आखिर जब्बार भाई कौन थे, जिनसे सोशल मीडिया पर मांगी जा रही है माफी

Update: 2019-11-15 14:32 GMT

साल 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी को दुनिया की बड़ी घटनाओं में गिना जाता है। एक कारखाने में जहरीली गैस का रिसाव होने के कारण करीब पंद्रह हजार लोगों की जान चली गई थी जबकि इससे कई हजार लोग गंभीर बीमारियों का शिकार हो गए थे। अब्दुल जब्बार जीवनभर इस त्रासदी के पीड़ितों के हक के लिए संघर्ष करते रहे...

3 दिसबंर 1984 को मध्यप्रदेश के भोपाल में एक भयानक औद्योगिक त्रासदी हुई जिसमें भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने से एक ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ जिसमें 15000 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। साथ ही कई लोग शारीरिक रुप से अपंग और अंधेपन का शिकार हुए थे। सरकारी असफलता के कारण पीड़ितो की हक की लड़ाई लड़ने वाले अब्दुल जब्बार ने आज अंतिम सांस ली। आखिरी समय तक वह लोगों के हक के लिए संघर्ष करते रहे।

ब्दुल जब्बार पूरी उम्र भर पीड़ितों के हक के लिए लड़ते रहे। उनकी ये आस कभी खत्म नहीं हुई कि पीड़ितों को उनका हक मिलकर रहेगा। यही कारण है उनका अंतिम सांस तक उनका संघर्ष जारी रहा। जब भोपाल गैस त्रासदी हुई उस समय अब्दुल जब्बार महज 28 साल के थे। जिसके बाद वह पूरी जिंदगी गैस पीड़ितों की समस्याओं को सुलझाने और उनकी हक की लड़ाई लगने में लगा दिया।

ब्बार का इलाज कर रहे डॉ. अब्बास ने बताया कि जब्बार हार्ट पेशेंट थे उन्हें डायबिटीज भी थी। गुरुवार रात 9 और 10 बजे उन्हें दो बार हार्ट अटैक आया जिससे उनका निधन हो गया।

ब्दुल जब्बार न केवल भोपाल कांड केस में लोगों के हक के लिए लड़ते रहे बल्कि वह बीएएचआरसी मे 2004 से 2008 के बीच हुए ड्रग ट्रायल और 1998 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर गैस त्रासदी पीड़ितों के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाने की मांगों को लेकर लड़ते रहे। साथ ही वह यादगारे शाहजहांनी पार्क पर हो रहे अतिक्रमण के खिलाफ भी उन्होंने लंबी लड़ाई लड़ी।

ब्बार 1984 की गैस त्रासदी की पीड़ित महिलाओं के संगठन से भी जुड़े रहे थे। महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए जिंदगीभर जुटे रहे। उनके बांए पैर में गैंगरीन (Gangrene) था जिसके चलते वह आर्थिक तंगी में पहुंच गए थे। कुछ सामजिक कार्यकर्ताओं और मित्रों ने उनके इलाज के लिए फंड जुटाने की सोशल मीडिया पर मुहिम पर चलाई है। साथ ही सरकार से भी उनके परिवार को आर्थिक मदद देने की अपील की गई है।

Full View पीड़ितों के लिए जब्बार द्वारा लड़ी गई लड़ाइयों का ही नतीजा रहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 1988 में गैस पीड़ितों को गुजारा भत्ता देने का फैसला सुनाया। इसके बाद घायलों को 25-25 हजार रुपये की मदद मिली। इसके अलावा भी कई फैसले उनकी लड़ाई के चलते आए और कई मामले अब भी न्यायालय में लंबित हैं।

माकपा के वरिष्ठ नेता बादल सरोज ने अब्दुल जब्बार के निधन पर कहा, "एक अकेले शख्स का जाना भी संघर्षो की शानदार विरासत वाले शहर भोपाल को दरिद्र बना सकता है। एक आवाज का खामोश होना भी कितना भयावह सन्नाटा पैदा कर सकता है, कल शाम से महसूस हो रहा है।"

ही कांग्रेस नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रई दिग्विजय सिंह ने जब्बार को लेकर ट्वीट किया कि अब्दुल जब्बार नहीं रहे। उन्होंने भोपाल गैस त्रासदी के प्रभावित परिवारों की जो सेवा निस्वार्थ भाव से जीवनभर की, वह अद्वितीय है। हम उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि देते हैं।

चिन कुमार जैन अपने फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं कि जब्बार भाई बात माफी के लायक तो नहीं है, पर फिर भी कहना चाहता हूँ माफ कर दीजियेगा। हमने बहुत देर कर दी। यह तो नहीं ही कहा जा सकता है कि आपने हमें वक्त नहीं दिया, खूब वक्त दिया समझने के लिए और कुछ कर पाने के लिए। हमने लापरवाही और उपेक्षा का बहुत बड़ा अपराध कर दिया। हमें पता भी था कि आप कौन हैं? आप अब्दुल जब्बार थे, वही अब्दुल जब्बार जिसने भोपाल गैस त्रासदी को देखा और उसका आक्रमण झेला था।

ब्दुल जब्बार पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। उनका एक निजी अस्पताल में इलाज चल रहा था। राज्य सरकार ने उन्हें इलाज के लिए मुंबई भेजने का इंतजाम किया था। वह शुक्रवार को मुंबई जाने वाले थे लेकिन उससे पहले ही वह दुनिया छोड़ कर चले गए।

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