बारह घण्टे

Update: 2017-08-16 10:53 GMT

भूपेंदर सिंह की कहानी 'बारह घंटे'

जनज्वार अपनी शुरुआत से ही देश की फ़ैक्टरियों में काम करने वाले मजदूरों के मसले सामने लाता रहा है। अब जनज्वार अपनी अगली शुरुआत के साथ मजदूरों के अनुभव, उनकी कहानियां या उनके द्वारा लिखे रिपोर्ताज प्रकाशित करने की शुरुआत कर रहा है। आज आप पढ़िए भूपेंदर सिंह की कहानी , जिन्होंने नोएडा की 7 फ़ैक्टरियों में 5 साल तक काम किया है।

अबे तुम पागल हो। वह साला बहुत हरामी है। सुबह आते ही पहले पैसे तय करना, फिर काम पर आना। लेकिन सुबह होने तक कबीर के पास इतनी ताकत बचे कि वह खड़ा हो सके, पूछने की बात तो बहुत दूर....

जिन्दगी की रेलमपेल में वह भी दो वक्त की रोटी जुटा रहा था। इसे ढूंढ़ने के लिए आदमी कितने जुगाड़ भिड़ाता है, कितनी कोशिशें करता है। ठीक इसी तरह की कोशिश उसने भी की। सुबह से दोपहर हो गई थी काम के चक्कर में भटकते हुए। यह सिलसिला कई दिन से था। आखिर दोपहर को एक कम्पनी के गेट पर लिखा मिला। आवश्यकता है हैल्पर की। सोचा, शायद यहाँ काम मिल जाए।

गेट पर सिक्योरिटी गार्ड से पूछा। सर, यहाँ काम मिल जायेगा क्या?

हाँ मिल जायेगा। यहाँ से सीधे जाओ फिर दाँए मुड़ जाना, आगे ठेकेदार साहब का आॅफिस है उन्हीं से बात करनी होगी।

वह जल्दी-जल्दी अन्दर गया, दाँए मुड़ते ही ठेकेदार के आॅफिस में पहुंच गया।

ठेकेदार कुर्सी पर बैठा कुछ कागजों को उलट-पुलट रहा था। उसकी सेहत उस खूंटे जैसी थी जिसको जमीन में गाड़कर भैंस को बांध दिया जाता है। सर नमस्ते। हाँ नमस्ते। किससे मिलना है? सर, ठेकेदार साहब से।

बोलो क्यों मिलना है? काम के लिए आया हूँ। उसने गर्दन को एक दम से ऊपर की तरफ झटका। ठेकेदार की इस हरकत से लगा जैसे उसे कोई नया शिकार मिल गया हो। हमारे यहाँ बारह घण्टे की ड्यूटी होती है करोगे?

सर करने के लिए ही आया हूँ।

बड़े नसीब वाले हो तुम, जो तुम्हें गेट के अन्दर घुसते ही काम मिल गया।

लेकिन सर, सेलरी क्या मिलेगी?

सेलरी की चिन्ता छोड़ो, अब तुम काम की चिन्ता करो, हम किसी को भूखा नहीं मरने देते। देखो यहाँ कितने लड़के काम कर रहे हैं। अच्छे पैसे मिलते हैं तभी तो करते हैं।

ठेकेदार की इस बात में उसे दम लग रहा था इसलिए वह आगे कुछ न बोला। उसे अन्दर ही अन्दर थोड़ी खुशी हो रही थी कि काम मिल गया और पैसे भी ठीक-ठाक मिल जाएंगे।

अरे हाँ तुम्हारा नाम क्या है?

सर, कबीर।

अच्छा तो ये बताओ तुम ड्यूटी कब से शुरू करोगे?

जबसे आप बुलाऐंगे।

दिन की करना चाहोगे या रात की?

