मीडिया में फैली खबर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने केस वापस लेने के लिए कोर्ट में दायर किया हलफनामा, तो मुस्लिम पक्ष बोला कोरी अफवाह
मीडिया में आई खबर कि हलफनामे में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट से कहा केस लेना चाहता है वापस, यह हलफनामा श्रीराम पंचू की ओर से सुप्रीम कोर्ट में किया गया है दाखिल, मगर मुस्लिम पक्षकारों ने कहा यह है कोरी अफवाह, कोई नहीं चाहता केस वापस लेना...
जेपी सिंह की रिपोर्ट
जनज्वार। दशकों से चले आ रहे राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में आज 16 अक्टूबर को एक नया मोड़ तब आ गया जब मीडिया में खबर फैली कि उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने इस मामले में दायर केस को वापस लेने का फैसला किया है। खबर आई कि वक्फ बोर्ड ने मध्यस्थता पैनल के जरिये इस बाबत सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया है। गौरतलब है कि अयोध्या भूमि विवाद मामले में कुल छह मुस्लिम पक्षकार हैं, जिनमें से सुन्नी वक्फ बोर्ड भी एक है।
खबर यह भी आई कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने हलफनामा दाखिल करने से पहले अपने वकीलों से सलाह-मशविरा तक नहीं किया। कहा गया कि हलफनामे में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह अपना केस वापस लेना चाहता है। यह हलफनामा श्रीराम पंचू की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करने की बात आई, मगर उसके कुछ देर बाद ही मुस्लिम पक्षकारों ने कहा यह सिर्फ अफवाह है वक्फ बोर्ड ने ऐसा कोई भी हलफनामा दायर नहीं किया है जिसमें केस वापस लेने की बात की गयी हो।
मुस्लिम पक्षकार हाजी महबूब ने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से 2.77 एकड़ विवादित जमीन पर अपना दावा छोड़ने संबंधी किसी तरह के नए हलफनामा देने से इंकार करते हुए कहा कि बोर्ड की ओर से कोई हलफनामा पेश नहीं किया गया है। कुछ लोग अफवाह फैला रहे हैं।
गौरतलब है कि इससे पहले मंगलवार 15 अक्टूबर को हिंदू पक्षकारों के वकील ने कहा था कि अयोध्या की विवादित जगह पर मस्जिद बनाकर ऐतिहासिक भूल की गयी थी, जिसे सुधारने की जरूरत है। अब ऐसे में एकाएक जब सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से केस वापस लेने की दायर याचिका की बात सामने आई तो कई सवाल उठने लगे।।
मंगलवार 15 अक्टूबर को अयोध्या भूमि विवाद पर उच्चतम न्यायालय के संविधान पीठ के समक्ष सुनवाई के 39वें दिन हिंदू पक्षकार के वकील के. परासरन ने मस्जिद बनाए जाने को ऐतिहासिक भूल करार दिया था। मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश की गई दलील का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थान पर बाबर ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाई और यह एक ऐतिहासिक भूल की गई थी, जिसे सुधारने की जरूरत है। परासरन ने कहा कि अयोध्या में 55 से 60 मस्जिद हैं और मुस्लिम किसी भी मस्जिद में नमाज पढ़ सकते हैं, लेकिन विवादित स्थल ही भगवान राम का जन्मस्थान है और जन्मस्थान नहीं बदला जा सकता।
परासरन ने कहा कि भारत पर लगातार आक्रमण किया गया। कभी एक ने आक्रमण कर जीता तो कभी दूसरे ने आक्रमण कर जीता। आर्यन को आक्रमणकारी माना जाना संदेह का विषय है, क्योंकि आर्यन शब्द से दूसरे का आदर किया जाता रहा है। सीता खुद राम को आर्य कहती थीं। मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि लेकिन ये पूरी तरह से नई दलील शुरू कर दी गई है। पहले इस बारे में दलील नहीं दी गई थी और न ही हमारे जवाब में ऐसी दलील थी।
