गम्भीर परिस्थितियों से उपजी सरल कॉमेडी 'बधाई हो'

Update: 2018-10-20 03:55 GMT

अधेड़ उम्र में प्यार और बच्चे पैदा करना एक ऐसा मुद्दा है जिस पर हमारे समाज में खुलकर बात करना भी बहुत मुश्किल है...

हेम पन्त

बॉलीवुड में गम्भीर विषयों पर बनी 'सिचुएशनल कॉमेडी' फिल्मों में 'पड़ोसन', 'चुपके चुपके', 'गोलमाल', 'जाने भी दो यारो', 'अंदाज अपना अपना', 'हेराफेरी' जैसी फिल्मों को प्रमुखता से याद किया जाता है। 12 अक्टूबर 2018 को रिलीज हुई 'बधाई हो' फ़िल्म भी इसी 'जॉनर' की फ़िल्म है।

जीतू और बबली 50 साल की उम्र पार कर चुके एक अधेड़ दम्पत्ति हैं। अचानक पता चलता है कि उनके घर पर 'नन्हा मेहमान' आने वाला है। दोनों का बड़ा लड़का एक नौकरीपेशा 24-25 वर्षीय युवक है जो अपनी शादी के लिए लड़की की मां से मिल रहा है और छोटा बेटा बारहवीं के एग्जाम की तैयारी में जुटा हुआ है।

इस गम्भीर परिस्थिति में सबसे बड़ी मुसीबत आ पड़ती है बबली पर, क्योंकि उसे घर पर हमेशा झिकझिक करने वाली अपनी बुढ़िया सास को भी झेलना है और नाते-रिश्तेदार-पड़ोसियों के तानों को भी। कवि हृदय जीतू रेलवे में टीटीई है जो इन जटिल परिस्थितियों में परिवार को तनाव से बचाकर रखने में जुट जाता है।

'विक्की डोनर', 'दम लगाके हइसा', 'बरेली की बर्फी' जैसी कई ऑफबीट फिल्मों में दमदार अभिनय से खुद को स्थापित कर चुके आयुष्मान खुराना ने इस फ़िल्म में भी जीतू के बड़े बेटे नकुल कौशिक के रोल को बड़ी 'परफेक्शन' के साथ निभाया है। अजीबोग़रीब हालत में फंसे एक बेटे और प्रेमी के मनोभावों को आयुष्मान खुराना ने अपने सशक्त अभिनय से जीवन्त किया है।

नीना गुप्ता और सुरेखा सीकरी जैसी वरिष्ठ अभिनेत्रियों ने मध्यवर्गीय परिवार की बहू और सास के बीच के नोंकझोंक भरे रिश्ते को बहुत सहजता से निभाया है। जीतू के रूप में गजराज राव का काम भी काबिलेतारीफ़ है। इसके अलावा छोटे और महत्वपूर्ण चरित्रों में सान्या मल्होत्रा और शीबा चड्ढा का काम भी देखने लायक है। पूरी फ़िल्म की 'कास्टिंग' बहुत अच्छी है, हर चरित्र अपने आप में परिपूर्ण नजर आता है।

इस 'सिचुएशनल कॉमेडी' में अच्छी स्क्रिप्ट और जोरदार अभिनय के साथ जो चीज प्रभावित करती है वह है दिल्ली की ठेठ हरियाणवी मिश्रित भाषा। सुनने में बशर्ते फ़िल्म का विषय थोड़ा आपत्तिजनक लग रहा है, लेकिन फ़िल्म देखने पर कहीं पर भी यह अहसास नहीं होता है कि हम किसी गम्भीर विषय पर बनी फिल्म देख रहे हैं।

फ़िल्म में हास्य और भावुकता प्रधान दृश्यों का बहुत अच्छा संतुलन है। भारतीय मध्यमवर्गीय परिवार में सास-बहू, माँ-बेटा, दादी-नाती और गली-मोहल्ले के दोस्तों के बीच खटास और मिठास भरे रिश्तों की महीन बुनावट का सजीव प्रस्तुतीकरण भी फ़िल्म का मजबूत पक्ष है।

अधेड़ उम्र में प्यार और बच्चे पैदा करना एक ऐसा मुद्दा है जिस पर हमारे समाज में खुलकर बात करना भी बहुत मुश्किल है। ऐसे विषय पर एक संतुलित फ़िल्म बनाना बहुत जोखिम का काम है, और ये रिस्क लिया है निर्देशक अमित शर्मा और लेखक अक्षत घिल्डियाल ने।

गम्भीर विषय पर फूहड़ता और भद्दे डायलॉग से हटकर एक हल्की-फुल्की पारिवारिक फ़िल्म देखने का मन हो तो इस हफ्ते रिलीज हुई फ़िल्म 'बधाई हो' देखने जरूर जाएं।

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