कबीर एक पल सोचने लगा, दिन में तो गर्मी बहुत होती है रात को ही ठीक रहेगा। मैं रात की ड्यूटी में आ जाऊँगा सर।

तो जाओ अब तुम घर जाकर थोड़ा सो लो, ताकि रात भर जाग सको। ठीक 9 बजकर 45 मिनट पर आ जाना, तुम्हारी ड्यूटी 10 बजे से शुरू है। सीधे आकर मुझसे ही मिलना। जब तक तुमको काम पर नहीं खड़ा करूँगा मैं यहां से नहीं जाऊँगा।

कबीर खुशी—खुशी अपने कमरे पर गया और जाते ही अपने दोस्त को बताया कि मुझे काम मिल गया। दोस्त भी खुश हुआ।

अरे यह तो तुम्हारे लिए बहुत अच्छा हुआ। काफी दिन हो गए थे तुम्हें परेशान होते हुए। तुमने बहुत मेहनत की है काम ढूंढ़ने में। घर बैठे रहने से काम नहीं मिलता, कोई भी तो नहीं बुलाने आता कि आओ जी -हमारे यहाँ काम पर लग जाओ।

हाँ गौतम, तुम ठीक कहते हो बुलाने तो कोई नहीं आता और न ही बिना मेहनत के कुछ मिलता है। अच्छा जब तुम्हें तन्ख्वाह मिले तो थोड़ा सही ढंग से खाना-खाना होगा, दूध भी लेते रहना। देखो तुम काफी कमजोर हो गए हो।

हाँ, यहाँ तुम्हारी बात को ध्यान में रखूँगा। कभी-कभी फल भी खाया करूँगा। कबीर ठीक 9 बजकर 45 मिनट पर कम्पनी पहुँच गया और ठेकेदार से मिला। सर, मैं आ गया।

आओ तुझे काम समझा देता हूँ। देखो हमारे यहाँ भारी काम नहीं है, इस मशीन पर काम करना है। ये मशीन टेलीविजन के कवर बनाती है। उन कवरों को डिब्बे में भरना है। फिर डिब्बा बंद करके यहां रखते जाना है एक बड़ा सा ढेर लगा देना। और इतना ध्यान रखना, काम अच्छा लगे या न लगे। जब तक तुम्हारी जगह दूसरा लड़का नहीं आता, तब तक तुम ड्यूटी छोड़कर नहीं जाओगे। नहीं तो पैसे नहीं मिलेंगे।

ठेकेदार ने दूसरे लड़के को कहा जो मशीन चला रहा था। अरे लक्की जरा इसे देखते रहना अगर कहीं काम गलत कर रहा हो तो बीच-बीच में समझाते रहना। इतना कहकर वह चला गया।

क्या सोच रहे हो भईया, चलो अब काम को देखो। यहां अगर तुम ऐसे ही खड़े होकर सोचते रहे तो मशीन रुक जाएंगी और तुम्हारी पहले ही दिन शिकायत ऊपर तक जायेगी। मशीन चालक की बात सुनकर कबीर अपने काम पर लग गया। अब उसके काम की षुरूआत की थी। वह बड़ी फूर्ति से कवरों को डिब्बे में भर रहा था। कब 100 कवर भर दिए पता भी नहीं चला। मुश्किल से 20 मिनट में इतना काम कर दिया।

कुछ देर बाद मशीन चालक बोला, कितने रुपये में तय हुआ तुम्हारा?

उसने अभी बताया नहीं।

गलती की, पूछना चाहिए था। कबीर काम करते-करते रुक गया और बोलने लगा।

इतने में मशीन चालक चिल्लाया, अबे रुको मत, मशीन रूक जाएगी। काम करते—करते बोलो, यहां एक पल भी नहीं रुकना होगा। इसीलिए तो कह रहा हूँ बहुत मुश्किल काम है। तुम्हें पहले पैसों का तय करना चाहिए था।

पूछा था पर उसने बताया नहीं, बोला भूखा नहीं मरने देंगे।

अबे तुम पागल हो। वह साला बहुत हरामी है। सुबह आते ही पहले पैसे तय करना, फिर काम पर आना। लेकिन सुबह होने तक कबीर के पास इतनी ताकत बचे कि वह खड़ा हो सके, पूछने की बात तो बहुत दूर!

