पुरातत्व विभाग ने भी कह दिया ताजमहल कभी नहीं था मंदिर

Update: 2017-08-28 10:58 GMT

लंबे समय से ताजमहल मंदिर है या मस्जिद इस बात को लेकर बहस छिड़ी हुई थी, मगर अब यह साफ हो गया है कि यह हमेशा से एक मकबरा रहा है, इसका हिंदू धर्म से दूर—दूर तक कोई सरोकार नहीं रहा है...

आगरा। ‘ताजमहल एक इस्लामिक ढांचा है, जबकि अपील करने वाले दूसरे धर्म के हैं। स्मारक पर कोई भी धार्मिक गतिविधि पहले कभी नहीं हुई थी।’ यह बात भारतीय पुरातत्व विभाग (एएसआई) ने कोर्ट में दाखिल किए अपने जवाब में कह दी है।

आगरा कोर्ट में को अपनी रिपोर्ट सौंपते हुए 26 अगस्त को भारतीय पुरातत्व विभाग ने कहा कि ताजमहल मंदिर नहीं है, बल्कि मुमताज की याद में बनाया गया मकबरा है। पुरातत्व विभाग ने इस बात का साफतौर पर खंडन किया कि ताजमहल कभी शिव मंदिर था।

ताजमहल मंदिर है, यह बात हिंदूवादी संगठन लंबे समय से कहते आ रहे हैं। लखनऊ के गोमतीनगर निवासी अधिवक्ता हरिशंकर जैन और उनके पांच अन्य साथियों ने ताजमहल के मंदिर होने को लेकर अप्रैल 2015 में कोर्ट में एक याचिका दायर कर थी, जिसमें याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि ताजमहल मकबरा नहीं मंदिर है।

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि ताजमहल के स्थान पर शिव मंदिर था जिसे तेजो महालय के नाम से जाना जाता था। आश्चर्य की बात यह है कि इस याचिका में याचिकाकर्ताओं ने भारत सरकार और केंद्रीय पुरातत्व विभाग को अपना पक्षकार बनाया था।

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि वर्ष 1212 में परमार्दी देव राजा ने तेजो महल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था, जिसके बाद मंदिर जयपुर के राजा मानसिंह के अधिकार में आया। बाद में यह मंदिर मानसिंह के पौत्र राजा जयसिंह के अधिकार में था और 1628 में शाहजहां ने मंदिर पर कब्‍जा कर लिया। इसके बाद शाहजहां ने मंदिर के ऊपर इमारत खड़ी कर दी और इसे ताजमहल का नाम दे दिया।

इसी को आधार बनाकर याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से मांग की थी कि ताजमहल परिसर के अंदर हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत दी जाए। इस याचिका पर कोर्ट ने केंद्र सरकार, केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय, गृह सचिव और एएसआई से जवाब तलब किया था।

अब जब भारतीय पुरातत्व विभाग ने स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि यहां पर हमेशा से मकबरा ही रहा है तो याचिकाकर्ताओं ने पुरातत्व विभाग को ही कटघरे में कर दिया है और कहा है कि विभाग का यह जवाब अधूरा है। साथ ही इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने अगली सुनवार्इ् के लिए कोर्ट से वक्त मांगा है। अब इस मामले की अगली 11 सितम्बर को होनी है।

वहीं दूसरी तरफ केंद्रीय पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने कहा है कि ताजमहल को संरक्षित रखने से जुड़े 1920 के एक नोटिफिकेशन के आधार पर अदालत में हलफनामा पेश किया गया है। इससे पहले केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने नवंबर 2015 में लोकसभा में साफ किया था कि ताजमहल की जगह पर मंदिर होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं।

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