सार्वजनिक जगहों पर नमाज को ना तो पार्कों में संघ की शाखाओं को परमिशन कैसे

Update: 2018-12-27 13:39 GMT

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एक ओर तो सरकारी खजाने से गीता महोत्सव, कुंभ आयोजन, रामलीला आयोजन करवाया जा रहा है। योगी सरकार सरकारी खजाने से राम की मूर्ति बनवा रही है, वहीं दूसरी ओर अल्पसंख्यक समुदाय के निजी धार्मिक आयोजनों और प्रार्थनाओं पर हमले करने वालों को सत्ता का संरक्षण दिया जा रहा

संविधान के मूल अधिकारों पर किस तरह बहुसंख्यकवादी हमले हो रहे हैं बता रहे हैं सुशील मानव

भारत एक धर्मनिरपेक्ष जनतंत्र है। धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 25-28 में निहित है, जो सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है और भारत में धर्मनिरपेक्ष राज्य सुनिश्चित करता है। संविधान का अनुच्छेद-25 सभी लोगों को विवेक की स्वतंत्रता तथा अपनी पसंद के धर्म के उपदेश, अभ्यास और प्रचार की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। हालांकि, यह अधिकार सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य तथा राज्य की सामाजिक कल्याण और सुधार के उपाय करने की शक्ति के अधीन होते हैं।

संविधान के अनुसार, यहां कोई आधिकारिक राज्य धर्म नहीं है और राज्य द्वारा सभी धर्मों के साथ निष्पक्षता और तटस्थता से व्यवहार किया जाना चाहिए, लेकिन बहुसंख्यकवादी विचारधारा वाले संगठन/ पार्टी के केंद्रीय सत्ता में काबिज होने के बाद से लगातार संविधान और संविधान प्रदत्त मूल अधिकारों पर हमला किया जा रहा है।

ताजा मामले में क्रिसमस से दो दिन पहले 23 दिसंबर को महाराष्ट्र में कोल्हापुर के एक गांव में संडे मास पर उग्र हिंदू संगठन से जुड़े नकाबपोश लोगों ने हमला किया था। बता दें कि चांदगढ़ तलुका के कोवाड में एक किराए के कमरे में महिलाओं और पुरुषों का एक ग्रुप प्रार्थना कर रहा था। उस समय 10 बाइक पर सवार होकर आये 15 से अधिक अज्ञात लोगों ने प्रार्थना कर रहे लोगों पर बोतलों, पत्थरों, हॉकी स्टिक्स और चाकुओं से हमला किया।

हमले में करीब दर्जनभर लोग घायल हुए, जबकि चार लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। बेलगावी की ओर भागते समय आरोपियों ने डिंडलोक और तलगुली गांव में कुछ और लोगों पर हमला किया।

इसके अलावा 2 जुलाई 2018 में यूपी के प्रतापगढ़ जिले के संग्रामगढ़ थाना अंतर्गत रायकाशीपुर गांव में प्रार्थना सभा पर चार गाड़ियों में भरकर आये असलहाधारी हिंदुत्ववादी आतंकियों ने हमला किया था। उस वक्त राम कुमार गौतम के घर पर पचासों लोग यीशू कीर्तन और प्रार्थना में लीन थे। इसी दौरान अचानक चार गाड़ियों में भरकर करीब दो दर्जन असलहाधारी लोगों ने वहां लोगों को लाठी-डंडों से पीटा था।

हमलावरों में महिलाओं और बच्चों तक को बुरी तरह मारा-पीटा था। मार-पिटाई के दौरान दहशत फैलाने के लिये कई राउंड हवाई फायरिंग भी की गई थी। इसके अलावा वहां रखी धार्मिक प्रतिमा व कुछ बाइक में तोड़फोड़ किया गया था। करीब दो दर्जन लोग बुरी तरह घायल हुए थे। पीड़ितों ने आरोप लगाया था कि सूचना देने के बावजूद पुलिस काफी देर तक घटनास्थल पर नहीं पहुंची। इसको लेकर पीड़ितों में पुलिस के प्रति भी नाराजगी थी। सभी पीड़ित दलित पिछड़े समुदाय से आते थे।

वहीं उत्तर प्रदेश पुलिस भी पिछले डेढ़ साल से पूरी तरह भगवा रंग में रंगी नजर आ रही है। यूपी पुलिस द्वारा जहाँ सावन महीने में हिंदू काँवड़ियों पर सरकारी हेलीकाप्टर से फूल बरसाए गए थे, वहीं यूपी पुलिस ने नोएडा में दूसरे धर्म के प्रति असहिष्णुता की हद तक जाते हुए 19 दिसंबर को नोएडा सेक्टर-58 के पार्क में नमाज पढ़ने पर नौमान अख्तर समेत दो लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था।

इस आरोप के आधार पर कि दोनों जबरन पार्क में नमाज पढ़ना चाहते थे, जो कि कानून का उल्लंघन है। बता दें कि नमाज़ पढ़ने वाले लोगों ने सिटी मजिस्ट्रेट से भी इजाजत मांगी, लेकिन इजाजत नहीं मिली थी। इसके अलावा नोएडा पुलिस ने एक नोटिस जारी किया है,अब कोई भी सेक्टर 58 स्थित पार्क में नमाज नहीं पढ़ सकता है। इलाके में स्थित सभी कंपनियों को नोटिस जारी करके इसकी सूचना दे दी गई है कि किसी के भी इस इलाके के पार्क में नमाज पढ़ते हुए देखे जाने पर कंपनी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

