अयोध्या भूमि विवाद में मुस्लिम पक्ष ने कहा मंदिर तोड़कर नहीं बनाई गई थी बाबरी मस्जिद
मुस्लिम पक्ष के वकील ने कहा, रामचरित मानस और रामायण में कहीं विशिष्ट तौर पर राम जन्मस्थान का नहीं है कोई जिक्र, वर्ष 1949 से पहले मध्य गुंबद के नीचे रामजन्म, पूजा का नहीं मिलता है कोई अस्तित्व या सबूत...
जेपी सिंह की रिपोर्ट
अयोध्या भूमि विवाद मामले पर मंगलवार 24 सितंबर को उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के समक्ष 30वें दिन हुई सुनवाई में मुस्लिम पक्ष ने दावा किया कि बाबर ने बाबरी मस्जिद को किसी मंदिर को तोड़कर नहीं बनाया था। मुस्लिम पक्ष के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा कि मस्जिद का निर्माण अयोध्या में खाली जगह पर करवाया गया था, न कि किसी मंदिर को तोड़कर।
यह जवाब जफरयाब जिलानी ने जस्टिस बोबडे के एक सवाल के तौर पर दिया। जस्टिस बोबडे ने पूछा था कि बाबर ने इस मस्जिद का निर्माण मंदिर तोड़कर करवाया था या खाली जगह पर। जिलानी ने कहा कि बाबरी मस्जिद का निर्माण किसी मंदिर को तोड़कर नहीं कराया गया था।
जिलानी ने कहा कि रामचरित मानस की रचना मस्जिद बनने के करीब 70 साल बाद हुई, लेकिन कहीं ये जिक्र नहीं कि राम जन्मस्थान वहां है, जहां मस्जिद है। यानी जन्मस्थान को लेकर हिंदुओं की आस्था भी बाद में बदल गई। एक गवाह ने भी बताया कि कवितावली और अन्य ग्रन्थों में भी रामजन्म अयोध्या या अवधपुरी या साकेत का जिक्र है, पर विशिष्ट जन्मस्थान का नहीं। गवाह भी वशिष्ठ कुंड, लोमश कुंड, विध्नेश्वर गणेश और पिण्डारक से विवादित स्थल की दूरी और दिशा के बारे में कुछ नहीं बता पाए। वाल्मीकि रामायण में भी कोई विशिष्ट स्थान नहीं बताया गया।
जिलानी ने कहा कि हिंदू 1886 में पूजा का अधिकार मिलने के बाद ही मंदिर बनाना चाहते थे, लेकिन कोर्ट से इजाजत नहीं मिली। उन्होंने कहा कि एक गवाह ने दशरथ महल में रामजन्म होने का जिक्र किया, लेकिन महल की स्थिति का पता नहीं है। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि गवाहों ने शास्त्रों का हवाला देते हुए सीताकूप के अग्निकोण में 200 कदम दूर राम का जन्मस्थान बताया गया है।
जिलानी ने नक्शा बताते हुए कहा कि जन्मस्थान और सीता कूप के उत्तर दक्षिण का भी ज़िक्र किया गया है, लेकिन इसमें जन्मस्थान मन्दिर को माना जा रहा है। फिर हिंदुओं ने अपना विश्वास बदल दिया और दोनों जगहों पर दावा करने लगे।
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जिलानी ने गवाह के बयान का हवाला देते हुए कहा कि सुमित्रा भवन, कौशल्या भवन और कैकई भवन का रामचरितमानस में जिक्र नहीं है। राजा टोडरमल गोस्वामी तुलसीदास के मित्र थे, लेकिन तुलसीदास ने इसका जिक्र रामचरित मानस में नहीं किया है। जिलानी ने कहा कि 1886 के फैसले में भी यही कहा गया है कि चबूतरा ही जन्मस्थान है, लेकिन बाद में हिंदू पक्ष की ओर से आंतरिक अहाते और गुंबद पर दावा किया जाने लगा।
