से बात की जिन्होंने बताया कि छापेमारी भारत विरोधी प्रदर्शनों को रोकने के उद्देश्य से की जा रही हैं।

सी ही एक छापेमारी 7 अगस्त को आधी रात में शोपियाँ के बागंदर इलाके में स्थित इदरीस मलिक के घर पर हुई। छापेमारी चौगाम के उसी 66 आरआर कैंप के जवानों ने की। मलिक बताते हैं कि कैंप में उसे बताया गया है कि ‘आपका पड़ोसी’, जो कि एक मिलिटेंट है, घायल हो गया है।

लिक ने कहा, "उन्होंने पूछा कि ‘उसे कौन दवा ले कर दे रहा है?"

"मुझे कैसे पता होगा? उन्होंने पूरी रात मुझे लाठियों से पीटा और बिजली के झटके दिए। मेरे हाथों और एड़ियों को रस्सी से बंधे कर एक डंडे से उल्टा लटका दिया। मेरा चेहरा कपड़े से ढककर उस पर कई बाल्टी पानी फेंका। एक समय मुझे इतनी ठण्ड लगने लगी कि लगा मेरा खून जम जाएगा”, उसने कहा।

"सुबह में मुझे डराने के लिए कुत्तों को लाया गया। मुझे खुले में सूरज को घूरने के लिए खड़ा किया गया। मेरा मुँह सूख गया था और जब मैंने पानी माँगा तो उन्होंने मेरे मुँह में एक छड़ी डाली और कहा कि इसे मुँह में ही रखना है।”

27 वर्षीय कुरियर कर्मी ने कहा कि उसे ‘घटनाओं’ के बारे में मुख़बीरी करने के लिए कहा गया, जिससे उनका मतलब था उसके इलाके में मिलिटेंटों की गतिविधियों या पत्थरबाज़ों के बारे में।

सने बताया, “मैंने उन्हें कहा कि मैं दोनों पक्षों से डरता हूँ, पर जब मैं पिटाई से तंग आ गया तो मैंने उन्हें कह दिया कि हाँ, हम सभी मिलिटेंट हैं, मेरे पिता एक मिलिटेंट हैं।” अगले दिन चिकित्सक द्वारा दर्द कम करने की सुई देने के बाद, उसे रिहा कर दिया। उसे कुछ दवाइयाँ दी गयीं और उसके घावों पर मलहम लगाया गया।

सके एड़ियों पर लगी चोटें अभी पूरी तरह से ठीक नहीं हुई हैं। उसने बताया कि घुटने के निचले तरफ जो छोटे काले धब्बे हैं वहाँ उसे बिजली के झटके दिए गए थे। 8 अगस्त के उसके मेडिकल रिकॉर्ड में अन्य बातों के अलावा ये भी लिखा था, ‘कूल्हों पर कई बार चोट लगी।’

स्थानीय पुलिस, जो कानून और व्यवस्था बनाए रखने का काम करती है, को इन कामों में दरकिनार कर दिया गया है। क़रीब 15 दिन पहले शोपियाँ जिले के बेहीबाग इलाके में, सेना ने पाँच युवकों के घरों पर छापा मारा और उन्हें हिरासत में लिया गया। हिरासत में लिए गए 22 वर्षीय समीर अहमद शाह के घर जब संवाददाता पहुँचे तो वो घर पर नहीं था। उसकी माँ दिलशादा ने कहा कि जब उसने और उसकी बेटी ने समीर को हिरासत में लिए जाने से रोकने की कोशिश की तो सैनिकों ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया। पिटाई के बाद अगले दिन सभी पाँचो युवकों को छोड़ दिया गया। सेना के कैंप और शाह के छोटे से घर के बीच केवल एक तार की बाड़ है।

"अगर इन लड़कों ने कुछ भी गलत किया होता तो पुलिस इन्हें थाने बुलवा सकती थी। रात में घरों पर छापा मारना कुछ अलग संकेत देते है," एक बुजुर्ग ग्रामीण ने बताया, इस शर्त पर की उसका नाम नहीं लिया जाए।

5 अगस्त को जब कश्मीर से विशेष कानून हटाया गया, तब पहले से ही कश्मीर में तैनात 40,000 सैनिकों के ऊपर और हज़ारों अर्धसैनिक बलों को भेजा गया। 40x80 मील की कश्मीर घाटी में दर्जनों कैंप में स्थायी रूप से तैनात हज़ारों सैनिकों के आलावा इन अर्धसैनिक वालों को रखा गया है।

