बीएचयू में न होगा ड्रेस कोड, न होगी लड़कियों के दारू पीने पर पाबंदी

Update: 2017-09-29 11:22 GMT

हॉस्टल मेस में मिलेगा मीट भी और रात 10.30 तक लड़कियों को होगी घूमने की छूट, अबतक 8 बजे लग जाता था लड़कियों के गेट पर ताला, पर लाख टके का सवाल यह कि यह होगा कैसे?

जनज्वार, वाराणसी। बीएचयू की नई मुख्य प्रॉक्टर रोयोना सिंह प्रगतिशीलता और आधुनिकता की प्रतिमूर्ति बनकर लड़कियों के बीच आई हैं। पद पर आसीन होते ही उन्होंने जुबानी तौर इतने वायदे ठेल दिए हैं कि पलभर में लगने लगा है कि जैसे मोदी जी ने बनारस को क्योटो बना दिया था, वैसे ही नई प्रॉक्टर बीएचयू को हार्वर्ड विश्वविद्यालय बनाकर ही सांस लेंगी।

पुराने और दकियानूस प्रॉक्टर के इस्तीफे के बाद बीएचयू के हिस्से लगीं रोयोना सिंह ने कल की प्रॉक्टर का पद संभाला है। उनकी जो पहली तस्वीर मीडिया में जारी हुई है वह बहुत ही लिबरल टाइप दिख रही हैं। वह छात्रों के बीच मुस्कुराते हुए देवी दुर्गा की तरह नजर आती हैं। हालांकि ऐसी हजारों तस्वीरें तब भी मीडिया में जारी हुईं थी जब मोदी जी 2014 में प्रधानमंत्री की लालसा में बनारस आए थे।

इसलिए यह नई प्रॉक्टर की खासियत नहीं है, बल्कि मोदी मेनिया है। सपने ऐसे दिखाओ का आदमी हकीकत की दुनिया में रह ही न जाए। वह सपने को ही हकीकत की तरह माने और पेश करे और कुछ दिनों में भक्त कहलाए। यह इन दिनों हर क्षेत्र में हो रहा है। सबके पास समस्या समाधान का कैप्सूल है, जिसके मास्टर माइंड हमारे माननीय प्रधानमंत्री मोदी साहेब हैं।

गुजरात में मोदी जी को मोदी साहेब कहा जाता है। खैर!

बीएचयू के 101 साल के इतिहास में यह पहली दफा है कि कोई महिला प्रॉक्टर के पद पर आई हैं और यह भी पहली बार है कि यह साहसिक जुमला पहली बार छोड़ा गया है, जिसको सुनकर बीएचयू की लड़कियां कहने लगी हैं — हाय दैया ऐसा होगा क्या, इतनी आजादी सही तो न जाएगी?

दिलचस्प यह है कि रोयोना सिंह लड़कियों और हॉस्टल जीवन में दी जाने वाली सभी छूटों की खुद से तुलना कर बताती हैं। जैसे वह खुद अमेरिका—यूरोप में रही हैं, उन्हें खाने, पहनने और पीने पर लगाई जाने वाली पाबंदी खुद पर लगाई पाबंदी लग रही है। इसलिए उन्होंने कहा है कि जिसको जो पहनना, खाना और पीना है, आजाद है। मतलब उन्होंने आंखों, आखों में बीएचयू को हार्वर्ड विश्वविद्यालय मान लिया है।

यह सारी बातें सुनने में इतनी कर्णप्रिय और हृदयस्पर्शी हैं कि एक बार प्रॉक्टर का चरणचूम लेने को जी चाहता है। पर संदेह एक ही कि मैडम जी वायदे पूरे करेंगी कैसे? क्योंकि मोदी जी वायदों के बाद से तो वायदों को सुनने से ही जी घबराने लगा है।

ज्यादातर बार ऐसा होता है कि प्रशासन रोष को खत्म करने और उस पर मिट्टी डालने के लिए वैसे प्रशासकों को नियुक्त करता है जो छात्रों के बीच जाकर उनके आंदोलनों के पक्ष में खड़े हों, उनके जैसी बातें करें। और मामला बातों—बातों में होकर रह जाता है।

यहां इसकी संभावना और ज्यादा इसलिए है कि राज्य के मुख्यमंत्री लड़कियों के इस काबिल नहीं मानते कि वह स्वंय निर्णय ले सकें, उन्हें स्वतंत्र छोड़ा जाए। प्रधानमंत्री जिस आरएसएस को आदर्श मानते हैं और जिसके बूते वह प्रधानमंत्री बने हैं, बकौल आरएसएस औरत घर के चौखट की चीज है। वीसी साहब तो सोने पर सुहागा हैं ही जिनकी निगाह में लड़कियां ही अपने कर्तव्यों से विमुख हैं।

ऐसे में मैडम की सुघड़—सुंदर बातों पर संदेह है क्योंकि जो इसको लागू कराने वाली जो ताकते हैं, जैसे मुख्यमंत्री, वीसी और जिला प्रशासन अगर वह लड़कियों के ड्रेस कोड, खाने—पीने को लेकर डंडा हांक रहे और हांके जाने के पक्ष में हैं तो तो फिर प्रॉक्टर मैडम की बात वायदे और शिगुफे के अलावा क्या होगी?

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