परासरन ने कहा कि ये कोर्ट पर निर्भर करता है कि इस दलील पर वह विचार करना चाहते हैं या नहीं। हम यह कहने की कोशिश कर रहे हैं कि सम्राट और विजेता में क्या फर्क है। कैसे मुस्लिम पक्षकार विवादित जमीन पर अपना दावा कर सकता है, क्योंकि ये तय है कि उनका निवेदन दागदार है। जो ऐतिहासिक भूल हुई है उसे कृपया सुधारा जाए। एक विदेशी शासक यहां आया और कहता है कि मैं सम्राट बाबर हूं और कानून मेरे नीचे है और कहता है कि मेरा आदेश ही कानून है।
परासरन ने कहा कि ऐसा कोई हमारे पास उदाहरण नहीं है कि हिंदू राजा बाहर गए और बाहर के देशों को जीता हो। हमने अतिथि देवो भव के सिद्धांत पर विश्वास किया है। जो बाहरी विजेता है उसे भारत के स्वर्णिम इतिहास को नष्ट करने की आजादी नहीं दी जा सकती। उच्चतम न्यायालय ऐतिहासिक भूल को सुधार सकता है। बाबर ने एतिहासिक भूल की थी और राम जन्मस्थली पर मस्जिद बनवाई थी, इस ऐतिहासिक भूल को सुधारने की जरूरत है।
परासरन ने कहा कि हिंदू लोग सैकड़ों सालों से राम के जन्मस्थल के लिए फाइट कर रहे हैं, क्योंकि आस्था है कि विवादित स्थल ही राम जन्मस्थली है और उसके लिए लड़ाई सैकड़ों सालों से है। जहां तक मुस्लिमों का सवाल है तो उनके लिए वह ऐतिहासिक मस्जिद थी। सभी मस्जिद बराबर मानी जाती हैं। अयोध्या में 55-60 मस्जिदें हैं। मुस्लिम किसी भी मस्जिद में नमाज पढ़ सकते हैं, लेकिन हिंदुओं के लिए राम का जन्मस्थान एक ही है। हम जन्मस्थान नहीं बदल सकते। इस पर धवन ने कहा कि मेरे काबिल दोस्त को ये भी बताना चाहिए कि अयोध्या में मंदिर कितने हैं।
कोई भी उस स्थल पर एक्सक्लूसिव पजेशन के अधिकार का दावा नहीं कर सकता। वह स्थान पूजा के लिए है। एक्सक्लूसिव पजेशन का दावा तब हो सकता है जब किसी एक का संपत्ति पर हक बन जाए। धवन ने कहा कि यह विवाद पूजा करने वाले या प्रार्थना करने वालों के बीच का विवाद नहीं है। एक बार अगर ये वक्फ की संपत्ति हुई तो फिर मैनेजमेंट का अधिकार खुद-ब-खुद उसमें निहित हो जाएगा।
परासरन ने कहा कि जहां तक 1885 में सूट पर फैसले के दौरान कोर्ट की टिप्पणी का सवाल है तो इस इस मामले में मुस्लिम पक्षकार कोर्ट की टिप्पणी भी भूल रहे हैं। (मुस्लिम पक्षकार का दावा था कि 1885 में मंदिर निर्माण की इजाजत देने से कोर्ट ने मना कर दिया था)। मेरा कहना है कि मुस्लिम ये भी भूल रहे हैं कि तब कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि मस्जिद हिंदुओं के पवित्र स्थल पर बनाया गया है।
इस पर चीफ जस्टिस ने पूछा कि क्या आप राजीव धवन की इस दलील को स्वीकार करते हैं कि मस्जिद हमेशा मस्जिद ही रहती है? परासरन ने कहा कि नहीं। बल्कि मेरी दलील है कि मंदिर हमेशा मंदिर रहता है। मैं उनकी दलील पर कॉमेंट नहीं करना चाहता, क्योंकि मैं एक्सपर्ट नहीं हूं।
वैद्यनाथन ने कहा कि बाबर ने 1528 में मस्जिद बनवाई और उन्होंने अवैध तरीके से कब्जा किया और उपयोग किया। वह स्थान देवता का है। जो संपत्ति देवता की है उसको रिवर्स पजेशन नहीं कहा जा सकता। दूसरे पक्ष को टाइटल साबित करना है क्योंकि उनके पास एक्सक्लूसिव पजेशन नहीं था। दूसरे पक्ष का ये दावा कि उन्हें सरकार से अनुदान मिलता था इसमें दम नहीं है। इस पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा कि ब्रिटिश सरकार शुरू में 302 रुपये और बाद में दो गांव मस्जिद के मेटिनंस के लिए देती थी। वैद्यनाथन ने कहा कि इस तरह के अनुदान से संपत्ति के इस्तेमाल का दावा साबित नहीं होता।