गौरतलब है कि इससे पहले हरियाणा की 'साइबर सिटी' के सेक्टर-53 के एक मैदान में 20 अप्रैल को जुमे की नमाज पढ़ रहे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को कुछ हिन्दू संगठन के लोगों ने नमाज अदा करने आए लोगों की नमाज में खलल डालते हिंदू संगठनों के कुछ युवाओं द्वारा वहाँ जय श्री राम के नारे लगाने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था।

समाज में इस पर तीखी प्रतिक्रिया होने के बाद हरियाणा सरकार के मुख्यमंत्री द्वारा तुगलकी फ़रमान जारी करके मुख्यमंत्री खट्टर पहले ही कह चुके हैं कि जिन्हें नमाज पढ़नी हो, वो मस्जिद, ईदगाह या अपने घरों में पढ़ें, सार्वजनिक जगहों पर इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती। जबकि इन्हीं खट्टर ने खुले जिमों में संघ की शाखा लगने की परमिशन दिया था जिस पर भी काफी बवाल मचा था।

यह बहुत ही लचर तर्क है कि सार्वजनिक जगहों पर नमाज़ नहीं होनी चाहिए, लेकिन सार्वजनिक जगहों पर फिर कोई धार्मिक गतिविधि क्यों होनी चाहिए? दूसरे धार्मिक उत्सवों, कार्यक्रमों, यात्राओं, जुलूसों, अखंड पाठों, कांवड़ियों, जगरातों या जागरणों के लिए भी यही कायदा काम करेगा? क्या एक जैसे नियम सबके लिए लागू होंगे?

क्या सावन के महीने में सड़कों पर बोल बम के नारे लगाते हुए, राहगीरों को डराते हुए धार्मिक दस्ता निकलेगा तो उनके लिए ऐसे ही कठोर कदम उठाए जाएंगे? वट सावित्री की पूजा क्यों होनी चाहिए, लाउडस्पीकर लगाकर जगराते क्यों होने चाहिए, नदी-पोखर-तालाब किनारे छठ क्यों होने चाहिए, दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा या गणेश पूजा पर विसर्जन जुलूस क्यों निकलने चाहिए, सड़कों पर शामियाने क्यों लगने चाहिए, बारात क्यों निकलनी चाहिए?

इसके अलावा सबरीमाला मंदिर में औरतों के प्रवेश के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद आज तक सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं हो पाया। वहीं सत्ताधारी पार्टी का अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद अमित शाह सुप्रीम कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए कहता है 'अदालतों को आदेश ऐसे देने चाहिये, जिनका पालन हो सके। ऐसे आदेश नहीं देने चाहिये, जो लोगों की आस्था को तोड़ने का काम करें।'

इससे पहले 9 अगस्त 2018 को अनुसूचित जाति/ जनजाति ऐक्ट में बदलाव के खिलाफ संसद मार्ग पर संविधान को जलाया गया था। भारत के संविधान से सिर्फ एक वर्ग को दिक्कत है जो हाल-फिलहाल सत्ता पर काबिज है। कुल मिलाकर बात इतनी है कि संविधान और संविधान में प्रदत्त मूल अधिकारों पर लगातार सत्तावादी वर्ग द्वारा हमले किये जा रहे हैं। खुलेआम संविधान में दिये अधिकारों की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं।

एक ओर तो सरकारी खजाने से गीता महोत्सव, कुंभ आयोजन, रामलीला आयोजन करवाया जा रहा है। योगी सरकार सरकारी खजाने से राम की मूर्ति बनवा रही है। वहीं दूसरी ओर अल्पसंख्यक समुदाय के निजी धार्मिक आयोजनों और प्रार्थनाओं पर हमले करने वालों को सत्ता का संरक्षण दिया जा रहा है। सरकार में बैठे लोग सार्वजनिक जीवन में खुलेआम बढ़-चढ़कर धार्मिक आयोजनों में भागीदारी निभा रहे हैं।

आज से वर्षों पहले जब सोमनाथ मंदिर के एक कार्यक्रम में भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को आमंत्रित किया गया था, तब प्रधानमंत्री नेहरू नहीं चाहते थे कि देश के राष्ट्रपति किसी धार्मिक कार्यक्रम में शरीक हों। नेहरू का दृष्टिकोण था कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है और राष्ट्रपति के इस तरह के कार्यक्रमों में शामिल होने से लोगों के बीच गलत संकेत जाएगा।

बता दें कि प्रधानमंत्री नेहरू ने खुद को न सिर्फ सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार से पूरी तरह अलग रखा था, बल्कि उन्होंने सौराष्ट्र के मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखकर सोमनाथ मंदिर परियोजना के लिए सरकारी फंड का इस्तेमाल नहीं करने का निर्देश दिया था। सिर्फ इतना ही नहीं 28 फरवरी 1950 को अपनी काशी यात्रा के दौरान राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद द्वारा काशी में ब्राह्मणों के पैर धोने को लेकर नेहरू ने उनकी सार्वजनिक आलोचना भी की थी।

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