सुनो रे कबीरवा, जितने कवर निकलेंगे उतनी ही बार तुझे झुकना और सीधा होना पड़ेगा। सुबह तक कई हजार कवर निकलेंगे। अभी तो 11 बजे हैं। कबीर बोला मुझे पानी पीना है और बाथरूम जाना है। इसका मतलब तुम मशीन रुकवाना चाहते हो, यह नहीं हो सकता। अपने साथ मुझे भी कम्पनी से निकलवाना चाहते हो। सिर्फ दो घण्टे हुए हैं काम करते हुए, 10 घण्टे बाकी हैं, इतना जल्दी हिल गये हो।

मगर मैं बहुत ज्यादा थक गया हूँ। कम से कम पानी और बाथरूम तो जाने दो। मेरी कमर भी बहुत ज्यादा दर्द कर रही है।

इसका मतलब तुझे पैसे नहीं चाहिए, नौकरी नहीं करनी।

कबीर इसी डर के मारे चुपचाप काम पर लगा रहा। कितनी मुश्किल से नौकरी मिली है। वह भी एक दिन में छूट जाए यह वह नहीं चाहता था।

अबे तुम जवान हो थको मत हिम्मत करो।

कितनी हिम्मत करूँ और कब तक करूँ। फुरसत इतनी नहीं कि माथे का पसीना पोछ लूँ। फिर सीधा खड़े होकर अंगड़ाई तोड़ना तो बहुत दूर की बात है। कुछ तो मशीनों के चलने की गर्मी, शरीर पसीने से तर-बतर, माल की बदबू से घुटन अलग, ऊपर से पानी की प्यास। आसपास कोई पंखा भी नहीं थोड़ी बहुत हवा लग जाए, हिम्मत करने की बात करते हो। कबीर की हालत बदहाल हो गई थी।

इस असहनीय पीड़ा से उसे बुखार भी हो चला था। एक घण्टा बाद तो झुकना और सीधा होना उसके लिए पहाड़ हो गया था। बार-बार झुकने और सीधा होने से कमर के साथ साथ पूरा शरीर सुन्न हो गया। हर एक घण्टा एक महीने के बराबर निकल रहा था। भूख भी बड़ी तेज लग गई थी। शरीर दर्द और बुखार के नशे में चूर था। उसे चक्कर आ रहे थे। अब वह अपने आप ही बड़बड़ा रहा था। पता नहीं कब सुबह होगी कब दिन निकलेगा और कब घर जाऊँगा।

दिन तो निकला जरूर, लेकिन अपनी रफ्तार से। दिन के 10 बज गए ड्यूटी बदलनी थी। दूसरा लड़का काम पर नहीं आया। कुछ कहने के लिए उसकी जीभ नहीं पलट रही थी। फिर भी बड़ी हिम्मत करके लड़खड़ाती हुई जुबान से मशीन चालक से पूछा, दूसरा लड़का क्यों नहीं आया? क्योंकि नया कोई भर्ती नहीं हुआ। यहाँ
कोई एक बार काम करता है तो दूसरी बार आने की हिम्मत नहीं होती और वही तुम्हारे साथ हुआ। तुझे तेज बुखार है। तुमको घर चले जाना चाहिए। ठेकेदार भी नहीं आया अगर तुम उससे पैसे ले ही लेते दवाई के लिए, वह आएगा भी नहीं आज।

अब तुम कल आना पैसे लेने के लिए। अपनी गम्भीर हालत लिए कब अपने कमरे पर पहुंचा उसे कोई अता—पता नहीं। दोस्त उसकी हालत को देखकर घबरा गया। अरे कबीर तुझे क्या हुआ। तुम तो ठीक-ठाक गए थे कल और अब यह हालत? तुझे बुखार भी है, इतनी तेज। उसने जल्दी से उसे बिस्तर पर लेटाकर माथे पर ठण्डे पानी की पट्टी रखी।

हर एक मिनट में उन्हें बदलता रहा। कबीर धीरे-धीरे आँखें खोल और बंद कर रहा था। अपनी लड़खड़ाती हुई जुबान से उसने अपने दोस्त को घटना की सारी बात बताई फिर आखिर में बोला, अगर जिन्दगी रही तो ये बारह घण्टे मुझे हमेशा याद रहेंगे।

यह कहकर उसकी गर्दन एक तरफ लुढ़क गई। अब उसकी आँखों के सामने घटना के चित्र बादलों की तरह लगातार आ जा रहे थे।

(लेखक लंबे समय तक मजदूर आंदोलन से जुड़े रहे हैं।)

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