नए साल पर दलितों द्वारा मनाए गए शौर्य दिवस में भड़की हिंसा, 1 व्यक्ति की मौत, हिंसा का असर पूरे महाराष्ट्र में....
मुंबई। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के पुणे जिले के भीमा-कोरेगांव में नववर्ष के पहले दिन मनाए गए 'शौर्य दिवस' यानी भीमा-कोरेगांव की लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ पर महाराष्ट्र हिंसा में जबर्दस्त हिंसा भड़की, जिसका असर अब पूरे देशभर में दिखने लगा है। 200 साल पहले अंग्रेजों द्वारा पेशवा को हराने की खुशी में दलित वर्ग द्वारा आयोजित कराए जाने वाले इस कार्यक्रम में एक जान चली गई।
गौरतलब है दलित वर्ग द्वारा शौर्य दिवस के तौर पर ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा पेशवा को हराने के जश्न के बतौर मनाए जाने वाले इस कार्यक्रम का दक्षिणपंथी समूह काफी पहले से विरोध कर रहे थे। उनका कहना था कि यह राष्ट्र विरोधी आयोजन है। खासकर हिंदुओं की उंची जातियां इसका विरोध कर रही थीं। सोशल मीडिया ने इस आग में घी डालने का काम किया। वहां पर भीमा कोरेगांव में होने वाला आयोजन और उसका विरोध काफी दिनों से ट्रेंड कर रहा था।
अब भीमा कोरेगांव में भड़की इस हिंसा ने मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र को अपनी चपेट में ले लिया। इसका असर इतना जबर्दस्त रहा कि मुंबई के चेंबूर व मुलुंड हार्बर लाइन पर लोकल ट्रेन सेवा रोक दी गई। मुंबई-पुणे को जोड़ने वाले ईस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे भी बंद करना पड़ा। इस दौरान सैकड़ों गाड़ियों को नुकसान पहुंचाया गया।
घटना के बाद प्रदर्शनकारियों ने ठाणे स्टेशन पर ट्रेन को रुकवाकर विरोध प्रदर्शन की कोशिश की थी। व्यापक हिंसा को देखते हुए ठाणे में 4 जनवरी की रात्रि तक धारा 144 लागू कर दी गई है। औरंगाबाद में इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं। डीसीपी प्रवीण मुंधे ने कहा है कि "मैं सभी नागरिकों से अपने रोजमर्रा के रूटीन को जारी रखने का आह्वान करता हूं। शहर में शांति व्यवस्था जल्द ही हो जाएगी। सोशल माडिया पर फैलाए जा रहे अफवाहों पर ध्यान ना दें।"
हालांकि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने हिंसा की न्यायिक जांच का आदेश दे दिया है। उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा कि यह किसी बड़ी साजिश का नतीजा लगता है। इस हिंसा ने अब महाराष्ट्र समेत पूरे देश को अपने आगोश में ले लिया है।
इसके लिए कुछ संगठनों ने दलित नेता जिग्नेश मेवाणी पर भी मामला दर्ज कराया है। पुणे के पुलिस स्टेशन में जिग्नेश मेवाणी समेत कुछ अन्य के खिलाफ भड़काऊ बयान देने की एफआईआर दर्ज की गई है। कहा गया है कि इनके बयानों के बाद दो समुदायों में हिंसा भड़की।
इस मामले में पुणे की पिंपरी पुलिस ने हिंदू एकता अघाड़ी के मिलिंद एकबोते व शिवराज प्रतिष्ठान के संभाजी भिड़े के खिलाफ हिंसा भड़काने का मामला दर्ज किया है। दोनों संगठनों ने भीमा-कोरेगांव युद्ध में अंग्रेजों की पेशवा पर जीत को शौर्य दिवस के रूप में मनाने का विरोध किया था।
हालांकि यहां यह बात गौर करने वाली है कि महाराष्ट्र का दलित समुदाय 200 साल से यह शौय दिवस मनाता आ रहा है। अब भाजपा राज में इतने वालों बाद इसके विरोध से दलित समुदाय उग्र हो उठा। मुंबई में ही 160 से ज्यादा बसों में तोड़फोड़ की गई। हिंसक कार्रवाई के लिए पुलिस द्वारा 100 से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया गया
मुंबई, कोल्हापुर, परभणी, लातुर, अहमदनगर, औरंगाबाद, हिंगोली, कोल्हापुर, नांदेड़ व ठाणे, विक्रोली, मानखुर्द, गोवंडी समेत कई अन्य जगहों पर हिंसा का व्यापक असर दिखा। यहां वाहनों के साथ तोड़फोड़ की गई।
इस हिंसा की शुरुआत नए साल पर कोरेगांव-भीमा गांव में शौर्य दिवस मनाने के बाद हुई। इस दौरान महाराष्ट्र के दलित महार समुदाय का अन्य समुदाय के लोगों से टकराव हो गया था। हिंसा के दौरान नांदेड़ में एक युवक की मौत हो गई।
हिंसा के बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने कहा कि यह हमारी सरकार को बदनाम करने की सोची—समझी साजिश है। सरकार ने हिंसा की बॉम्बे हाईकोर्ट के मौजूदा न्यायाधीश से जांच के आदेश दे दिए हैं। मृतक के परिजनों को 10 लाख का मुआवजा देने और घटना की सीआईडी जांच के आदेश दे दिए गए हैं।
फड़णवीस ने कहा कि सोशल मीडिया पर अफवाहें फैलाने वालों पर क़़डी कार्रवाई की जाएगी। भीमा-कोरेगांव में तीन लाख लोग एकत्र हुए थे। कुछ लोगों ने गंभीर संकट पैदा करने की कोशिश की, लेकिन वहां मौजूद सुरक्षा कर्मियों ने हालात बड़ी होशियारी से काबू में किए और बहुत बड़ी समस्या पैदा होने से रोक दी।
गौरतलब है कि वर्ष 1818 में पुणे जिले के भीमा-कोरेगांव युद्ध में अंग्रेजों ने पुणे के बाजीराव पेशवा द्वितीय की सेना को हरा दिया था। तब अस्पृश्य समझे जाने वाली महार जाति ने अंग्रेजों का साथ दिया था। इसलिए महार जाति उसके बाद से 'शौर्य दिवस' मनाते आ रही है। मगर इस बार कुछ दक्षिणपंथी संगठनों ने शौर्य दिवस के खिलाफ सोशल मीडिया समेत लोगों के बीच जाकर भी इसका विरोध किया था, इसलिए हिंसा भड़क गई।
घटना के बाद से राजनीतिक आरोपों—प्रत्यारोपों का दौर जारी हो गया है। भीमा कोरेगांव की हिंसा के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बयान दिया कि संघ और भाजपा दलितों को समाज में सबसे नीचे पायदान पर रखना चाहती है। ऊना, रोहित वेमुला और भीमा-कोरेगांव की हिंसा दलितों के प्रतिरोध के उदाहरण हैं।