ह अर्धसैनिक बल, जो श्रीनगर और अन्य जगहों में हर छोटी सड़क पर पहरा देते हैं, शोपियाँ और पुलवामा के बाकी दक्षिणी जिलों में सड़कों पर तैनात नहीं दिखते। स्थानीय निवासियों के अनुसार, यदि दिन में किसी समय भी विरोध होता है तो सेना की स्थानीय इकाइयाँ बेहिबाग की तरह छापेमारी करती हैं।

"अगर कोई विरोध नहीं भी होता है, तो भी वे डर पैदा करने के लिए लड़कों को बंदी बनाकर प्रताड़ित करते हैं," गागलौरा गाँव के एक व्यक्ति ने कहा, यह अनुरोध करते हुए कि उसकी पहचान उसके मध्य नाम, अहमद, से ही हो। उसने अपने गाँव के ओबैद अशरफ खान का उदाहरण दिया, जिसे कथित रूप से सेना द्वारा पाहनू इलाके में एक कैंप में प्रताड़ित किया गया था।

बैद के पिता मुहम्मद अशरफ ने कहा कि 26 अगस्त की रात को सैनिकों ने उनके घर पर छापा मारा और उनके बेटे का आईडी कार्ड छीन लिया, और उसे अगले दिन कैंप में उपस्थित होने को कहा।

शरफ और एक पड़ोसी, जो ओबैद के साथ कैंप गए थे, उन्हें बैठाया गया और चाय पिलाई गई, जबकि ओबैद को एक कमरे में ले गए जहाँ, ओबैद ने बताया, अँधेरा था।

27 वर्षीय इदरीस मलिक जिसको दक्षिण कश्मीर के शोपियाँ के एक गांव से उठाकर टॉर्चर किया गया था (क्रेडिट - अतुल लोके/न्यूयॉर्क टाइम्स)

“मुझे लाठी और बंदूक से कूल्हों पर बहुत लंबे समय तक पीटा गया। गर्दन से लेकर पैर तक मेरे शरीर का कोई भी हिस्सा नहीं बख्शा। उन्होंने मेरे चेहरे और सिर पर मुक्के मारे। मेरी कलाई और एड़ियों को बाँधकर मुझे बिजली के झटके दिए गए।” ओबैद ने कहा।

शरफ ने कहा कि उसका बेटा "लगभग मर चुका था" जब उन्होंने उसे छोड़ा।

“हम उसे शोपियाँ के उपजिला अस्पताल ले गए। डॉक्टरों ने कहा कि उस पर बहुत दबाव है, उसके पिता ने कहा और साथ ही बताया कि सेना ने ओबैद के आईडी कार्ड को जब्त कर लिया है, और उसे अपने क्षेत्र में पत्थरबाज़ों और मिलिटेंटों से सहानुभूति रखने वालों की सूची उपलब्ध कराने को कहा है।

“जिस दिन वह हिरासत में गया था, तब से वह सो नहीं पा रहा है। वाहनों की आवाज़ से उसे डर लगता है। उसे डर है कि वे फिर उसको ले जाएँगे। ये तो नरक से भी बदत्तर स्थिति है,” अशरफ ने कहा।

शोपियाँ के पिंजौर गाँव के एक 21 वर्षीय पुरुष ने कहा कि उसका आईडी कार्ड भी 8 अगस्त की रात को हुई छापेमारी में ले लिया गया था और उसे अगले दिन पाहनू कैंप में रिपोर्ट करने के लिए कहा गया था। कैंप में सैनिकों ने उसे नंगा कर, डंडे से बाँधकर उसकी पिटाई की।

"ब्लेड से उन्होंने मेरे पैरों पर ज़ख्म किए। मेजर ने मुझे उनका मुखबिर बनने और उमर धोबी और शाकिर पाल [दोनों मिलिटेंट] के बारे में जानकारी देने को कहा। मैंने उनसे कहा कि मुझे उनके बारे में कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा, “तुम्हारे पास कोई अन्य विकल्प नहीं है।”

(हिलाल मीर और मुहम्मद राफी की यह रिपोर्ट 17 सितम्बर 2019 को टीआरटी वर्ल्ड पर छपी थी। इसका अनुवाद कश्मीर ख़बर के लिए कल्याणी ने किया है।)

मूल लेख -India's torture methods: new claims emerge from disputed Kashmir

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