जस्टिस बोबड़े ने इस पर पूछा कि आप मानते हैं कि इस फैसले को चुनौती नहीं दी गई? जिलानी ने जवाब दिया कि हमने इस पर चुनौती नहीं दी, बाद में कई याचिका शामिल हुई।
जिलानी ने रामानंदचार्य, रामभद्राचार्य का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि मानस टीका में अवधपुरी का भी जिक्र है, किसी स्थान का नहीं। दोहा शतक के सबूत को जफरयाब जिलानी ने खारिज करते हुए कहा कि इसके तुलसीकृत होने का सबूत नहीं दिया गया है। उन्होंने कहा कि स्कन्दपुराण के अयोध्या खण्ड में राम जन्मस्थान को लेकर चौहदी और दूरी का ज़िक्र है, लेकिन अब वो जगह नहीं मिल रही जिसका जिक्र पुराण में है।
इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि अयोध्या में रामजन्म को लेकर आपका विवाद नहीं है, सिर्फ जन्मस्थान को लेकर है? इस पर जिलानी ने कहा कि जी हां। इसके आगे जस्टिस बोबड़े ने पूछा कि आप रामचबूतरे को रामजन्म स्थान मानते हैं? इस पर जिलानी की ओर से हां में जवाब दिया गया। जिलानी ने कहा कि पहले सभी यही मानते थे, स्कंदपुराण में जन्मस्थान का जिक्र है, लेकिन अब वह अस्तित्व में नहीं है। उन्होंने कहा कि 1886 में जिला जज ने भी अपने फैसले में रामचबूतरा को जन्मस्थान मानते हुए वहां पूजा करने की इजाज़त दी थी।
जिलानी ने कहा कि जन्मस्थल पर रामजन्म को लेकर विश्वास तो है, लेकिन सबूत कोई नहीं है। उन्होंने कहा कि दलीलों पर तीन आधार दिए गए हैं, रामचरित मानस, वाल्मिकी रामायण भी इनमें शामिल हैं। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं को साबित करना है कि कौन-कौन सी किताबों में इनका जिक्र किया गया है। जिलानी ने दावा किया कि रामचरित मानस और रामायण में कहीं विशिष्ट तौर पर राम जन्मस्थान का कोई जिक्र नहीं है।
वर्ष 1949 से पहले मध्य गुंबद के नीचे रामजन्म, पूजा का कोई अस्तित्व या सबूत नहीं मिलता है। इस पर जस्टिस बोबड़े ने जिलानी से पूछा कि क्या आप ये सबूत भी देंगे कि 1949 से पहले वहां नियमित नमाज़ होती थी? जिस पर जिलानी ने कहा कि सबूत जुबानी हैं लेकिन लिखित नहीं है। इस पर जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि हिंदू पक्ष की दलील में भी रामायण, रामचरित मानस में अयोध्या में दशरथ महल में राम के जन्म का जिक्र है, हालांकि स्थान का कोई जिक्र नहीं है।
मुस्लिम पक्ष के राजीव धवन ने कहा कि महज विश्वास के आधार पर यह स्पष्ट नहीं होता कि अयोध्या में मंदिर था। भारत में यह फैलाना आसान है कि किसी देवता का अमुक स्थान है। धवन ने याचिकाकर्ता गोपाल सिंह विशारद द्वारा दाखिल याचिका पर कहा कि विशारद कहते हैं हिंदू 1950 से पहले से पूजा कर रहे थे, लेकिन मुस्लिम पक्ष की शिकायत पर तत्कालीन डीएम केके नायर ने पूजा करने से रोक दिया था। मैं मानता हूं कि भारत में पूजा की कई मान्यताएं हैं। कामाख्या समेत देवी सती के अंग जहां गिरे, वहां मंदिर हैं।’
इस पर जस्टिस बोबडे ने कहा कि ऐसा मंदिर पाकिस्तान में भी है। धवन ने कहा कि अयोध्या में रेलिंग के पास जाकर पूजा किए जाने से उसे मंदिर नहीं मानना चाहिए।